जयपुरः कल (14 अगस्त) विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है और बीजेपी ने ऐलान किया है कि वह कल ही सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाएगी.राजस्थान में कांग्रेस की सियासी रस्साकशी समाप्त हो गई है, मतलब- कांग्रेस के दोनों खेमे एक हो जाने के बाद कांग्रेस के पास जरूरत से बहुत ज्यादा बहुमत है, फिर पहले अविश्वास प्रस्ताव के लिए इंकार करनेवाली बीजेपी अब क्यों अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है?इसके कई कारण हैं....
कांग्रेस में बगावत के बाद यह पाॅलिटिकल मैसेज भी गया है कि बीजेपी में भी सियासी दरार है, बीजेपी के पास कुल 75 वोट हैं, यदि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ कम-से-कम इतने वोट मिल जाएंगे, तो यह साफ हो पाएगा कि बीजेपी एकजुट है. हालांकि, क्योंकि अब कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है, इसलिए गहलोत सरकार को किसी तरह के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष वोटिंग सपोर्ट की जरूरत नहीं है.
बीजेपी के कुल 75 वोटों के अलावा के सारे वोट कांग्रेस को मिलने चाहिए, इसमें किसी तरह की कमी आने का मतलब यह होगा कि सियासी खतरा अभी टला नहीं है. कांग्रेस किसी अप्रत्यक्ष तरीके से अपना बहुमत साबित नहीं कर दे, यह भी बड़ा सवाल है. यही नहीं, प्रत्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव से पूर्व बागी खेमे के विधायकों को अप्रत्यक्ष सियासी ताकत मिलेगी, ताकि उन पर किसी किस्म का दबाव नहीं बने और वे सहज होकर कांग्रेस की बैठकों में भाग ले सकें.
वैसे, आज राजस्थान के सियासी घटनाक्रम के बाद पहली बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की मुलाकात हुई है. कांग्रेस ने अपने दो बागी विधायकों- भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह का निलंबन रद्द कर दिया है और फिर से एकजुटता प्रदर्शित करने के प्रयास हो रहे हैं.
अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद गहलोत सरकार के सामने बहुमत साबित करने की चुनौती रहेगी. राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं, जिनमें से 107 का संख्याबल कांग्रेस के पास है. यही नहीं, एक दर्जन से ज्यादा निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन उसे प्राप्त है, इसलिए वैसे तो गहलोत सरकार को गिराना अब संभव नहीं है, लेकिन विधानसभा में बीजेपी के नेता गुलाबचंद कटारिया का कहना है कि कांग्रेस अपने घर में टांका लगाकर कपड़े को जोड़ना चाह रही है, लेकिन कपड़ा फट चुका है, ये सरकार जल्दी ही गिरने वाली है!