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एक इलाहाबादी लड़की की नजर से देखिए कुंभ, पढ़िए माघ मेले से जुड़ी 7 रोचक बातें

By मेघना वर्मा | Updated: January 4, 2019 10:26 IST

मेला क्षेत्र में जिस समय आप घुसिएगा चारों ओर रंग-बिरंगे टेंट के साथ हवा में लहराता रंग-बिरंगा झंडा दिखाई देगा। किसी पर त्रिशूल बना होता है तो किसी पर तीर कमान, किसी पर रेलगाड़ी तो किसी पर हवाई जहाज।

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भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखाधरम में करम में सनल गाँव देखाअगल में बगल में सगल गाँव देखाअमवसा नहाये चलल गाँव देखा...

ऐहू हाथे झोरा, वहू हाथे झोराऔर कांधे पर बोरी, कपारे पर बोरा......अमवसा क मेला अमवसा क मेलाइह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

कैलाश गौतम की ये लाइनें जब भी सुनो माघ में का पूरा दृश्य आपके आंखों के सामने आ जाता है। एक बार फिर से वही तैयारी वही टेंट और वही मेले का स्वरूप फिर से देखा जा रहा है। दुनिया जहां से लोग हर साल प्रयागराज में होने वाले माघ मेला घूमने आते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब और साइबेरियन पक्षी के साथ तमाम यादों का झोला भरकर लोग अपने साथ ले जाते हैं। मगर एक इलाहाबादी इस कुंभ के मेले को किस नजर से देखता है आइए देखें एक इलाहाबादी नजरिए से कुंभ। 

संगम की रेत पर पीले रंग की रोशनी से नहाए पंडाल और घंटों, घंटा-घड़ियाल के साथ गूंजते वैदिक मंत्र। ये अहसास आपको मेला क्षेत्र में पहुंचते ही हो जाएगा कि आप तीर्थराज प्रयाग की धरती पर हैं। आस्था के इस मेलजोल में सबसे खास बात होती है यहां की भीड़। देश-विदेश से आए श्रद्धालू यहां एक जैसे ही दिखने लगते हैं। सर पर गठरी और हाथ में झोला लिए लोग सात-आठ किलोमीटर दूर से ही पैदल चलते दिखाई देंगे। मेला क्षेत्र में घुसने पर संतों और पखवाड़ों का पोस्टर ही पोस्टर नजर आएंगे। 

1. बिना निमंत्रण देश भर से आते है मेहमान

कुंभ की सबसे खास बात ये है कि बिन बुलाए मेहमान देश और विदेश से इस मेले में शिरकत करते हैं। ना सिर्फ इस मेले को देखने और घूमने बल्कि लोग यहां कल्पवास करने भी आते हैं। ये इस मेले का ही जादू है कि माघ के पूरे एक महीने प्रयागराज पूरा शहर किसी छावनी में तबदील जैसा लगता है। जहां शहरवासी खुद को भी मेहमान जैसा फील करने लगते हैं। खुद की गाड़ी से भी वो मेले में आ जा नहीं सकते। 

2. 13 अखाड़ो की होती है अगुवाई किसी रैली से कम नहीं

भले हर 12 साल बाद ज्योतिषीय योग बनने पर कुंभ का मेला लगता हो मगर माघ का रंग हर साल भक्तिमय ही होता है। इस कुंभ में प्रमुख 13 अखाड़ों का अगुवाई होती है। जो पूरी शानों-शौकत के साथ शाही अंदाज में मेले क्षेत्र में दस्तक देते हैं। विश्वास कीजिए ये किसी पॉलिटिकल रैली से कम नहीं जिसे देखने के लिए लाखों संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है। 

3. हर पंडे के झंडे की है अलग कहानी

मेला क्षेत्र में जिस समय आप घुसिएगा चारों ओर रंग-बिरंगे टेंट के साथ हवा में लहराता रंग-बिरंगा झंडा दिखाई देगा। किसी पर त्रिशूल बना होता है तो किसी पर तीर कमान, किसी पर रेलगाड़ी तो किसी पर हवाई जहाज। खास बात ये कि इन सभी झंडों की कहानी है  अपने आप में अनोखी है। कभी फुर्सत मिले तो बैठिए पंडों के पास और जानिए उनसे उनके झंडे की कहानी। 

4. रात का होता है अद्भुत नजारा

शास्त्री ब्रिज पर खड़े होकर मेला क्षेत्र को देखने का एक अद्भुत अनुभव देगा। रेत की सरसराती आवाज और हवा में फैरते झंडे आपकी रात रंगीन कर देंगे। चूंकी मेला क्षेत्र में पीली रंग की लाइटें और कोहरे को चीरती हुई उसकी रोशनी को देखने का अपना अलग ही मजा है। 

5. सिर्फ मिट्टी के चूल्हे पर बनाता है कल्पवासी खाना

हां शायद ही किसी का ध्यान इस बात पर जाता हो मगर हर साल माघ मेलें में कई हजार मिट्टी के चूल्हे की बिक्री होती है। मेले के साइड बाई साइड इन चूल्हों को बनाने की तैयारी भी महीने भर पहले से शुरू हो जाती है। चूंकी कल्पवासी चूल्हे पर खाना बनाते हैं  जिस वजह से इसकी बिक्री सबसे ज्यादा होती है। मेले में हर तीसरी दुकान पर आपको रामदाने का लड्डू और लाई के साथ मिट्टी के चूल्हे भी बिकते दिखाई देंगे। 

6. हर टेंट के बाहर उगती है जौ

अगर आप माघ घूमने आए हैं तो आप बाहर से चीजों को देखी और महसूस की होंगी। मगर कल्पवासियों के कैंप में घूसिए तो सबसे पहली नजर जिस चीज पर जाएगी वो है रेत के ऊपर मिट्टी में बोई हुई जौ। हरी-हरी जौ पर चढ़ी रोली और हल्दी आपको कुछ अलग ही एहसास दिला जाएगी। कहते हैं कल्पवास में इस जौ की पूजा के कई फायदे होते हैं। 

7. नागा साधुओं की होती है दबंगई

भस्म में सने नागा साधू और उनके हाथ के डंडे, भले ही दूर से इन्हें देखकर आप काफी फील गुड कर रहे हों मगर गलती से भी इनके समूह के सामने जाने की गलती ना कीजिएगा। भड़क गए तो कुछ भी कर जाएंगे। जी हां नागा साधुओं की दबंगई मेले में अपनी ही घुन पर होती है। मगर यकीन कीजिए इनको देखना एक अभूतपूर्व अनुभव देता है।

 

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