राजस्थान सियासी संग्रामः पार्टी के अंदर क्यों शक्ति परीक्षण नहीं किया सचिन पायलट ने?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: July 22, 2020 03:21 PM2020-07-22T15:21:52+5:302020-07-22T15:21:52+5:30
कांग्रेस पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करने के मामले में सचिन पायलट और 18 बागी विधायकों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर राजस्थान हाईकोर्ट अब 24 जुलाई 2020 को फैसला सुनाएगा. हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि तब तक, मतलब- 24 जुलाई तक विधानसभा अध्यक्ष इस मामले में कोई फैसला न करें.
जयपुरः राजस्थान में सियासी संकट के मद्देनजर एक ओर जहां अदालत के फैसले का इंतजार हो रहा है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न होटलों में कांग्रेस के दोनों खेमों के विधायक सियासी सुरक्षा के घेरे में हैं.
उधर, कांग्रेस पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करने के मामले में सचिन पायलट और 18 बागी विधायकों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर राजस्थान हाईकोर्ट अब 24 जुलाई 2020 को फैसला सुनाएगा. हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि तब तक, मतलब- 24 जुलाई तक विधानसभा अध्यक्ष इस मामले में कोई फैसला न करें.
बड़ा सवाल यह है कि सचिन पायलट ने पार्टी के अंदर शक्ति परीक्षण के बजाय, बाहर से चुनौती देने का राजनीतिक रास्ता क्यों पकड़ा, जबकि इससे पहले सियासी विवाद की स्थिति में फैसले पार्टी के मंच पर होते रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है, विधायक दल पर सीएम अशोक गहलोत की मजबूत पकड़.
चुनाव के तुरन्त बाद तो कांग्रेस में सचिन पायलट के अच्छी संख्या में समर्थक थे
विधानसभा चुनाव के तुरन्त बाद तो कांग्रेस में सचिन पायलट के अच्छी संख्या में समर्थक थे, हालांकि तब भी अशोक गहलोत के पास संख्या बल ज्यादा ही था, लेकिन धीरे-धीरे न केवल कांग्रेस के अंदर सीएम गहलोत के समर्थक बढ़ते गए, बल्कि वे बाहर से भी निर्दलीयों सहित कई विधायकों को जुटाने में कामयाब रहे.
इसका नतीजा यह रहा कि जहां विधानसभा चुनाव के नतीजों में सियासी शतक लगाना भी कांग्रेस को भारी पड़ रहा था, वहीं गुजरते समय के साथ सीएम गहलोत न केवल कांग्रेस का संख्याबल 107 तक पहुंचाने में कामयाब रहे, बल्कि एक दर्जन से ज्यादा अन्य विधायको को भी साथ लेने में सफल रहे.
यदि सचिन पायलट के समर्थन में तीन दर्जन के करीब कांग्रेसी विधायक हैं
इस वक्त सचिन पायलट खेमे के दावे पर भी भरोसा किया जाए तो भी यदि सचिन पायलट के समर्थन में तीन दर्जन के करीब कांग्रेसी विधायक हैं, तो सीएम गहलोत के पास छह दर्जन के करीब विधायक हैं. ऐसी स्थिति में भी मुख्यमंत्री पद के लिए सचिन पायलट का दावा कमजोर ही है और इसीलिए उन्होंने सीएम गहलोत से पार्टी के मंच पर शक्ति परीक्षण करने के बजाय बाहर से चुनौती देना ठीक समझा.
गुजरते समय के साथ सचिन पायलट, गांधी परिवार से तो दूर होते ही जा रहे हैं, बीजेपी से भी उन्हें कुछ खास फायदा होगा, ऐसा लगता नहीं है, जबकि सीएम गहलोत की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है. राजनीति में कब, क्या हो जाए, यह तो कहा नहीं जा सकता है, परन्तु इस वक्त तो सीएम गहलोत बहुमत के साथ सुरक्षित हैं और यदि, जैसा कि सीएम गहलोत चाहते हैं, विधानसभा में जल्दी-से-जल्दी बहुमत साबित करने में वे कामयाब हो गए, तो प्रत्यक्ष सचिन पायलट का और अप्रत्यक्ष बीजेपी का सियासी खेल छह महीने के लिए फेल हो जाएगा!