चंद्रशेखर आजादः दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे!

By आदित्य द्विवेदी | Published: July 23, 2018 07:18 AM2018-07-23T07:18:32+5:302018-07-23T09:34:10+5:30

चंद्रशेखर आजाद-Chandra Shekhar Azad Birthday Special: भारत की स्वाधीनता आंदोलन के नायक, जिन्होंने पेश की साहस और बलिदान की अनूठी मिसाल। महान क्रांतिकारी के जन्मदिन पर पढ़ें उनके जीवन की कुछ रोचक घटनाएं...

Chandra Shekhar Azad Birthday Special: Interesting facts and incidents | चंद्रशेखर आजादः दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे!

चंद्रशेखर आजाद| Chandra Shekhar Azad Birthday Special| Chandra Shekhar Azad Interesting facts| Chandra Shekhar Azad incidents

एकबार चंद्रशेखर आजाद अपने कुछ क्रांतिकारी साथियों के साथ बैठे हुए थे। उनके मित्र मास्टर रुद्रनारायण ने ठिठोली करते हुए पूछा कि पंडित जी अगर आप अंग्रेज पुलिस के हत्थे गए तो क्या होगा? बैठक का माहौल गंभीर हो गया। थोड़ी देर सन्नाटा रहा। पंडित जी ने अपनी धोती से रिवॉल्वर निकाली और लहराते हुए कहा, 'जबतक तुम्हारे पंडित जी के पास ये पिस्तौल है ना तबतक किसी मां ने अपने लाडले को इतना खालिस दूध नहीं पिलाया जो आजाद को जिंदा पकड़ ले।' और ठहाका मारकर हंस पड़े। उन्होंने एक शेर कहा-

दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे!

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के ऐसे निडर नायक का आज जन्मदिन है। साहस और बलिदान की अनूठी मिसाल पेश करने वाले महान क्रांतिकारी के जीवन की एक झलक...

- 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश भाबरा में चंद्रशेखर तिवारी का जन्म हुआ। पिता सीताराम तिवारी और मां जगरानी देवी की इकलौती संतान थे चंद्रशेखर। किशोर अवस्था में उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य की तलाश थी। 

- 14 साल की उम्र में चंद्रशेखर घर छोड़कर अपना रास्ता बनाने मुंबई निकल पड़े। उन्होंने बंदरगाह में जहाज की पेटिंग का काम किया। मुंबई में रहते हुए चंद्रशेखर को फिर वही सवाल परेशान करने लगा कि अगर सिर्फ पेट ही पालना है तो क्या भाबरा बुरा था। 

- वहां से उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई के लिए काशी की ओर कूच किया। इसके बाद चंद्रशेखर ने घर के बारे में सोचना बंद कर दिया और देश के लिए समर्पित हो गए।

- आजाद की मां को हमेशा उनके लौटने का इंतजार रहा। शायद इसीलिए उन्होंने अपनी दो उंगलियां बांध ली थी और ये प्रण किया था वो इसे तभी खोलेंगी जब आजाद घर वापस आएंगे। उनकी दो उंगलियां बंधी ही रहीं और आजाद ने मातृभूमि की गोद में आखिरी सांस ले ली।

- उस वक्त देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन की धूम थी। उन्होंने काशी के अपने विद्यालय में भी इसकी मशाल जलाई और पुलिस ने अन्य छात्रों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 15 बेंतो की कठोर सजा सजा सुनाई गई। आजाद ने खुशी-खुशी सजा स्वीकार की और हर बेंत की मार के साथ वंदे मातरम चिल्लाते रहे। उसी दिन उन्होंने प्रण किया था कि अब कोई पुलिस वाला उन्हें हाथ नहीं लगा पाएगा। वो आजाद ही रहेंगे।

- असहयोग आंदोलन हिंसक आंदोलन था। लेकिन उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में लोगों के सब्र का बांध टूट गया और गांव वालों ने पुलिस थाने को घेरकर उसमें लाग लगा दी। इसमें 23 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। इससे क्षुब्द गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का फैसला कर दिया। 

- चंद्रशेखर आजाद अब अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर देश की आजादी के काम में लगे थे। चंद्रशेखर आजाद के बड़े भाई और पिता की जल्दी ही मृत्यु हो गई थी। वो अपनी अकेली मां की भी सुध नहीं लेते थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की।

- 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने एक निर्भीक डकैती को अंजाम दिया। इसमें बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और आजाद समेत करीब 10 क्रांतिकारी शामिल थे। अंग्रेजी खजाना लुटे जाने से अंग्रेजों में हड़कंप मच गया। ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। रामप्रसाद बिस्मिल समेत कई क्रांतिकारियों को पकड़कर उन्हें फांसी दे दी गई लेकिन चंद्रशेखर आजाद का कोई पता ना लगा सका। बिस्मिल के जाने से आजाद अकेले पड़ गए थे।

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27 फरवरी 1931 का वो दिन

चंद्रशेखर आजाद के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि मुख्यधारा की कांग्रेस पार्टी भी क्रांतिकारियों के विचारों को समझे। उन्होंने मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात करने का फैसला किया। 27 फरवरी 1931 की सुबह वो इलाहाबाद के आनंद भवन पहुंच गए जहां जवाहर लाल नेहरू का आवास था। आजाद के मुलाकात का जिक्र नेहरू ने अपनी जीवनी में भी किया है। आजाद जानना चाहते थे कि क्रांतिकारियों पर जो राष्ट्रद्रोह के मुकदमे चल रहे हैं वो आजादी के बाद भी चलते रहेंगे या खत्म कर दिए जाएंगे। दोनों के तेवरों में तल्खी थी। कहा जाता है कि नेहरू ने कहा कि आजादी के बाद भी इन लोगों को मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।

27 फरवरी की दोपहर आजाद अल्फ्रेड पार्क में थे और आगे की रणनीति बना रहे थे। अचानक अंग्रेज पुलिस की एक गोली आई और आजाद की जांघ में जा धंसी। आजाद जबतक कुछ समझ पाते पुलिस वालों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था। उन्होंने अपनी पिस्तौल निकाली और अपने क्रांतिकारी साथी को जाने के लिए कहा। आजाद सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लोहा लेते रहे और कई पुलिस अधिकारियों को घायल कर दिया। एक और गोली आई और आजाद के कंधे में जा धंसी।

अब आजाद की पिस्तौल में सिर्फ एक गोली बची थी। उन्होंने अपने पास की मिट्टी उठाई और माथे से लगा लिया। पुलिस का हाथ उनपर पड़े उससे पहले ही आजाद ने अपने पिस्तौल की आखिरी गोली अपनी कनपटी पर दाग दी। जिस जामुन के पेड़ की ओट में आजाद की मृत्यु हुई थी उसे रातों-रात कटवा दिया था। ताकि किसी को खबर ना लगे। लेकिन लोगों को पता चल गया। देशभर में क्रांति की लहर चल पड़ी।

आजाद इस इस देश की मिट्टी से लड़ते हुए इस देश की मिट्टी में शहीद हो गए। आजाद ने अपने जीवन के आखिरी पलों में भी इस बात को चरितार्थ कर दिया...

दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे!

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English summary :
Chandra Shekhar Azad Birthday Special: Chandrashekhar Tiwari was born on 23 July 1906 in Madhya Pradesh Bhabra. Chandrashekhar was the only child of father Sitaram Tiwari and mother Zakora Devi. In the teenage years, he was looking for the purpose of his life.


Web Title: Chandra Shekhar Azad Birthday Special: Interesting facts and incidents

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