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यूएन में आतंकी मसूद अजहर पर हमेशा चीन क्यों अपनाता है टालमटोल का रवैया, ये हैं 5 बड़े कारण

By विनीत कुमार | Updated: March 14, 2019 09:53 IST

चीन के कारण मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का मामला फिर अगले कम से कम 6 महीने के लिए टल गया।

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ठळक मुद्देचीन ने चौथी बार मसूद अजहर के मामले में यूएन में लगाया अड़ंगामसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव फ्रांस ने किया था पेशभारत में पुलवामा सहित कई आतंकी हमले का जिम्मेदार है मसूद अजहर

जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पुलवामा अटैक की जिम्मेदार मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिशों पर चीन ने एक बार फिर झटका दे दिया। चीन ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए यह कहकर रोक लगा दिया कि उसे प्रस्ताव की पड़ताल करने के लिए और समय की जरूरत है। इस तरह मसूद का मामला फिर अगले कम से कम 6 महीने के लिए टल गया। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन यह 'तकनीकी रोक' छह महीने के लिए वैध है और इसे आगे तीन महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है।

यह चौथी बार है जब चीन ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिश पर रोक लगाई है। अजहर को आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव 27 फरवरी को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने लाया था। आइए जानते हैं कि आखिर चीन हमेशा से भारत के लिए अहम इस मुद्दे पर टालमटोल का रवैया क्यों अपनाता रहा है और मसूद अजहर पर उसका रवैया नरम क्यों है...

OBOR पर चीन को मसूद की जरूरत!

चीन के OBOR और CPEC प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में कई ऐसे इलाके हैं जहां जैश की पकड़ मजबूत है। ऐसे में जानकार बताते हैं कि चीन अगर मसूद के खिलाफ खड़ हुआ तो उसके इस प्रोजेक्ट को धक्का पहुंच सकता है। चीन के CPEC प्रोजेक्ट का बड़ा हिस्सा बहावलपुर से होकर गुजरता है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार यह जगह मसूद अजहर का गढ़ है। जानकारों के अनुसार मसूद की चीन के इस्लामिक संगठनों पर भी गहरी पैठ है। अगर चीन मसूद पर अपना रवैया कड़ा करता है तो उसके लिए अपने घर में भी मुश्किलों को सामना करना पड़ सकता है। चीन फिलहाल 2022 तक बलोचिस्तान के ग्वादर पोर्ट और वहां तक पहुंचने वाले रास्ते पर अपनी पकड़ बनाने पर लगा हुआ है और इसलिए वह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता।

दलाई लामा को शरण देने से चिढ़ता है भारत!

चीन के अक्सर भारत से कई मुद्दों पर विरोध जताने का एक कारण तिब्बत के शरणार्थियों और दलाई लामा को जगह देना भी है। साल 1958 में जब तिब्बत पर चीन शिकंजा कस रहा था तो वहां के लोगों और चीनी फौज में लड़ाई छिड़ी। चीनी सैनिक उस विरोध को दबाने में कामयाब रहे लेकिन हालात इतने बदतर होते चले गये कि चीन का विरोध करने वाले कई लोगों को वहां से भागना पड़ा। आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने भी तिब्बत छोड़ने का फैसला किया और चीनी सैनिकों से छिपते-छिपाते वे भारत आ गये।

एशिया में भारत को प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखता है चीन

भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और पिछले एक डेढ़ दशक में वैश्विक मुद्दों पर पहले से ज्यादा मुस्तैदी चीन के लिए सिरदर्द साबित हो रही है। चीन एशिया के इस हिस्से में भारत को अपने प्रतिद्वंद्वी की तरह देखता है। पिछले ही साल की आखिर में आई रिपोर्ट को देखें तो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की लिस्ट में 5 स्थान की छलांग लगाई। चीन और भारत जैसे देश उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के करीब पहुंच रहे हैं। आर्थिक मुद्दों और वैश्विक बाजार के अलावा हिंद महासागर में भी चीन दखल बढ़ाना चाहता है। इस कारण भी चीन और भारत एक-दूसरे के आमने-सामने आते रहे हैं।

मुस्लिम देशों और गुटनिरपेक्ष देशों के संगठन में चीन को मिलता है साथ

चीन हर वैश्विक प्लेटफॉर्म पर पाकिस्तान का साथ देता रहा है। ऐसा करने से उसे मुस्लिम देशों और गुटनिरपेक्ष देशों के संगठन में पाकिस्तान का साथ मिलता है। चीन का इसमें अपना फायदा है और इसलिए भी मसूद और पाकिस्तान को लेकर ज्यादा विरोध जतात हुआ नहीं दिखता। 

भारत-अमेरिका की दोस्ती से चिढ़ता है भारत

बराक ओबामा के अमेरिका के राष्ट्रपति रहने के दौरान भारत और यूएस के संबंध काफी तेजी से मजबूत हुए। यही से चीन के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। जानकार बताते हैं कि इसलिए भी भारत को चीन मसूद, पाकिस्तान के साथ तनाव और आतंकी मामलों में उलझाये रखना चाहता है। 

टॅग्स :मसूद अजहरचीनसंयुक्त राष्ट्रजैश-ए-मोहम्मदपुलवामा आतंकी हमला
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