(उज्मी अतहर)
नयी दिल्ली, 29 जुलाई कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक संकट से बच्चे कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं। महामारी के समय लिए गए कर्ज का बोझ उतारने के लिए ऐसे बच्चे अपने परिवार की मदद करना चाहते हैं लेकिन वे मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं।
बिहार के एक गांव से जयपुर में चूड़ियों की फैक्टरी में काम करने जा रहे ऐसे ही एक बच्चे को रास्ते में मुक्त कराया गया। गया जिले के बिलाव नगर के 12 वर्षीय लड़के महेश (छद्म नाम) ने बताया, ‘‘काम करके मैं अपने दादा-दादी और भाई-बहनों की मदद कर सकता था। मुझे आठ साल की बहन और छह साल के भाई को भूखा देख बुरा लगता है..हम जिस आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हैं उसको समझने के लिए वे बहुत छोटे हैं।’’
देश में ऐसे हजारों बच्चे हैं जिन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान अपने अभिभावकों, दादा-दादी और अन्य बुजुर्गों द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए काम करना पड़ रहा है। ऐसे बच्चों की सटीक संख्या के बारे में नहीं पता है लेकिन कार्यकर्ताओं का मानना है कि मार्च 2020 से कर्ज में डूबे बच्चों की संख्या बढ़ी है।
गया में गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सेंटर डायरेक्ट के साथ काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दीना नाथ ने कहा, ‘‘इनमें से कई बच्चों के परिवारों ने लॉकडाउन के दौरान कर्ज लिए थे। अब उन्हें कर्ज अदा करना है। इससे इन बच्चों पर कमाने और अपने परिवार का सहयोग करने का दबाव आ गया है।’’
विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस 30 जुलाई को मनाया जाता है। नाथ ने कहा कि स्कूल बंद हैं, ऑनलाइन शिक्षा सबके बस में नहीं है, कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कई बच्चे तस्करी के शिकार हो रहे हैं और उनसे जबरन काम लिया जा रहा है। महेश को 17 अन्य बच्चों के साथ बिलाव नगर से जयपुर भेजा गया था। पुलिस और सेंटर डायरेक्ट के कार्यकर्ताओं ने उन्हें 25 जून को मुक्त कराया था।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, बाल तस्करी का आशय बच्चों को उनके सुरक्षात्मक वातावरण से बाहर निकालने और शोषण के उद्देश्य से उनके कमजोर हालात का फायदा उठाने के बारे में है। सेंटर डायरेक्ट के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार ने कहा कि तस्करी रोधी अभियान चलाते समय कई दिक्कतें आती हैं। कई बच्चे अपने परिवारों के साथ यात्रा कर रहे होते हैं जो जाली कागजात दिखा देते हैं कि बच्चा व्यस्क है। ऐसे बच्चों की तलाश करना अत्यंत कठिन हो जाता है।
एनजीओ सृजन फाउंडेशन के साथ काम करने वाले और ‘इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग’ से जुड़े धनमैत सिंह ने कहा कि बसों और अन्य सार्वजनिक परिवहन के शुरू होने के बाद से बहुत सारे बच्चों की तस्करी हुई है। उन्होंने कहा कि आजीविका के नुकसान के कारण कई माता-पिता ने बेहतर भविष्य की उम्मीद में अपने बच्चों को रिश्तेदारों के साथ जाने देने का फैसला किया।
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