Bindeshwar Pathak: जानें कौन थे बिंदेश्वर पाठक, 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस की स्थापना, जानिए
By सतीश कुमार सिंह | Published: August 15, 2023 05:35 PM2023-08-15T17:35:06+5:302023-08-15T19:34:37+5:30
Bindeshwar Pathak: सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में अग्रणी, सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया।
Bindeshwar Pathak: सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। 80 वर्षीय सामाजिक उद्यमी भारत में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में अग्रणी थे। पाठक ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सुबह राष्ट्रीय ध्वज फहराया और उसके तुरंत बाद गिर गए।
बिंदेश्वर पाठक मूल रूप से बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले थे। उनका पैतृक गांव रामपुर बाघेल था। उन्होंने मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए बहुत प्रयास किए। उन्हें पहली बार 1968 में सफाईकर्मियों की दुर्दशा का एहसास हुआ, जब वे बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (सफाईकर्मियों की मुक्ति) सेल में शामिल हुए।
The passing away of Dr. Bindeshwar Pathak Ji is a profound loss for our nation. He was a visionary who worked extensively for societal progress and empowering the downtrodden.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 15, 2023
Bindeshwar Ji made it his mission to build a cleaner India. He provided monumental support to the… pic.twitter.com/z93aqoqXrc
पाठक को 1991 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुलभ इंटरनेशनल के देश भर में लगभग 8500 शौचालय और स्नानघर हैं। पाठक ने 1964 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1980 में मास्टर डिग्री और 1985 में पटना विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने देश की स्वच्छता समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस की स्थापना की। हाथ से मैला ढोने वालों की दुर्दशा को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। सुलभ ने सस्ती दो-गड्ढे वाली तकनीक का उपयोग करके लगभग 1.3 मिलियन घरेलू शौचालय और 54 मिलियन सरकारी शौचालयों का निर्माण किया है।
Sulabh International founder Bindeshwar Pathak dies at AIIMS Delhi due to cardiac arrest, a close aide says
— Press Trust of India (@PTI_News) August 15, 2023
देश में सार्वजनिक शौचालय के प्रवर्तक बिंदेश्वरी पाठक को ‘भारत के टॉयलेट मैन’ के तौर पर पर जाना जाता है। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन से सालों पहले शौचालय को सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा बनाया था। हालांकि, इसके लिए उन्हें अपने ससुर सहित कई लोगों के उपहास का भी सामना करना पड़ा था।
पाठक ने एक बार बताया था कि उनके ससुर महसूस करते थे कि उन्होंने अपनी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी है क्योंकि वह नहीं बता सकते कि उनका दामाद जीवनयापन के लिए क्या करता है। पाठक का मंगलवार को ध्वजारोहण के तुरंत बाद दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
उहोंने 1970 में सुलभ की स्थापना की थी जो सार्वजनिक शौचालय का पर्याय बन गया और खुले में शौच को रोकने के लिए जल्द ही यह आंदोलन बन गया। कार्यकर्ता और सामाज सेवी पाठक को कई लोग ‘सैनिटेशन सांता क्लास’ कहते थे। उनका जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में हुआ था और परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है।
The passing away of Dr. Bindeshwar Pathak Ji is a profound loss for our nation. He was a visionary who worked extensively for societal progress and empowering the downtrodden.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 15, 2023
Bindeshwar Ji made it his mission to build a cleaner India. He provided monumental support to the… pic.twitter.com/z93aqoqXrc
कॉलेज और कुछ लीक से अलग नौकरियों को करने के बाद वह 1968 में बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (मैला उठाने वालों की मुक्ति) प्रकोष्ठ में शामिल हो गए। उन्होंने भारत में मैला उठाने की समस्या को रेखांकित किया। जब उन्होंने देश भर की यात्रा की और अपनी पीएचडी शोधपत्र के हिस्से के रूप में सिर पर मैला ढोने वालों के साथ रहे तो उन्हें नयी पहचान मिली।
उन्होंने तकनीकी नवाचार को मानवीय सिद्धांतों के साथ जोड़ते हुए 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। संगठन शिक्षा के माध्यम से मानवाधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
पाठक द्वारा तीन दशक पहले सुलभ शौचालयों को किण्वन (फर्मेन्टेशन) संयंत्रों से जोड़कर बायोगैस बनाने का डिजाइन अब दुनिया भर के विकासशील देशों में स्वच्छता का पर्याय बन गया है। पाठक की परियोजना की एक विशिष्ट विशेषता यह रही कि गंध मुक्त बायोगैस का उत्पादन करने के अलावा, यह फॉस्फोरस और अन्य अवयवों से भरपूर स्वच्छ पानी भी छोड़ता है जो जैविक खाद के महत्वपूर्ण घटक हैं।
उनका स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है। ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक का विस्तार अब दक्षिण अफ्रीका तक किया जा रहा है। पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित पाठक को एनर्जी ग्लोब अवार्ड, दुबई इंटरनेशनल अवार्ड, स्टॉकहोम वाटर प्राइज, पेरिस में फ्रांस के सीनेट से लीजेंड ऑफ प्लैनेट अवार्ड सहित अन्य पुरस्कार भी प्रदान किये गये थे।
पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में पर्यावरण के अंतरराष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार से डॉ. पाठक को सम्मानित करते हुए उनकी सराहना की थी और कहा था,‘‘आप गरीबों की मदद कर रहे हैं।’’ वर्ष 2014 में, उन्हें सामाजिक विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने के लिए सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अप्रैल 2016 में, न्यूयॉर्क शहर के महापौर बिल डी ब्लासियो ने 14 अप्रैल, 2016 को बिंदेश्वर पाठक दिवस के रूप में घोषित किया। 12 जुलाई, 2017 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर पाठक की पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ का नयी दिल्ली में लोकार्पण किया गया था। वर्ष 1974 स्वच्छता के इतिहास में एक मील का पत्थर था जब 24 घंटे के लिए स्नान, कपड़े धोने और मूत्रालय (जिसे सुलभ शौचालय परिसर के रूप में जाना जाता है) की सुविधा सहायक के साथ भुगतान कर इस्तेमाल करने के आधार पर शुरू की गई थी।
अब सुलभ देश भर के रेलवे स्टेशनों और शहरों में शौचालयों का संचालन और रख-रखाव कर रहा है। भारत के 1,600 शहरों में 9,000 से अधिक सामुदायिक सार्वजनिक शौचालय परिसर मौजूद हैं। इन परिसरों में बिजली और 24 घंटे पानी की आपूर्ति है। परिसरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग स्थान बने हैं।
उपयोगकर्ताओं से शौचालय और स्नान सुविधाओं का उपयोग करने के लिए नाममात्र राशि ली जाती है। कुछ सुलभ परिसरों में स्नान सुविधा, अमानत घर, टेलीफोन और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी दी जाती हैं। इन परिसरों का उनकी स्वच्छता और अच्छे प्रबंधन के कारण लोगों और अधिकारियों दोनों द्वारा व्यापक रूप से पसंद किया जाता है।
भुगतान और उपयोग प्रणाली सार्वजनिक खजाने या स्थानीय निकायों पर कोई बोझ डाले बिना आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करती है। परिसरों ने रहने के माहौल में भी काफी सुधार किया है। वित्त वर्ष 2020 में सुलभ का 490 करोड़ रुपये का ‘टर्नओवर’ था।
सुलभ केवल शौचालय का ही संचालन नहीं करता बल्कि कई व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान भी चला रहा है जहां पर सफाईकर्मियों,उनके बच्चों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के व्यक्तियों को मुफ्त कंप्यूटर, टाइपिंग और शॉर्टहैंड, विद्युत व्यापार, काष्ठकला, चमड़ा शिल्प, डीजल और पेट्रोल इंजीनियरिंग, सिलाई, बेंत के फर्नीचर बनाने जैसे विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
मैला ढोने वालों के बच्चों के लिए दिल्ली में एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल स्थापित करने से लेकर वृन्दावन में परित्यक्त विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने या राष्ट्रीय राजधानी में शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने तक, पाठक और उनके सुलभ ने हमेशा हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान की दिशा में काम किया।
पाठक ने एक बार कहा था कि मैडम तुसाद का दौरा करने के बाद उन्होंने शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने के बारे में सोचा था। इस संग्रहालय को अक्सर दुनिया भर के सबसे अजीब संग्रहालयों में से एक माना जाता है, लेकिन यह 1970 के दशक में शुरू हुई उनकी यात्रा का वर्णन करता है, जब उन्होंने स्वच्छता पर महात्मा गांधी के मार्ग पर चलने और समाज के सबसे निचले तबके के लोगों के उत्थान का फैसला किया था।