1 / 7सावन मास में आने वाले अमावस का बहुत महत्व है। इसे श्रावण अमावस्या या हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। इस बार यह 1 अगस्त (गुरुवार) को मनाया जा रहा है। कई दूसरे राज्यों में इसके अलग-अलग नाम है। मसलन, तेलंगाना और आंध्र प्रदेस में इसे चुक्कला अमावस्या तो महाराष्ट्र में इसे गटारी अमावस्या कहते हैं।2 / 7ओडिशा में इसे चितलगी अमावस्य नाम दिया गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन दान करने की मान्यता है। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।3 / 7सावन के अमावस में पूजन विधि भी विशेष होती है। इस दिन पितृ तर्पण का खासा महत्व है। मान्यता है कि इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन विशेष भोजन बनाया जाता है और ब्राह्मणों को खिलाया जाता है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा का महत्व भी है। पतृ तर्पण के लिए घर के बड़े सदस्यों को पूजन कर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पितरों के पसंद का खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाए।4 / 7मान्यता है कि सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है। ऐसे में इस पूरे महीने उनकी पूजा का महत्व है। इस दिन कुंवारी कन्याओं को विवाह में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए शिव और पार्वती को लाल वस्त्र लपेटकर उनका फल और मिष्ठान से पूजन करना चाहिए।5 / 7वहीं, विवाहित स्त्रियों को हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी आदि बांटना चाहिए। इससे सुहाग की आयु लंबी होगी और घर में खुशहाली आएगी। कई लोग सावन की अमावस्या को उपवाल भी रखते हैं और शाम को भोजन ग्रहण व्रत तोड़ते हैं।6 / 7हरियाली अमावस्या के दिन सुबह उठकर घर की सफाई करें और फिर पवित्र नदियों में स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर में या मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। संभव हो तो उपवास करें। अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों का ध्यान जरूर करना चाहिए और जरूरतमंदों को दाम देना चाहिए।7 / 7पीपल में इस दिन जल देना भी शुभ माना गया है। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लें। शाम ढलने पर सात्विक भोजन के साथ अपना व्रत तोड़े।