किसी भी अपराधी को क्यों नहीं दी जानी चाहिए मौत की सज़ा? इन 5 कारणों से की जाती है मृत्युदण्ड खत्म करने की वकालत

By रंगनाथ सिंह | Published: January 24, 2020 02:45 PM2020-01-24T14:45:59+5:302020-01-24T15:37:49+5:30

साल 2012 में दिल्ली में एक चलती बस में पैरामेडिकल स्टूडेंट निर्भया के संग हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के चार दोषियों को एक फ़रवरी को मृत्युदण्ड की सज़ा दी जाएगी। मामले के पांचवे दोषी ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां से सभी दोषियों को माफ करने की अपील की, जिसके बाद इस पर बहस शुरू हो गयी।

why capital punishment should be abolished read amnesty international 5 reasons | किसी भी अपराधी को क्यों नहीं दी जानी चाहिए मौत की सज़ा? इन 5 कारणों से की जाती है मृत्युदण्ड खत्म करने की वकालत

किसी भी अपराधी को क्यों नहीं दी जानी चाहिए मौत की सज़ा? इन 5 कारणों से की जाती है मृत्युदण्ड खत्म करने की वकालत

Highlightsआज दुनिया के 106 देशों में मौत की सज़ा पर पूरी तरह प्रतिबंध है। 56 देशों में अब भी मौत की सज़ा दी जाती है।भारत में मृत्युदण्ड रेयरस्ट ऑफ दि रेयर मामलों में दिया जाता है।

जो दूसरों की हत्या करते हैं वो अपराधी होते हैं। सभ्य समाज में हत्या एक जघन्यतम अपराध माना जाता है। हत्या करने वालों को सभी देशों में कड़ी सज़ा देने का कानून है। लेकिन क्या सभ्य समाज हत्या करने वालों को मौत की सजा देकर ख़ुद हत्यारा नहीं बन जाता? क्या किसी मनुष्य किसी अदालत किसी कानून को यह हक़ है कि वो किसी अन्य मनुष्य की जान ले ले? क्या हत्यारे को सजा देने के लिए ख़ुद हत्यारा बन जाना नैतिक रूप से जायज है?

ये सवाल मानव सभ्यता को हजारों साल से मथते आ रहे हैं। मृत्युदण्ड सही है या ग़लत यह बहस सैकड़ों साल पुरानी है। जो इसे सही मानते हैं उनमें कई आला चिंतक और विचारक शामिल हैं। मसलन, तेरहवीं सदी के इतालवी विचार थामस एक्विनास मानते थे-

अगर कोई मनुष्य अपने समाज के लिए ख़तरा है और वह समुदाय को नुकसान पहुँचाने वाले पाप में लिप्त है तो सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए...आम तौर पर किसी आदमी की हत्या करना एक जघन्यतम पाप है, लेकिन किसी पापी की हत्या करना न्यायोचित हो सकता है, जैसे किसी खूंखार जंगली जानवर की हत्या की जाती है। जैसा कि अरस्तू ने कहा है कि एक पापी मनुष्य जानवरों से भी ज़्यादा बदतर और ख़तरनाक होता है। 

अपराध और दण्ड पर सैकड़ों सालों की इन बहसों का नतीजा है कि आज दुनिया के 106 देशों में मौत की सज़ा पर पूरी तरह प्रतिबंध है। भारत में भी दुर्लभ में दुर्लभतम मामलों में ही मौत की सज़ा दी जाती है।

इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि कई मानवाधिकार संगठन और विचारक मृत्युदण्ड का विरोध क्यों करते हैं-

 अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन एमेनस्टी इंटरनेशनल मृत्युदण्ड दिए जाने के खिलाफ मुहिम चलाता रही है। एमनेस्टी की वेबसाइट पर वो 5 तर्क मौजूद हैं जो मृत्युदण्ड खत्म किए जाने के लिए दिए जाते हैं- 

1- मौत की सजा वापस नहीं ली जा सकती-

मौत की सजा दिए जाने के ख़िलाफ़ सबसे पहला तर्क यह है कि इस सजा को एक बार दे दिए जाने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता। कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनमें मौत की सज़ा दिए जाने के बाद दोषी को निर्दोष पाया गया। एमनेस्टी के अनुसार साल 2004 में अमेरिका के टेक्सास में कैमरन टॉड विलिंघम नामक व्यक्ति को तीन बच्चियों को जलाकर मार देने का दोषी ठहराए जाने के बाद मृत्युदण्ड दे दिया गया। बाद में पता चला कि विलिंघम ने वह आग नहीं लगायी थी जिसमें बच्चियों की जान गयी थी।

2- मृत्युदण्ड से अपराध में कमी नहीं आती

माना जाता है कि जिन अपराधों के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता है उन्हें करने से लोग डरेंगे लेकिन आंकड़े इसकी गवाही नहीं देते। अभी तक ऐसा कोई ठोस अध्ययन सामने नहीं आया है कि मौत की सजा देने से सचमुच गम्भीर अपराधों में कमी आती है। कई बार इसके उलट मौत की सजा हटाए जाने के बाद हत्या जैसे अपराधों में कमी आयी। कनाडा में 1976 में मृत्युदण्ड पर रोक लगायी गयी। साल 2016 में कनाडा में पिछले 50 सालों में सबसे कम हत्या के मामले दर्ज हुए।

3- मौत की सज़ा देने के अमानवीय तरीके

मृत्युदण्ड के विरोध मानते हैं कि मौत की सजा देने के सारे तरीके अमानवीय होते हैं। ज़हरीले इंजेक्शन, फाँसी और गोली मारकर हत्या किये जाने के तरीकों से हिंसा को बढ़ावा ही मिलता है जबकि सभ्य समाज का मकसद हिंसा को कम करना होता है।

4- एक व्यक्ति की मौत का सार्वजनिक तमाशा बनाना

दुनिया के किसी भी देश में जब मौत की सजा दी जाती है तो सार्वजनिक विमर्श का विषय बन जाता है। एमनेस्टी के अनुसार सरेआम तमाशा बनाकर फांसी दिए जाने का कोई कानूनी औचित्य नहीं होता और इससे समाज में हिंसा और घृणा को बढ़ावा मिलता है। एक व्यक्ति की मौत का सार्वजनिक तमाशा बनाना-दुनिया के किसी भी देश में जब मौत की सजा दी जाती है तो सार्वजनिक विमर्श का विषय बन जाता है। एमनेस्टी के अनुसार सरेआम तमाशा बनाकर फांसी दिए जाने का कोई कानूनी औचित्य नहीं होता और इससे समाज में हिंसा और घृणा को बढ़ावा मिलता है। कई बार ऐसा भी होता है कि जिन्हें मौत की सज़ा दी जाती है उन अपराधियों को ग़ैर-जरूरी शोहरत हासिल होती है। मसलन पाकिस्तान के पंजाब सूबे के गवर्नर सलमान तासिर के हत्यारे मुमताज कादरी को मौत की सज़ा सुनायी गयी थी लेकिन इस पूरे मामले में एक बड़ा वर्ग कादरी के समर्थन में सड़कों पर उतर आया था।

5- मृत्युदण्ड के मामलों में आ रही कमी-

मौत की सज़ा ख़त्म करने के लिए एक तर्क यह भी है कि दुनिया के सभी देशों में मृत्युदण्ड की सज़ा में कमी आ रही है। आज दुनिया के दुनिया के 106 देशों में मौत की सज़ा पर पूरी तरह प्रतिबंध है। 28 देशों में व्यावहारिक तौर पर मृत्युदण्ड नहीं दिया जाता। आठ देशों में सामान्य अपराधों के लिए मृत्युदण्ड नहीं दिया जाता। वहीं 56 देशों में अब भी मौत की सज़ा दी जाती है। यानी कुल 142 देशों में मृत्युदण्ड पर कानूनी या अमली रोक है। केवल 56 देशों में ही मौत की सजा प्रचलित है। भारत में भी यह सज़ा रेयरस्ट ऑफ दि रेयर मामलों में दी जाती है।

वीडियो में देखें  इन 5 कारणों से की जाती है मृत्युदण्ड खत्म करने की वकालत...

English summary :
Debate over death penalty is right or wrong is hundreds of years old. Those who consider it right include many top thinkers. For example, the thirteenth century Italian thought Thomas Aquinas believed.


Web Title: why capital punishment should be abolished read amnesty international 5 reasons

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे