महाराष्ट्र: मनरेगा के तहत 22.65 लाख लोगों ने ही मांगा काम, 23% फिर भी रहे खाली हाथ
By नितिन अग्रवाल | Published: July 22, 2020 07:40 AM2020-07-22T07:40:12+5:302020-07-22T08:38:03+5:30
मनरेगा योजना के तहत 20 जुलाई तक महाराष्ट्र में केवल 77 प्रतिशत लोगों को ही असल में काम मिला। कोरोना संकट के बीच चालू वित्त वर्ष में काम मांगने वालों की तादाद 22.65 लाख रही।
ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिन के रोजगार की गारंटी वाली मनरेगा योजना के तहत महाराष्ट्र में काम मांगने और काम मिलने के बावजूद 77 प्रतिशत लोगों को ही असल में काम मिला. कोविड-19 संक्रमण के चलते लॉकडाउन और उससे पैदा हुए रोजगार संकट के बावजूद 23 प्रतिशत लोग काम मिलने के बावजूद या तो काम पर पहुंचे ही नहीं या फिर उन्हें काम मिला ही नहीं.
ग्रामीण विकास मंत्रालय के मनरेगा के ताजा आंकड़ों के अनुसार 20 जुलाई तक महाराष्ट्र में 17.45 लाख लोगों को रोजगार मिला. चालू वित्त वर्ष में काम मांगने वालों की तादाद 22.65 लाख थी, जिनमें से 22.60 लाख को काम आवंंटित भी किया गया था. हालांकि राज्य में मनरेगा के तहत 2.24 करोड़ से अधिक ग्रामीण पंजीकृत हैं.
भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर, अमरावती और गढ़चिरोली में सबसे ज्यादा काम
मनरेगा के तहत राज्य के भंडारा (2.19 लाख), गोंदिया (1.65 लाख), चंद्रपुर (1.50 लाख), अमरावती (1.25 लाख) और गढ़चिरोली (1.21 लाख) जिलों में सबसे अधिक लोगों ने काम किया.
वहीं रायगढ़, नागपुर, वर्धा, रत्नागिरिऔर ठाणे जनपद में भले ही योजना के तहत काम करने वालों की संख्या कम रही, लेकिन काम आवंटन के मुकाबले काम करने वालों की दर यहां सबसे अधिक रही.
इन जनपदों में योजना के तहत काम पाने वाले प्रत्येक 100 लोगों में से क्र मश: 89.36, 87.76, 86.52, 85.87 और 85.24 लोगों ने वास्तव में काम किया.
काम के सबसे अधिक दिन सृजित करने वाले जिले
1 अप्रैल से 20 जुलाई तक राज्य में मनरेगा के तहत राज्य में कुल 2.45 करोड़ दिन का रोजगार सृजित हुआ. अमरावती (28.84 लाख), भंडारा (26.90 लाख), गोंदिया (21.67 लाख), चंद्रपुर (18.49 लाख )और पालघर (15.94 लाख) जिले काम के सबसे अधिक दिन सृजित करने वाले जिले रहे.
योजना के तहत काम पाने वाले कुल 17.45 लाख लोगों में से 20,762 लोग ऐसे थे जिन्होंने 100 दिन के काम की गारंटी वाली योजना के तहत 100 दिन का काम पूरा कर लिया. अमरावती जनपद में ऐसे लोगों की संख्या सबसे अधिक 5,987 थी. इसके बाद पालघर में 2,013, बीड़ में 1,318 और यवतमाल में 1,029 लोग 100 दिन काम कर चुके हैं.