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संशोधित जीएनसीटीडी कानून के एक प्रावधान पर न्यायालय जाएंगे : दिल्ली के विधानसभाध्यक्ष

By भाषा | Updated: August 6, 2021 20:58 IST

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नयी दिल्ली, छह अगस्त दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष राम निवास गोयल ने शुक्रवार को केंद्र पर जीएनसीटीडी कानून में संशोधन करके सदन की समितियों की शक्तियों को ‘‘छीनने’’ का आरोप लगाया और कहा कि वे इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे।

उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) कानून में संशोधन के माध्यम से केंद्र दिल्ली विधानसभा की समितियों की शक्ति में हस्तक्षेप करना चाहता है। इस साल मार्च में संसद में पारित संशोधित कानून यह स्पष्ट करता है कि दिल्ली में ‘‘सरकार’’ का अर्थ ‘‘उपराज्यपाल’’ है। कानून दिल्ली सरकार के लिए किसी भी कार्यकारी कार्रवाई से पहले उपराज्यपाल की राय लेना अनिवार्य बनाता है। यह विधानसभा को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के रोजाना कामकाज के प्रशासन के मामलों पर विचार करने के लिए स्वयं या उसकी समितियों को सक्षम करने के लिए कोई नियम बनाने से भी रोकता है और प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में कोई जांच करने की भी अनुमति नहीं देता है।

गोयल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम इस मामले में उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे। हम जीएनसीटीडी कानून के केवल उस हिस्से को चुनौती देंगे जो विधानसभा समितियों की शक्तियों को छीनने के संबंध में है। हम मामले पर कानूनी राय ले रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा पारित जीएनसीटीडी कानून ‘‘असंवैधानिक’’ है और चार जुलाई 2018 के उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ के फैसले का भी उल्लंघन है। गोयल ने कहा, ‘‘जिस दिन यह (कानून) पारित हुआ वह एक ‘काला दिन’ था।’’

केंद्र द्वारा संशोधित कानून को 27 अप्रैल 2021 को अधिसूचित किया गया था। गोयल ने कहा कि न्यायालय ने इस साल जुलाई में शांति और सद्भाव पर विधानसभा समिति के पक्ष में फैसला दिया था। यह समिति फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में फेसबुक की भूमिका की जांच कर रही है। शांति और सद्भाव पर विधानसभा समिति द्वारा जांच के सिलसिले में अपने अधिकारियों को तलब करने के बाद फेसबुक ने अदालत का रुख किया था। गोयल ने भूमि, पुलिस और लोक व्यवस्था सहित आरक्षित विषयों पर सवालों के जवाब नहीं देने के लिए अधिकारियों को उपराज्यपाल के निर्देशों की भी आलोचना की।

गोयल ने कहा कि 29 मार्च 2018 को उपराज्यपाल ने तत्कालीन कानून सचिव को पत्र लिखा था, जिन्होंने विधानसभा को पत्र के जरिए बताया कि किसी भी आरक्षित विषय पर प्रश्न स्वीकार नहीं किए जाएंगे। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है। मुझे उम्मीद है कि शीर्ष अदालत विधानसभा की उन शक्तियों को बहाल करेगी जो पूरी तरह से ‘अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक’ कानून के जरिए छीन ली गयी हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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