राजस्थान चुनाव से पहले अजमेर और अलवर में BJP को मिली हार से उबर पाएंगी वसुंधरा राजे?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 27, 2018 08:52 AM2018-06-27T08:52:53+5:302018-06-27T08:52:53+5:30
फरवरी 2018 में दो और लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, अजमेर और अलवर
साल 2017 और महीना अप्रैल, राजस्थान की लोकसभा सीट धौलपुर पर उपचुनाव। भले यह उपचुनाव था लेकिन भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मेहनत देखने लायक थी। वसुंधरा राजे ने खुद कई दिनों तक इस सीट पर अपने प्रत्याशी के लिए प्रचार किया नतीजतन भाजपा ने यह सीट बचा ली।
वसुंधरा राजे के लिए यह सीट जीतना बेहद ज़रूरी भी था क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक वर्ष का समय बचा रह गया था और जनता के बीच ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए था कि प्रदेश में भाजपा सरकार का प्रभाव नहीं रह गया है।
इस चुनाव तक भाजपा के लिए सब ठीक था पर फरवरी 2018 में दो और लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, अजमेर और अलवर। यह चुनाव धौलपुर लोकसभा उपचुनाव से कई मामलों में बड़ा और ज़रूरी था। लेकिन यह चुनाव आते-आते सबकुछ भाजपा के हित में नहीं था। ऐसा माना जा रहा था कि वसुंधरा सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम साल में जनता से जुड़ाव, बेरोज़गारी, विकास और महंगाई जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ठीक प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी। नतीजतन यहां दोनों सीटें गँवानी पड़ीं।
राजस्थान सरकार के विधेयक पर ‘जब तक काला, तब तक ताला’
2014 के आम चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने का श्रेय अक्सर मोदी लहर को मिलता रहता है। हालांकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव कई मायनों में एक दूसरे से अलग होते हैं। लेकिन ऐसे हालातों में अगर वसुंधरा सरकार अपनी सीटें नहीं बचा पाईं तो बेशक यह अच्छे संकेत नहीं हैं। और वो भी तब जब राजस्थान विधानसभा चुनाव में कुछ महीनों का समय शेष रह गया है। अजमेर और अलवर सीट पर हुए उपचुनावों के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह 2013 के विधानसभा चुनावों में गहलोत सरकार के लिए विरोधी माहौल बन रहे थे ठीक वैसी तस्वीर वसुंधरा सरकार के विरोध में भी तैयार हो रही है।
(रिपोर्टः विभव देव शुक्ला)