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लोकसभा चुनाव 2019ः जनता के तो आए नहीं, उनके भी चले गए अच्छे दिन!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: February 10, 2019 12:20 IST

एनडीए की प्रमुख सहयोगियों में से एक- शिवसेना, लगातार तीखे तेवर के साथ नजर आ रही है। क्योंकि, महाराष्ट्र में तो शिवसेना के बगैर बीजेपी के बहुमत की गाड़ी रूक जाएगी, इसलिए खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी।

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वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी टीम के अच्छे दिन आए थे। बीजेपी के इतिहास में पहली बार लोकसभा चुनाव में 282 सीटें हांसिल करके नरेन्द्र मोदी टीम ने अकल्पनीय कामयाबी दर्ज करवाई थी, कारण? जनता से अच्छे दिनों का वादा था, लेकिन हुआ उल्टा, जनता के अच्छे दिन तो आए नहीं, मोदी टीम के भी अच्छे दिन नहीं रहे। जहां 2014 में भाजपा के भीतर-बाहर मोदी विरोधी कोई स्वर सुनाई नहीं देता था, वही अब विपक्षी तो जमकर विरोध कर ही रहे हैं, सहयोगी भी तेवर दिखा रहे हैं, मोदी टीम ने भी सिद्धान्तों को एक तरफ रख कर चुनाव और चाहत में सब जायज है, की तर्ज पर सियासी फैसले लेने शुरू कर दिए हैं?  वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी ने 282 सीटें हासिल की थीं, वहीं एनडीए के शेष सहयोगियों ने 54 सीटों पर कब्जा जमाया था, मतलब- पीएम मोदी की कुल ताकत 336 लोस सीट, परन्तु उप-चुनावों में बीजेपी की लगातार हार, एक-एक कर सहयोगियों का साथ छोड़ना और सबसे बड़ा, तीन प्रमुख राज्यों- एमपी, राजस्थान औ छत्तीसगढ़ से बीजेपी की सत्ता से विदाई ने 2014 की सियासी तस्वीर को ही बदल कर रख दिया है!

आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू का साथ छुटा तो बिहार के उपेंद्र कुशवाहा भी अलग हो गए, अब साथ खड़ी शिवसेना, अकाली दल, अपना दल आदि पार्टियां भी मोदी टीम को अपने तेवर दिखा रही हैं, अर्थात दो मोर्चो पर पीएम मोदी को सियासी लड़ाई लड़नी है, एक- विरोधियों को निपटाने की, और दो- सहयोगियों को मनाने की? इसमें कामयाबी नहीं मिली तो 2019 में केन्द्र की सत्ता भी नहीं मिलेगी!

एनडीए की प्रमुख सहयोगियों में से एक- शिवसेना, लगातार तीखे तेवर के साथ नजर आ रही है। क्योंकि, महाराष्ट्र में तो शिवसेना के बगैर बीजेपी के बहुमत की गाड़ी रूक जाएगी, इसलिए खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी, लेकिन शिवसेना के नजरिए में कोई बदलाव इसलिए नहीं आया कि शिवसेना बीजेपी के असली चेहरे को देख-समझ चुकी है। शिवसेना को पता है कि 2019 लोस चुनाव गुजर जाने के बाद बीजेपी के तेवर बदल जाएंगे, जैसे 2014 में बदले थे! शिवसेना, देश और प्रदेश, दोनों जगह गठबंधन की शर्ते पहले ही तय करना चाहती है, वरना शिवसेना का कहना है कि- वह पहले भी अकेले चली थी और आगे भी चल सकती है? 

पंजाब में बीजेपी पहले से ही अच्छी हालत में नहीं है और अब तो वहां प्रदेश सरकार भी कांग्रेस की है, लेकिन बड़ी बात यह है कि पंजाब में बीजेपी का सहयोगी दल भी बीजेपी के राजनीतिक तौर-तरीकों से इत्तेफाक नहीं रखता है? कुछ समय पहले ही अकाली दल ने गुरुद्वारा मामले में दखलअंदाजी को लेकर बीजेपी को अल्टीमेटम दे दिया था और कहा था कि- बीजेपी ने अगर तख्त, गुरुद्वारा मामले में दखलंदाजी बंद नहीं की तो गठबंधन हमारे लिए मायने नहीं रखेगा! 

शिवसेना, अकाली दल आदि के अलावा ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी, अनुप्रिया पटेल का अपना दल जैसी पार्टियां भी मोदी टीम को तेवर दिखा रही हैं? अनुप्रिया पटेल, राजभर आदि तो बीजेपी से अलग, अपनी सियासी सोच के अनुरूप लगातार बयान भी देते रहे हैं।  

यही वजह है कि राम मंदिर निर्माण, नागरिकता (संशोधन) विधेयक, सवर्ण आरक्षण, आयकर छूट जैसे कई मुद्दों पर बीजेपी अपनी स्थापित विचारधारा से थोड़ा हट कर सियासी कदम आगे बढ़ा रही है? मोदी टीम के सामने बीजेपी के प्रबल समर्थकों और सहयोगी दलों के बीच संतुलन कायम करने की तगड़ी चुनौती है। 

टॅग्स :लोकसभा चुनावभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेस
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