राजस्थान सरकार के विधेयक पर ‘जब तक काला, तब तक ताला’
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 23, 2018 06:02 PM2018-06-23T18:02:00+5:302018-06-25T10:20:38+5:30
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राजस्थान सरकार ने बीते साल अक्टूबर महीने में विधानसभा में एक विधेयक का प्रस्ताव रखा। विधेयक के अनुसार लोकसेवक, मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश (सेनानिवृत्त भी) के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कराने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी। इतना ही नहीं अगर जाँच के दौरान कोई मीडिया समूह उससे जुड़ा समाचार प्रसारित या प्रकाशित करता है तो उस पर दो साल की सज़ा का प्रावधान किया जाएगा। प्रस्ताव पर चर्चा के तुरंत बाद से ही विपक्ष ने विधेयक का विरोध करना शुरू कर दिया। नतीजतन राजस्थान सरकार का अध्यादेश लागू नहीं हो पाया लेकिन विरोध करने वालों में एक और बड़ा चेहरा रहे राजस्थान पत्रिका के सम्पादक ‘गुलाब कोठारी’।
विधेयक का प्रस्ताव आने के अगले दिन ही राजस्थान के दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में कोठारी जी का सम्पादकीय प्रकाशित हुआ। सम्पादकीय में ऐसा लिखा था कि जब तक राजस्थान सरकार लोकतंत्र और मीडिया को तबाह करने वाला यह विधेयक वापस नहीं लेती तब तक राजस्थान पत्रिका में राजस्थान सरकार से सम्बंधित कोई समाचार प्रकाशित नहीं किया जाएगा। कोठारी ने अपने सम्पादकीय में विधेयक को बेहद कड़े शब्दों में नाकारा, उसका कुछ हिस्सा पढ़ें-
'राजस्थान सरकार ने अपने काले कानून के साए से आपातकाल को भी पीछे छोड़ दिया है। देशभर में थू-थू हो गई, लेकिन सरकार ने कानून वापस नहीं लिया। क्या दुःसाहस है सत्ता के बहुमत का ! कहने को तो प्रवर समिति को सौंप दिया, किन्तु कानून आज भी लागू है। चाहे तो कोई पत्रकार टेस्ट कर सकता है। किसी भ्रष्ट अधिकारी का नाम प्रकाशित कर दे। दो साल के लिए अंदर हो जाएगा। तब क्या सरकार का निर्णय जनता की आंखों में धूल झोंकने वाला नहीं है?
विधानसभा में सत्र की शुरुआत 23 अक्टूबर को हुई। श्रद्धांजलि की रस्म के बाद हुई कार्य सलाहकार समिति (बी.ए.सी) की बैठक में तय हुआ कि दोनों विधेयक 1. राज. दंड विधियां संशोधन विधेयक, 2017 (भादंस), 2. सीआरपीसी की दंड प्रक्रिया संहिता, 2017. 26 अक्टूबर को सदन के विचारार्थ लिए जाएंगे। अगले 24 अक्टूबर को ही सत्र शुरू होने पर पहले प्रश्नकाल, फिर शून्यकाल तथा बाद में विधायी कार्य का क्रम होना था।
आमतौर पर सरकारों का ऐसा विरोध कम ही देखने को मिलता है। और तो और विधेयक की बात उस समय हो रही है जब विधानसभा चुनावों में एक साल से भी कम का समय शेष रह गया है। बेहद कम समय में कई मीडिया समूह कोठारी जी के पक्ष और सरकार के विरोध में नज़र आने लगे। नतीजतन सरकार को जल्दी ही प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। राजस्थान की राजनीति को अगर इस प्रस्ताव से जोड़ कर देखा जाए तो हर पांच साल में सरकार ज़रूर बदलती है और ऐसे में सरकार का ऐसे प्रस्ताव रखना एक गलत चुनावी क़दम साबित हो सकता है। हालाँकि राजस्थान सरकार ने अपने इस कार्यकाल में कई अच्छी योजनाएँ लागू की लेकिन लोकतंत्र और मीडिया का सिरदर्द साबित होने वाले ऐसे निर्णय सरकार के लिए गलत साबित हो सकते हैं।
(रिपोर्ट- विभव देव शुक्ला, फोटो- सोशल मीडिया)