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राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि विशेषः खैनी खाने की अफवाह से देश के पहले राष्ट्रपति बनने तक, 9 अहम बातें

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: February 28, 2018 08:40 IST

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की पोती तारा सिन्हा का कहना है, राजेंद्र बाबू के बारे में बहुत सारी अफवाहें हैं। उन्हें भारत रत्न तो दिया गया मगर उनके सम्मान में भारत में किसी प्रकार का कोई दिवस नहीं मनाया जाता।

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ठळक मुद्देबिहार भुकंप-बाढ़ पीड़ितों के लिए किया गया उनका कार्य उन्हें राजनेता के तौर स्‍थापित कर दिया।उनकी पोती तारा सिन्हा का कहना है, राजेंद्र बाबू के बारे में बहुत सारी अफवाहें हैं, सबसे झूठी बात ये है कि वे खैनी खाते थे। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद अपनी बहन के दाह संस्कार में भाग लेने गए

देश पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज (28 फरवरी, बुधवार) 45वीं पुण्यतिथ‌ि है। साल 1950 में जब देश में गणतंत्र लागू हुआ तो उन्हें देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया। हमारे देश के संविधान निर्माण में उनकी सबसे प्रमुख भूमिका रही। उनकी पोती डॉ. तारा सिन्हा कहती हैं कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ही संविधान की रूपरेखा तैयार की थी। उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया है। लेकिन उनके नाम पर ना कोई शिक्षण संस्‍‌थान है ना ही कोई ऐसा दिवस जो उनको समर्पित हो। बल्कि अफवाहों पर बात अधिक होती है। आइए जानते हैं डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की जीवन की 10 बेहद अहम बातें-

1- डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई छपरा जिला से हुई। महज 13 साल की उम्र में उनका राजवंशी देवी से विवाह हो गया। उनकी आत्मकथा के अनुसार शादी के बाद उन्होंने लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और बाद में पीएचडी की। वह बचपन से ही जल्दी सोते और सुबह जल्दी उठते थे। रात आठ बजते-बजते वह रात का खाना खा लेते थे। यहां तक उनकी मां भी इससे हैरान रहतीं।

2- पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले से हुई। उस एक मुलाकात के वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। ऐसा उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है। साल 1934 में जब बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान उन्होंने रिलीफ फंड जमा करने की बारी आई तो उन्होंने जी-जान लगा दी। बताया जाता है तब उन्होंने फंड के लिए 38 लाख रुपये जुटाए। यह पैसे वायसराय के फंड से तीन गुना ज्यादा था। जबकि इससे पहले वे दो साल तक जेल में रहे थे।

3- बिहार भुकंप-बाढ़ पीड़ितों के लिए किया गया उनका कार्य उन्हें राजनेता के तौर स्‍थापित कर दिया। साल 1934 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया। तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इस पद से इस्तीफा दिया था। यह बेहद कठिन समय था। ऐसे में उन्होंने पद का निर्वाह बेहद सरल और न‌िष्ठापूर्वक किया।

4- लेकिन उनकी पोती तारा सिन्हा ने बीबीसी से बातचीत में कहा था, 'राजेंद्र बाबू के बारे में बहुत सारी अफवाहें हैं, जिन्हें सुनकर बहुत दुख होता है। इनमें सबसे झूठी बात ये है कि वे खैनी खाते थे। डॉ. तारा सिन्हा के अनुसार, डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान की रूपरेखा तैयार की थी। लेकिन इस बात की आज उस रूप में चर्चा नहीं होती। उन्हें भारत रत्न तो दिया गया मगर उनके सम्मान में भारत में किसी प्रकार का कोई दिवस नहीं मनाया जाता है, न ही संसार में उनके नाम पर कोई शिक्षण संस्थान है।'

बीते दिसंबर उनकी जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतना कहा था-

5- 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया था। जबकि अगले दिन यानी 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने जा रहा था। ऐसे में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गए। इसके बाद करीब 12 सालों तक राष्ट्रपति पद पर देश की सेवा करने के बाद खुद ही 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की।

6- डॉ. राजेंद्र प्रसाद के काम और व्यवहार को देखते हुए भारत के महान कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने राजेंद्र प्रसाद को एक खत लिखा था। इसमें उन्होंने कहा, "मैं तुम पर भरोसा करता हूं कि तुम पीड़ित लोगों की मदद करोगे और खराब वक्त में भी लोगों के बीच एकता और प्यार को बनाए रखोगे।"

7- डॉक्‍टर राजेन्द्र प्रसाद को लिखने पढ़ने और भाषा से बहुत लगाव था। हिन्दी अंग्रेजी के अलावा उन्हें बंगाली और गुजराती का भी व्यावहारिक ज्ञान था। उन्होंने अपनी आत्मकथा (1994) समेत 'बापू के कदमों में', 'इण्डिया डिवाइडेड', 'सत्याग्रह ऐट चम्पारण', 'गांधीजी की देन', 'भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र' जैसी किताबें लिखी हैं।

8- साल 1962 में जैसे ही उन्होंने राष्ट्रपति पद से अवकाश लिया उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। उनकी पत्नी कुछ दिनों पहले लिखे एक संबोधन पत्र में लिखा था, "मुझे लगता है मेरा अन्त निकट है, कुछ करने की शक्ति का अन्त, सम्पूर्ण अस्तित्व का अन्त।" राम! राम!!"

9-  जिंदगी के आखिरी दिनों में वह फिर से अपने जन्मभूमि बिहार लौट गए थे। वहां पटना के पास सदाकत आश्रम में उन्होंने 28 फरवरी 1963 को अंमित सांस ली। उनकी वंशावली में उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त वैज्ञानिक व मनोचिकित्सक हैं।

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