Argala Stotram Durga Saptashati: नवरात्र में करें मां शक्ति के अर्गला स्तोत्र का पाठ, शत्रुओं का होगा नाश, जीवन में सर्वत्र मिलेगी विजय

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 6, 2024 06:37 AM2024-04-06T06:37:30+5:302024-04-06T06:37:30+5:30

अर्गला स्तोत्र श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। अर्गला का तात्पर्य सभी प्रकार के बाधाओं के निवारण से होता है।

Argala Stotram Durga Saptashati: Recite Argala Stotram of Goddess Durga during Navratri, enemies will be destroyed, you will get victory everywhere in life | Argala Stotram Durga Saptashati: नवरात्र में करें मां शक्ति के अर्गला स्तोत्र का पाठ, शत्रुओं का होगा नाश, जीवन में सर्वत्र मिलेगी विजय

फाइल फोटो

Highlightsश्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अर्गला स्तोत्र दुःख निवारक शांति प्रदाता माना जाता हैसप्तशती पाठ का महत्वपूर्ण भाग होने के कारण नवरात्र में अर्गला स्तोत्र का पाठ करना आवश्यक हैअर्गला स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न होकर मां दुर्गा भक्तों को सुख, वैभव, प्रसिद्धि सहित धन-धान्य देती हैं

Argala Stotram Durga Saptashati: अर्गला स्तोत्र श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। अर्गला का तात्पर्य सभी प्रकार के बाधाओं के निवारण से होता है। अर्गला स्तोत्र के मंत्रों में हम देवी भगवती से कामना करते हैं कि हमारे शत्रुओं का नाश हो और जीवन में सर्वत्र विजय मिले।

अर्गला स्तोत्र दुःख निवारक शांति प्रदाता माना जाता है। अर्गला स्तोत्र के पाठ करने वाले की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सप्तशती पाठ का महत्वपूर्ण भाग होने के कारण नवरात्र में अर्गला स्तोत्र का पाठ करना आवश्यक होता है। देवी कवच पाठ करने के बाद अर्गला स्तोत्र का पाठ किया जाता है। अर्गला स्तोत्र में कुल पच्चीस श्लोक हैं।

मार्कंडेय ऋषि की सहायता से रचित अर्गला स्तोत्र देवी शक्ति की सबसे प्रसिद्ध भक्ति है। दुर्गा सप्तशती की सबसे असाधारण प्रार्थनाओं में से एक अर्गला स्तोत्र है। अर्गला स्तोत्र की उपासना आपको इतना मजबूत बना सकती है कि आप अपनी जीवनशैली की सभी रोजमर्रा की समस्याओं पर विजय पा सकें।

नवरात्र में भक्तों को देवी दुर्गा के चरण कमलों पर प्रार्थना करते हुए अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे प्रसन्न होकर मां दुर्गा सभी सुख, वैभव, आध्यात्मिकता, प्रसिद्धि सहित धन-धान्य देती हैं।

सनातन धर्म में मान्यता है कि मां शक्ति इस ब्रह्मांड में उस दिव्य तेज पुंज के समान हैं, जिनकी दयालु प्रकृति से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं और उनका कल्याण होती है। यह मार्कंड़य पुराण में देवी माहात्म्य के अंतर्गत आने वाला स्तोत्र है, जो अत्यंत शुभकारक और लाभप्रद है। इस स्तोत्र का पाठ नवरात्री के अलावा देवी पूजन या सप्तशती पाठ के साथ भी किया जाता है।

अर्गला स्तोत्र पाठ के लाभ

अर्गला स्तोत्र के पाठ से मनुष्य सतकर्म की राह पर चलता है, उसकी सारी कामनाएं और मनोवांछित इच्छाएं पूरी होती हैं। मनुष्य के सारे मनोरथ केवल अर्गल स्तोत्र के पाठ से ही पूर्ण हो जाते हैं। इस पाठ को करने से ही सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।

अर्गला स्तोत्र के पाठ से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है, आकस्मिक धन लाभ की प्राप्ति होती है। बुरे ग्रहो विशेषकर राहु के प्रकोप से छुटकारा मिलता है। देवी कवच ​​के माध्यम से पहले चारों ओर सुरक्षा का एक चक्र बनाया जाता है और फिर उसके बाद विजयश्री की कामना के लिए अर्गला स्त्रोत्र के माध्यम से देवी भगवती से प्रार्थना की जाती है। अर्गला स्तोत्र अचूक है। यह रूप, महिमा, सफलता देने वाला है। नवरात्रि में इसे पढ़ने का एक विशेष विधान और महत्व है।

देवी का अर्गला स्तोत्र

॥अथार्गलास्तोत्रम्॥

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

ॐ नमश्‍चण्डिकायै (मार्कण्डेय उवाच)

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥

मधुकैटभविद्रावि विधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥

स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥10॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥

सुरासुरशिरोरत्न निघृष्टचरणेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्‍वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥

हिमाचलसुतानाथ संस्तुते परमेश्‍वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्‍वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्ड दैत्यदर्पविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥

देवि भक्तजनोद्दाम-दत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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