नई दिल्ली, 8 अप्रैल: भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग में पांचवां गोल्ड जिताने वाली 22 वर्षीय पूनम यादव के लिए ये सफर इतना आसान नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के चांदमारी गांव से आने वाली पूनम गरीबी को मात देते हुए कॉमनवेल्थ के पोडियम तक पहुंची हैं। पेशे से पिता पूनम के पिता के लिए सीमित आय में पूनम समेत अपनी तीन बेटियों और एक बेटे का खर्च चलाना बहुत मुश्किल था।
सबसे पहले पूनम की बड़ी बहन शशि ने सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में साई में वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग शुरू की। इसके एक साल बाद पूनम भी बड़ी बहन के कदम के नक्शे-कदम पर चल पड़ी। बाद में सबसे छोटी बहन पूजा ने भी वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग शुरू की।
लेकिन पूनम के पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह तीन-तीन एथलीटों के खाने का खर्च उठा पाते। ऐसे में परिवार ने इन तीनों में सबसे प्रतिभाशाली पूनम को आगे बढ़ाने का फैसला किया। (पढ़ें: CWG 2018: पूनम यादव ने दिलाया भारत को वेटलिफ्टिंग में पांचवां गोल्ड मेडल)
परिवार के त्याग को पूनम ने अपनी मेहनत से बेकार नहीं जाने दिया और 2014 में एशियन जूनियर चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता और उसी साल कॉमनवेल्थ गेम्स में भी ब्रॉन्ज मेडल जीतते हुए अपने परिवार का बोझ काफी हद तक कर दिया। इसके बाद पूनम को रेलवे में नौकरी मिल गई।
पूनम ने रविवार को गोल्डकोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में महिलाओं की वेटलिफ्टिंग के 69 किलोग्राम भारवर्ग में स्नैच में 100 किलो और क्लीन ऐंड जर्क में 112 किलो वजन उठाते हुए कुल 222 किलो वजन उठाया और गोल्ड मेडल जीतते हुए भारत को इन खेलों का पांचवां गोल्ड मेडल दिला दिया।