महाराष्ट्र चुनाव: बीजेपी-शिवसेना के बीच सीट बंटवारा तय, जानें किसे मिली कितनी सीटें, शिवसेना झुकी या जीती?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 3, 2019 07:38 IST2019-10-03T07:30:30+5:302019-10-03T07:38:00+5:30
BJP Shiv Sena alliance: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के लिए बीजेपी और शिवसेना के बीच सीटों के बंटवारे पर राय बन गई है, जानिए कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा चुनाव

बीजेपी-शिवसेना ने किया है महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन
मुंबई। हां-नहीं, हां-नहीं करते-करते आखिरकार विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच बात जम गई। इन दोनों पार्टियों में कौन बड़ा भाई है और कौन छोटे भाई की भूमिका में है इस पर लंबे समय से चल रही बहस थमी और शिवसेना-भाजपा ने सीट बंटवारे के फॉर्मूले को मान लिया।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों दलों ने सीट बंटवारे को लेकर निर्णय करने में काफी देरी की और एक सामान सीटों के बंटवारे को लेकर अड़ने वाली शिवसेना आखिर भाजपा की तुलना में कम सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने के लिए तैयार हो गई।
क्या शिवसेना झुक गई?
तो क्या अंत में शिवसेना झुक गई? क्या उसने भाजपा को बड़े भाई के तौर पर स्वीकार कर लिया? इन चर्चाओं का बाजार गर्म है। परिस्थितियां कैसी भी रही हों और गठबंधन करने के कारण जो भी रहे हों लेकिन समझौता दोनों ही पार्टियों की मजबूरी थी। दोनों पार्टियों की स्थिति ऐसी थी कि न तो वो एक-दूसरे से अलग हो पा रहे थे और न ही साथ मिलकर आगे बढ़ पा रहे थे।
लोकसभा चुनाव में भगवा दल के कमाल दिखाने के बाद कांग्रेस और राकांपा के कई नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़कर शिवसेना और भाजपा का दामन थामा। वहीं कई निर्दलियों ने भी भाजपा-शिवसेना को अपना समर्थन देकर उनकी ताकत में और इजाफा किया।
इसके बावजूद भाजपा और शिवसेना ने इसलिए भी अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय नहीं किया ताकि इसका फायदा कांग्रेस और राकांपा आघाड़ी न उठा सकें। राजनीतिक जानकारों को मानना है कि गठबंधन के अलग होने का मतलब आघाड़ी को संजीवनी मिलने जैसा हो सकता था।
कांग्रेस-राकांपा को रोकने के लिए बीजेपी-शिवसेना गठबंधन!
भले ही कांग्रेस और राकांपा के कई नेताओं ने पार्टी को छोड़ दिया और दोनों दलों की स्थिति कमजोर हो गई है लेकिन आज भी दोनों पार्टियों का अच्छा खासा जनाधार है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। शिवसेना और भाजपा किसी भी परिस्थिति में विपक्ष को वापसी का मौका नहीं देना चाहते थे। इसी वजह से भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन करने का निर्णय किया।
गठबंधन होने के पीछे दोनों पार्टियों का कहीं न कहीं से एकदूसरे के प्रति भरोसा होना अहम कारण है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। और तभी से दोनों पार्टियों में शीतयुद्ध जैसा माहौल बना रहा।
दोनों दलों के नेताओं ने एक-दूसरे पर तीखे शब्दों के प्रहार जारी रखे। लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने शिवसेना को साथ चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया था।
उसी दौरान यह भी तय किया गया था कि दोनों पार्टियां विधानसभा का चुनाव भी साथ मिलकर ही लड़ेंगी। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी अगर दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़तीं तो इससे मतदाताओं में गलत संदेश भी जाता।
यह भाजपा की सेहत के लिए भी ठीक नहीं रहता कि वह लोकसभा चुनाव में दोस्ती गांठ लेती है फिर दूरी बना लेती है। ऐसे ही कई कारणों के कारण दोनों पार्टियों ने एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ने में ही अपनी भलाई समझी। अब गठबंधन के घोड़े गंगा नहाकर दौड़ने के लिए तैयार हैं।
अब इस चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर शिवसेना झुकी है या भाजपा ने उदारता दिखाई है। गठबंधन का विधानसभा चुनाव के परिणाम में क्या असर होगा यह चर्चा का विषय है।
बीजेपी 164, शिवसेना 124 पर लड़ेगी चुनाव
सीट बंटवारे को लेकर दोनों ही दलों ने समझदारी का परिचय दिया है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 123 सीटें मिलीं थीं इस हिसाब से बंटवारे में भाजपा ने अपेक्षाकृत ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया। वह 146 सीटों पर जबकि सहयोगी दलों को 18 सीटें दे रही है दोनों मिलाकर भाजपा के कोटे में 164 सीटें हैं।
वहीं दूसरी ओर शिवसेना के फिलहाल 63 विधायक हैं जबकि उसे सीट बंटवारे में 124 सीटें मिली हैं जो उसके सीटिंग विधायकों की संख्या का लगभग दोगुना है। इस हिसाब से यह कहना गलत है कि सीट बंटवारे के मामले में शिवसेना भाजपा के सामने झुक गई है। गठबंधन का लाभ शिवसेना को ही ज्यादा होगा ऐसा भी विशेषज्ञों का मत है।