अशोक गहलोत की जादूगिरी से विरोधी फिर चित, 22 जुलाई को पेश करेंगे विश्वास मत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 20, 2020 10:59 AM2020-07-20T10:59:20+5:302020-07-20T10:59:20+5:30

अशोक गहलोत विधानसभा सत्र बुलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वह 22 जुलाई को विधानसभा में विश्वास मत पेश कर सकते हैं.

Rajasthan political crisis updates ashok gehlot vote of confidence 22 july | अशोक गहलोत की जादूगिरी से विरोधी फिर चित, 22 जुलाई को पेश करेंगे विश्वास मत

अशोक गहलोत पिछले 45 सालों से राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

Highlightsगहलोत और पायलट खेमे की नजरें की हाईकोर्ट के फैसले पर लगी हुई है.सचिन पायलट समेत 19 बागी कांग्रेस विधायक अब तक राजस्थान नहीं पहुंचे हैं

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर अपना जादू दिखाया है. उन्होंने अपनी जादूगरी से न केवल अपने उन विरोधियों को परास्त कर दिया,जो उनकी सत्ता पलटने की योजना बनाए हुए थे, बल्कि केंद्रीय नेतृत्व को भी अपनी मजबूत स्थिति का एहसास कराया. गहलोत ने जिस तरह से पार्टी और सरकार में बगावत के बीच अपनी सीएम की कुर्सी बचाने में सफल रहे, ये उनके रणनीतिक कौशल का ही नतीजा है. गहलोत सरकार 22 जुलाई को राजस्थान विधानसभा में विश्वास मत पेश करेगी.

अशोक गहलोत की सियासी पारी पर नजर डालें तो उन्होंने अपनी जादूगरी से ही आज कांग्रेस के मजबूत नेताओं में से एक हैं. गहलोत ने अपने दांव से जनार्दन सिंह गहलोत, हरिदेव जोशी, पारसराम मदेरणा, सी.पी. जोशी और अब सचिन पायलट जैसे दिग्गजों को पछाड़ने में सफलता पाई है. खास बात यह है कि कांग्रेस में भी उन्हें जो जिम्मेदारी दी गई उसे निभाने से नहीं हिचके. हालांकि, इस दौरान कई बार उन्हें विफलताओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन गहलोत हमेशा गांधी परिवार के करीबी बने रहे. वह वर्तमान में कांग्रेस नेताओं में अकेले ऐसे नेता हैं, जो पूरे गांधी परिवार की लगातार पसंद बने रहे हैं.

राजस्थान की राजनीति के जादूगर हैं गहलोत राजस्थान की राजनीति में कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से अशोक गहलोत को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास करते रहे,लेकिन उनका जादू हमेशा बरकरार रहा. उन्हें राजनीति का जादूगर इसलिए भी कहा जाता है कि उनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत राजस्थान के जाने-माने जादूगर थे. पिता के साथ रहते हुए अशोक गहलोत ने जादू की कई ट्रिक्स सीख ली थीं, जिसे उन्होंने कई बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सामने दिखाया भी था.

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद, सचिन पायलट ने मान लिया कि मुख्यमंत्री का पद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते उन्हें ही मिलेगा, क्योंकि उन्होंने सूबे में पूरे पांच साल जमकर मेहनत की थी. लेकिन नतीजों के बाद सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने गहलोत का समर्थन किया और फिर राहुल गांधी को भी उनकी बातों का समर्थन करना पड़ा. उस समय का फैसला सचिन पायलट के लिए किसी झटके से कम नहीं था. मौजूदा समय में राजस्थान कांग्रेस में जो गुटबाजी उभर कर सामने आई है, उसकी नींव उसी समय पड़ गई थी.

गहलोत ने साधा सियासी समीकरण

अशोक गहलोत को पता है कि मौजूदा समय में राजनीति उनके पक्ष में है. राजस्थान विधानसभा में 13 निर्दलीय विधायकों में से 11 उनका समर्थन कर रहे हैं. उनमें कई ऐसे भी हैं जिन्हें 2018 में कांग्रेस ने टिकट देने से इनकार कर दिया था, और फिर उन्होंने निर्दलीय चुनाव में उतरकर जीत दर्ज की थी. इस तरह से गहलोत ने इस दांव के जरिए अपनी सरकार बचा ली. पार्टी की मानें तो 107 से ज्यादा विधायकों का गहलोत सरकार को समर्थन है.

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