महाराष्ट्र चुनाव: बीजेपी के साथ गठबंधन में 4 बड़े क्षेत्रों से शिवसेना गायब, 20 में से एक भी सीट नहीं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 4, 2019 08:08 IST2019-10-04T08:08:47+5:302019-10-04T08:08:47+5:30
Shiv Sena: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के गठबंधन में शिव सेना चार बड़े क्षेत्रों से पूरी तरह से बाहर नजर आ रही है, 20 में से नहीं मिली एक भी सीटें

शिवसेना को 20 में से एक भी सीटें नहीं मिली
मुंबई: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में 124 सीटों पर राजी होकर शिवसेना ने भाजपा का छोटा भाई बनना स्वीकार कर लिया> भाजपा ने सीटों की हिस्सेदारी में बाजी मारने के साथ ही शिवसेना को चार बड़े क्षेत्रों में एक तरह से बेदखल कर दिया है।
पुणे, नवी मुंबई, नागपुर और नासिक में विधानसभा की 20 सीटें हैं, लेकिन शिवसेना के खाते में इन चारों इलाकों से एक भी सीट नहीं है। ऐसे में मुंबई और ठाणे के बाहर शिवसेना की मौजूदगी नजर ही नहीं आती है। मुंबई की 36 सीटों में से शिवसेना 19 और भाजपा 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, ठाणे में भाजपा की एक सीट के मुकाबले शिवसेना के हिस्से में तीन सीटें आई हैं।
शिवसेना को दो विधान परिषद सीटों का वादा
सीट शेयरिंग के 164-124 फॉर्मूले में में दोनों सहयोगी कुछ शर्तों पर भी सहमत हुए हैं। शिवसेना का कहना है कि उसे भाजपा कोटे से विधान परिषद की दो अतिरिक्त सीटों का वादा किया गया है।
आरपीआई और आरएसपी जैसे सहयोगियों को भाजपा अपने कोटे में समायोजित करेगी। हालांकि भाजपा ने साफ किया है कि वह मुख्यमंत्री पद शेयर नहीं करेगी। साथ ही शिवसेना को उप मुख्यमंत्री का पद भी नहीं दिया जाएगा।
शिवसेना और भाजपा के बीच तीन दशक पुराना प्यार और तकरार का रिश्ता रहा है। इस साल मई में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले उद्धव की अगुआई वाली शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही।
2014 से पहले तक शिवसेना ने भाजपा को 105 से 119 सीटों के बीच हिस्सेदारी दी। सियासी जानकारों का मानना है कि शिवसेना 2014 की तरह जोखिम नहीं उठाना चाहती है, जब सीट बंटवारे पर बातचीत फेल होने के बाद दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
पहले की स्थिति से उलट हालात
एक राजनीतिक विश्लेषक ने बताया, यह पहले की स्थिति के उलट है। 2014 में, शिवसेना 288 सीटों में से 151 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। मोदी लहर पर सवार भाजपा ने शिवसेना के साथ सीट बंटवारे पर काफी जद्दोजहद की। लेकिन शिवसेना सीटें देने को राजी न होकर अपनी मांग पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने 122 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना ने 63 सीटें हासिल कीं।
खतरा मोल नहीं ले सकते उद्धव
शिवसेना के लिए इस बार का फैसला व्यावहारिक था. शिवसेना के एक पदाधिकारी ने कहा, एक ऐसे वक्त में जब भाजपा मोदी लहर और हिंदुत्व लहर दोनों पर सवार है, उद्धव अलग-थलग पड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकते। कांग्रेस-राकांपा के साथ भी गठबंधन की कोई संभावना नहीं थी, क्योंकि वे दूर-दूर तक सत्ता में लौटने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं।
उन्होंने हालात के हिसाब से फैसला लिया है, जैसा हम 2014 में नहीं कर सके थे। 100 से ज्यादा सीटें जीते तो लगाएंगे जोर पार्टी के नेताओं का यह भी मानना है कि आदित्य ठाकरे के चुनाव में उतरने के बाद उनकी बड़े अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन अहम था।
पार्टी पहले ही उन्हें अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट बताती रही है। इस बीच शिवसेना को पहली लिस्ट जारी होने के बाद अपने नेताओं की बगावत और इस्तीफों से भी जूझना पड़ रहा है। शिवसेना के एक नेता का कहना है, अगर हम अपना स्ट्राइक रेट सुधार लेते हैं और 100 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करते हैं तो हम मुख्यमंत्री और डेप्युटी सीएम के पद के लिए जोर लगा सकते हैं। हमें 100 सीटों के आंकड़े को पार करना होगा।
