Ahoi Ashtami 2018: करवाचौथ के चार दिन बाद मनाया जाता है अहोई अष्टमी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: October 26, 2018 10:02 IST2018-10-26T09:53:20+5:302018-10-26T10:02:39+5:30
Ahoi Ashtami 2018 Date & timing,Vrat katha, Puja vidhi, Significance in hindi (अहोई अष्टमी 2018):पुत्र को जीवन में हर प्रकार की अनहोनी से बचाने के लिए उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत अहोई अष्टमी है जो कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है।

Ahoi Ashtami 2018: करवाचौथ के चार दिन बाद मनाया जाता है अहोई अष्टमी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
पुत्र को जीवन में हर प्रकार की अनहोनी से बचाने के लिए उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत अहोई अष्टमी है जो कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। कहते हैं कि पुत्र के जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से उसे बचाने के लिए इस खास व्रत को किया जाता है। अहोई अष्टमी को कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है।
क्यों करते हैं व्रत
कार्तिक मास की महिमा बताते हुए पद्मपुराण में लिखा है कि इस माह में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, व्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप एवं सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश होता है ।
कहते हैं कार्तिक मास की महिमा बहुत अधिक होती है। इस दिन को लेकर वेद पुराणों में बताया गया है कि इस माह में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, व्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप एवं सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश होता है । इसी कारण से अहोई अष्टमी इसमें सबसे खास माना जाता है। कहते हैं कि संतान की लंबी आयु एवं उसके जीवन में आने वाले सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति के लिए मनाया जाने वाला यह व्रत सिर्फ वही महिला रख सकती हैं जिनको संतान होती है और अन्य के लिए इस व्रत का कोई अर्थ नहीं होता है। इस व्रत को महिलाएं करवचौथ के चार दिन बाद अपने पुत्र के लिए पूरी श्रृद्धा के साथ करती हैं।
क्या है शुभ मुहुर्त
कार्तिक कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को मनाया जाता है। इसलिए 2018 में 31 अक्टूबर को अहोई अष्टमी मनायी जाएगी।
समय
शाम को 5.45 से 7.00 बजे तक का शुभ विशेष मुहुर्त
पूजा की विधि
करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोइ व्रत मनाया जाता है। इस दिन गोबर से चित्रांकन के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसके बाद बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। शाम के समय में कहें प्रदोष काल में इसकी उसकी पूजा महिलाएं करती हैं।
इस व्रत का प्रारंभ सुबह से ही स्नान एवं संकल्प के साथ किया जाता है और कलश के उपर करवाचौथ में प्रयुक्त किया हुए करवे में भी जल भर लिया जाता है. इसके बाद सायं काल में माता की पूजा अपने परम्परागत तरीके से फल, फूल, मिठाई व पकवान का भोग लगाकर विधिवत रूप से करने के उपरान्त आकाश में तारे आ जाने के तारों को करवे से अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है एवं अन्न-जल ग्रहण किया जाता है।
इसके बाद उस करवे के जल को दीपावली के दिन पुरे घर में छिड़का जाता है जिससे लाभ होता है।अहोई माता के रूप में पार्वती की पूजा लोग अपने-अपने पारिवारिक परंपरा के अनुसार मनाते हैं। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती है और दीपावली तक उसे धारण करती हैं ।माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाना अनिवार्य होता है। अलग-अलग पारिवारिक परम्पराओं में कुछ न कुछ भेद होता है । एक पटरे पर जल से भरा कलश रखकर कथा सुनी जाती है।