X फैक्टर, गुजरात में कहां-कहां से कम हुईं बीजेपी की सीटें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: December 21, 2017 09:43 AM2017-12-21T09:43:40+5:302017-12-21T14:59:41+5:30
गुजरात में बीजेपी घटती सीटों की समीक्षा की जिम्मेदारी अमित शाह पर होगी। पर हम आपको वो आंकड़े बता देते हैं, जहां से बीजेपी के हाथों से गोटी सरकी है।
गुजरात में बीजेपी बाजी मारी जरूर पर 2012 की 115 सीटों की तुलना में महज 99 सीटों पर सिमट गई। निश्चित तौर पर इसकी समीक्षा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी की जिम्मेदारी होगी। हम आपको वो आंकड़े बता देते हैं, जहां से बीजेपी के हाथों से गोटी सरकी है।
कोई एक वोटर, वोट डालते वक्त किस मनः स्थिति के प्रभाव में है इसका अंदाजा तो नहीं लगता, लेकिन मनः स्थिति बनाने के पीछे के कारण उस खास वोटर तक पहुंची, देखी जानकारियां और उन जानकारियों पर उसका अपना विश्लेषण होता है।
ऐसे में बीजेपी के कार्यकाल पर नजर डालें, तो पाएंगे कि साल 2012 का चुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था। विकास के भारी-भरकम सपने दिखाए गए थे। सपने ऐसे कि उसे आधार बनाकर नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता पर काबिज हुए। लेकिन इस सब में वही पीछे रह गया जो आधार था।
केंद्र की राजनीति मिलते ही नरेंद्र मोदी पूरी तरह के केंद्र के हो गए। बेतहाशा विदेशी यात्राएं कीं। इससे देश को क्या नफा-नुकसान हुआ इसका हिसाब फिलहाल तक कोई नहीं दे पा रहा है। लेकिन इस खामियाजा गुजरात की जनता को भुगतना पड़ा। जिनके चेहरे को देखकर उन्होंने भाजपा को वोट दिया था वो चेहरा अब बस एकाध दिन के लिए प्रदेश में आता। कभी अपना जन्मदिन मनाने तो कभी रोड-शो करने।
उस चेहरे के एवज में जो दूसरा चेहरा बीजेपी ने सुझाया आनंदी बेन पटेल का उनमें मोदी के दसवें हिस्से के बराबर आकर्षण नहीं था। नतीजनत बीजेपी को चेहरा बदलना पड़ा। लेकिन अगर यह चेहरा मोदी सरीखे होता तो दुनिया का काम छोड़कर पीएम मोदी को गुजरात में दिनरात एक कर के प्रचार न करना पड़ता। राहुल के नाना, नीच जाति, साबरमती में आईएएनएस, पाकिस्तान की साजिश जैसे मुद्दे ना बनाने पड़ते।
इन सब के इतर जब बात नतीजों की आती है तो बीजेपी बहुमत से सत्ता में आती है। लेकिन साल 2002, 127 सीटें, साल 2007, 117 सीटें, साल 2012, 115 सीटें के बरक्श 2017 में 99 सीटें ही बचीं। जनता बीजेपी से किस बात से नाराज है? क्यों बीजेपी दो अंकों में सिमट गई। क्या गुजरात की जनता ने महसूस किया कि उनका फायदा उठाया जा रहा है? उनके काम को विकास बताकर केंद्र की सत्ता मिली और उनकी ही अनदेखी हो रही है? क्या शातिराने ढंग से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है?
ये आंकड़े इन सवालों के थोड़े करीब ले जाते हैं
शहरी क्षेत्र के लोग नाराजः गुजरात में शहरी क्षेत्र में 91 सीटें हैं। बीते तीन चुनावों में बीजेपी शहरी क्षेत्रों की 80 से अधिक सीटें जीतती थी। लेकिन इस बार शहरी क्षेत्र से बीजेपी को बस 69 सीटें ही आईं।
शिक्षित महिला सीटः बीजेपी ने शिक्षित वर्ग में अपना जनाधार खोया है। शिक्षित महिला बहुल 92 सीटों (इसमें शहरी क्षेत्र भी शामिल हैं) सीटों में बीजेपी को बस 66 सीटें ही मिलीं।
अल्पसंख्यक वर्ग में और पीछे गएः बीजेपी पर गुजरात में अल्पसंख्यकों संग भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन 2012 में लगा था कि शायद यह आरोप झूठे साबित हो जाएंगे। गुजरात में अल्पसंख्यक बहुल 92 सीटें (इसमें शहरी क्षेत्र सीटें ओर शिक्षित महिला बहुल सीटें शामिल) हैं। साल 2012 में बीजेपी इसमें से 65 सीटें जीत गई थी। लेकिन इस बार फिर से यह आंकड़ा खिसक कर 57 पर चला गया।