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मुश्किलों से उबरकर दुनिया भर में छाने को तैयार हैं दृष्टिबाधित पैरा धाविक काशफअली

By भाषा | Updated: August 26, 2021 17:47 IST

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बचपन में सालुम अगेजी काशफअली तड़के बमों की आवाज से उठते थे तो उनके चारों तरफ मलबा और धुएं का गुब्बार होता था।कांगो का यह बच्चा अधिकतर सोचता था कि यह काली लंबी रात कभी खत्म होगी या नहीं, क्या वह अन्य बच्चों की तरह कभी स्कूल जा भी पाएगा या नहीं, क्या उसे लंबी कतारों में लगे बिना भोजन मिलेगा।और इसके बाद काशफअली और उनके परिवार का भाग्य चमका और उन्हें नॉर्वे में शरण मिली गई जहां उन्होंने शीर्ष स्तर का फर्राटा धावक बनने का अपना सपना पूरा किया।काशफअली अब तोक्यो पैरालंपिक की पुरुष टी12 (दृष्टिबाधित के लिए) 100 मीटर दौड़ में अपनी शीर्ष रैंकिंग को सही साबित करने के इरादे से उतरेंगे। मौजूदा विश्व चैंपियन काशफअली ने इस दौरान पिछले अफ्रीका देश में अपने बचपन के दिनों को याद किया।काशफअली ने ओलंपिक सूचना सेवा (ओआईएस) से कहा, ‘‘ऐसा समय भी था जब हमें जीवित रहने के लिए भी जूझना पड़ रहा था।’’उन्होंने बुरे दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘एक रात जब मेरा परिवार सो रहा था तो अचानक हम उठ बैठे और हर तरफ आग की आगे थी क्योंकि कुछ बम फटे थे। दरवाजा खोलते ही हमने देखा कि लोग जमीन पर पड़े हुए हैं। आप मरने का इंतजार कर रहे थे।’’काशफअली का परिवार अंतत: उस माहौल से निकलने में सफल रहा। उन्होंने शरणार्थी शिविर में महीनों बिताए और फिर नॉर्वे के बर्गन में अपना आशियाना बनाया।परिवार के नॉर्वे बसने के बाद काशफअली का जीवन पूरी तरह से बदल गया।उन्होंने कहा, ‘‘नॉर्वे जाना लॉटरी लगने की तरह था। यह लाखों में एक को मिलने वाला मौका था, खाने के लिए भीख मांगने से सिर के ऊपर छत का सफर। आप जिस भी चीज की कल्पना कर सकते हो यह उससे बड़ी चीज थी। ’’हालांकि किशोरावस्था में एक बार फिर काशफअली की जिंदगी में अंधेरा छा गया जब उन्हें ‘स्टारगार्ट बीमारी’ का पता चला जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई।काशफअली ने कहा, ‘‘मैं शायद 13 साल के आसपास तक स्कूल नहीं गया। मैं पढ़ नहीं पाता था, मैं अपना नाम नहीं लिख पाता था। यह आसान नहीं था। धीरे धीरे चीजें सही हुई।’’किशोरावस्था में पहला अक्षर और अंक सीखने वाले काशफअली अब जब ट्रैक पर पसीना नहीं बहा रहे होते तो जूनियर स्कूल में गणित सिखाते हैं।उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हमेशा अपने पिता और मां से कहा कि अगर मुझे कभी भी स्कूल जाने का मौका मिला तो मैं शिक्षक बनना चाहूंगा। मैं पढ़ाना चाहूंगा।’’काशफअली की नजरें शुक्रवार को तोक्यो में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने पर टिकी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अब यहां तोक्यो में पहुंचकर पदक जीतने की स्थिति में होना, यह सभी खिलाड़ियों का सपना होता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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