भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में सहमति बन गई है कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के बीच तल्खी बढ़ती है, तो वह अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि भाजपा चाहती है कि शिवसेना '170-118' के फार्मूले पर राजी हो जाए. हालांकि किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले शिवसेना के जवाब का इंतजार किया जा रहा है. भाजपा बीते लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को भुनाना चाहती है. इसलिए उसने यह फार्मूला तय किया है.
बता दें कि भाजपा ने राज्य की करीब 188 सीटों पर अपना प्रभाव बड़े स्तर पर दर्ज किया था, जबकि शिवसेना करीब 80-83 सीटों पर प्रभावी रही थी. सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने शिवसेना को स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में स्थिति बदल गई है. पहले यहां पर मुख्य दल शिवसेना थी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद से देश भर में स्थिति में बदलाव हुआ है. अत: वह महाराष्ट्र में स्वबल पर चुनाव लड़ने के लिए समर्थ है.
ऐसे में शिवसेना को वक्त की नजाकत के लिहाज से आकलन करते हुए उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, जिस पर वह जीत दर्ज कर सकती है.
दिए स्पष्ट संकेत
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मुलाकात नहीं करके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुंबई दौरे के माध्यम से शिवसेना को साफ संदेश दिया जा चुका है. क्योंकि पहले कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों वरिष्ठ नेताओं के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत होगी और संभवत: उसी दिन मंच से युति का ऐलान भी कर दिया जाएगा. अब अमित शाह एक बार फिर 26 सितंबर को मुंबई जा रहे हैं.
शिवसेना कर चुकी है इनकार
शिवसेना इससे पूर्व कई मर्तबा सार्वजनिक मंचों से भाजपा के प्रस्ताव को सीधे तौर नकार चुकी है कि वह राज्य में बराबर की सीटों पर चुनाव के नीचे सहमत नहीं होगी. शिवसेना की मांग है कि राज्य में भाजपा और शिवसेना आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़ें. वहीं, भाजपा किसी भी हालत में शिवसेना को 120-125 से अधिक सीट देने को तैयार नहीं है.
नेताओं का गणित
भाजपा पदाधिकारियों के मुताबिक शिवसेना अगर अकेले चुनाव लड़ती है, तो वह 70-75 से अधिक सीट नहीं जीत सकती है. वहीं, भाजपा अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो वह 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. इसकी वजह बालाकोट, धारा 370 पर सरकार का ठोस और कठोर निर्णय करना है, जिससे भाजपा खासी उत्साहित है.