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अशोक गहलोत सियासी मकसद में कामयाब, बीजेपी में खुशी के साथ गम, सचिन पायलट के सामने चुनौतियां!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: July 16, 2020 18:28 IST

सचिन पायलट के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने राजस्थान में संघर्ष किया और अपनी अलग पहचान बनाई, जिसके परिणामस्वरूप विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री पद नहीं मिला.

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ठळक मुद्देगहलोत सियासी मकसद में कामयाब रहे हैं, बीजेपी के लिए थोड़ी खुशी, थोड़ा गम है, तो सचिन पायलट के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं.गहलोत टीम सचिन पायलट को राजस्थान की राजनीति से दूर करना चाहती थी. यह काम खुद सचिन पायलट ने खुली बगावत करके आसान कर दिया. सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, दोनों पदों से मुक्त कर दिया गया.

जयपुरः राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही राजनीतिक रस्साकशी को लेकर अब तक का नतीजा यह है कि अशोक गहलोत सियासी मकसद में कामयाब रहे हैं, बीजेपी के लिए थोड़ी खुशी, थोड़ा गम है, तो सचिन पायलट के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं.

अशोक गहलोतः राजस्थानकांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत का दो दशक से ज्यादा समय से एकछत्र सियासी साम्राज्य रहा है. सचिन पायलट के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने राजस्थान में संघर्ष किया और अपनी अलग पहचान बनाई, जिसके परिणामस्वरूप विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री पद नहीं मिला.

गहलोत टीम सचिन पायलट को राजस्थान की राजनीति से दूर करना चाहती थी. यह काम खुद सचिन पायलट ने खुली बगावत करके आसान कर दिया. सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, दोनों पदों से मुक्त कर दिया गया.

यही नहीं, नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति भी कर दी गई. इसके बाद सीएम गहलोत ने सचिन पायलट पर जमकर सियासी निशाना साधा और कई आरोप भी लगाए. अब पायलट कीे राजस्थान वापसी के लिए केवल मुख्यमंत्री का पद बचा है, जो उन्हें नहीं मिल सकता है.

बीजेपीः सचिन पायलट की बगावत से शुरुआत में बीजेपी खुश और उत्साहित जरूर थी, लेकिन गुजरते समय के साथ यह खुशी बेअसर होती गई, क्योंकि संख्याबल की कसौटी पर पायलट खरे नहीं उतरे. इसके अलावा बीजेपी के अंदर भी सियासी हालात ठीक नहीं हैं.

सचिन पायलट को सीएम का पद मिल नहीं सकता है, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व सीएम बनने नहीं देगा और वसुंधरा राजे किसी और को मुख्यमंत्री बनने नहीं देंगी. मतलब- सीएम गहलोत की सरकार को गिराने से भी ज्यादा मुश्किल है, इसके बाद बीजेपी की सरकार बनाना. बीजेपी के लिए खुशी की बात है कि राजस्थान कांग्रेस में सियासी दरार आ गई है, लेकिन गम इस बात का है कि सरकार की अस्थिरता के बावजूद यहां मध्यप्रदेश जैसी सफलता नहीं मिल पाई है.

सचिन पायलटः इस सारे प्रकरण में सबसे ज्यादा सियासी नुकसान सचिन पायलट को हुआ है. उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, दोनों पद तो उनके हाथ से निकल चुके हैं, लिहाजा उनकी राजस्थान में असरदार वापसी की संभावनाओं पर भी सवालिया निशान लग गया है. उनके लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं और अब उनके पास बहुत कम सियासी विकल्प बचे हैं.

सबसे बेहतर तो यह है कि वे कांग्रेस की केन्द्रीय कार्यकारिणी में कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त करें और अपने समर्थकों को राजस्थान सरकार में मंत्री पद दिलवाएं. इसके अलावा, वे अपना क्षेत्रीय दल भी गठित तो कर सकते हैं, लेकिन उसकी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करवाना आसान नहीं है.

सचिन पायलट यदि बीजेपी में जाना चाहें, तो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे पदों को भूल जाना होगा, वे केवल केन्द्र में मंत्री बन सकते हैं. आम आदमी पार्टी, सपा जैसे राजनीतिक दल से जुड़ना. ये दल राजस्थान में लंबे समय से प्रयास कर रहे हैं. यदि उन्हें राजस्थान में सचिन पायलट जैसा नेतृत्व मिल जाता है, तो उनकी कामयाबी के भी रास्ते खुल सकते हैं!  

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