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मराठा आरक्षण कानून से जुड़ी याचिकाओं पर कोर्ट आज करेगा फैसला

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 27, 2019 08:15 IST

यह फैसला राज्य की तस्वीर बदलने वाला साबित होगा. इसीलिए संपूर्ण राज्य की निगाहें इस फैसले की ओर लगी हुई हैं. महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा प्रवर्ग आयोग ने घोषणा की है कि मराठा समाज शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है.

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ठळक मुद्देसरकार के इस निर्णय पर उच्च न्यायालय ने नवंबर 2014 में रोक लगा दी थी. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 30 नवंबर 2018 को मराठा आरक्षण का कानून बनाया.

राज्य सरकार ने शिक्षा क्षेत्र और सरकारी नौकरियों में मराठा समाज को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए 30 नवंबर 2018 को कानून बनाया. इस कानून का विरोध करने वाली व कुछ सरकार के निर्णय का समर्थन करने वाली याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर की गईं. गुरुवार को इन याचिकाओं पर उच्च न्यायालय अपना फैसला देगा.

विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च न्यायालय चाहे मराठा आरक्षण के पक्ष में निर्णय दे या विरोध में. यह फैसला राज्य की तस्वीर बदलने वाला साबित होगा. इसीलिए संपूर्ण राज्य की निगाहें इस फैसले की ओर लगी हुई हैं. महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा प्रवर्ग आयोग ने घोषणा की है कि मराठा समाज शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है. आयोग का कहना है कि शिवकाल की समाप्ति के बाद इस समाज की अवनति शुरू हुई. उसके बाद किसी भी राजनीतिक दल ने इस समाज की सुध नहीं ली.

इसके साथ-साथ परिवार के सदस्यों के कारण उनके घर की जमीन के अनेक टुकड़े होते गए. संपत्ति का बंटवारा होने से यह समाज आर्थिक रूप से कमजोर होता गया. 25 जून 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा समाज को 16 प्रतिशत तथा मुस्लिम समाज को 5 प्रतिशत आरक्षण की मंजूरी दी थी.

सरकार के इस निर्णय पर उच्च न्यायालय ने नवंबर 2014 में रोक लगा दी थी. इस बीच भाजपा सरकार सत्ता में आ गई और मराठा समाज ने बड़ी संख्या में राज्यभर मूक आंदोलन किए. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 30 नवंबर 2018 को मराठा आरक्षण का कानून बनाया. उसके बाद इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली और सरकार के निर्णय का समर्थन करने वाली अनेक याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर की गईं.

विविध स्तरों पर यह मुद्दा उठाया गया कि मराठा समाज को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद कौन से प्रवर्ग में समावेशित किया जाएगा. उसके बाद सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए 'सामाजिक और आर्थिक पिछड़ा प्रवर्ग' एक विशेष प्रवर्ग का निर्माण किया. मराठा समाज को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद राज्य का आरक्षण का प्रतिशत 68 प्रतिशत के ऊपर पहुंच गया है. फिलहाल तामिलनाडू राज्य में 69 प्रतिशत आरक्षण है.

उच्चतम न्यायालय का कहना है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसके बावजूद राज्य सरकार ने अपवादात्मक स्थिति दिखाते हुए आरक्षण बढ़ाया है. परंतु कानून की कसौटी पर मराठा आरक्षण संबंधी कानून खरा उतरता है क्या? इसका फैसला गुरुवार को होगा.

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