रिहा होने वाले हैं जस्टिस कर्णन, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हलचल

By स्वाति सिंह | Published: December 20, 2017 09:38 AM2017-12-20T09:38:36+5:302017-12-20T12:02:46+5:30

एक के बाद एक न्यायाधीशों पर आरोप लगाए थे जस्टिस कर्णन ने।

Who is Justice C S Karnan? | रिहा होने वाले हैं जस्टिस कर्णन, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हलचल

रिहा होने वाले हैं जस्टिस कर्णन, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हलचल

पूर्व कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन बुधवार को रिहा हो सकते हैं। न्यायमूर्ति सीएस कर्णन, अदालत की अवमानना ​मामले में कोलकाता के प्रेसीडेंसी जेल में छह महीने की सजा काट रहे हैं। उन्हें 20 जून को पश्चिम बंगाल पुलिस ने तमिलनाडु के कोयम्बटूर के एक गेस्ट हाउस से गिरफ्तार किया था। उनकी रिहाई की खबर आने से एक बार फिर से न्यायाधीश वर्ग में हलचल है। कर्णन न्यायाधीशों पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं।  

यह जानना जरूरी है कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायपालिका के अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ उनकी टिप्पणियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की बेंच ने उन्हें अदालत की अवमानना ​​का दोषी पाया था।

न्यायाधीशों को बताया था भ्रष्ट

न्यायमूर्ति कर्णन, जनवरी 2017 में सुर्खियों में आए थे। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के 20 से अधिक न्यायाधीशों को भ्रष्ट बताया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर यह जानकारी सार्वजनिक की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ बोलने के लिए कर्णन को नोटिस भेजा और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से  निलंबित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की बेंच ने कर्णन को उच्च न्यायालय से जुड़ी हुई अदालत में पेश किया और बाद में अवमानना का आरोप लगाया।

बाद में उन्हें आरोपों का दोषी पाया गया। भारत के अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने यहां तक कहा कि ऐसे किसी मामले के लिए कर्णन केस की सजा को उदाहरण के रूप में रखा जाना चाहिए। इससे न्यायालय की रक्षा होगी।

सुर्खियों में जस्टिस सी एस कर्णन


2011- कर्णन ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति (एनसीएससी) से मद्रास उच्च न्यायालय के अन्य जजों पर जाति उत्पीड़न का आरोप लगाया था।  उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था कि उन्हें अप्रैल 2009 से अपमान और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक न्यायाधीश ने उन्हे अपने पैर से छुआ, जिसके बाद न्यायालय के परिसर में आंदोलन हुआ। तत्कालीन एनसीएससी चेयरमैन पीएल पुनिया ने यह विवाद मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया को सौंप दिया था।

2014- न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित पीआईएल पर मद्रास उच्च न्यायालय में  सुनवाई के दौरान न्यायाधीश कर्णन ने अन्य जजों पर अनुचित चयन का आरोप लगाया था। 

2015- न्यायमूर्ति कर्णन ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि एक न्यायाधीश ने अपने चैम्बर में एक दलित इंटर्न का यौन उत्पीड़न किया था लेकिन बाद में कर्णन यह आरोप तब सिद्ध नहीं कर पाए। वहीं साल के अंत में उन्होंने न्यायमूर्ति कौल को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने डमी केस की वजह से लंबी  छुट्टी की मांग की थी।

2016- मद्रास हाईकोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों संबंधित सुनवाइयों में कर्णन ने अदालत में रहकर पूरे मामले को सुनने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया।

कर्णन की पृष्ठभूमि

जस्टिस कर्णन का जन्म तमिलनाडु में कुड्डालोर जिले के कर्नाथम गांव में 12 जून, 1 9 55 को हुआ था। उनके पिता आदर्श शैक्षणिक वंशावली में प्राध्यापक थे। उन्हें बेहतर काम के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था। उनकी मां कमलम अम्मल गृहिणी थीं।

कर्णन ने मंगलाम्पेट हाई स्कूल में अपनी की शिक्षा पूरी की और विरुधछलम आर्ट्स कॉलेज में अपना विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम चलाया। इसके बाद उन्होंने चेन्नई के कॉलेज से बी एससी की डिग्री ली। फिर उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज से जुड़कर 1 9 83 में अपनी क़ानून की डिग्री पूरी की। स्नातक होने के बाद उन्होंने सिविल अभ्यास शुरू किया। उन्होंने बार कौंसिल ऑफ तमिलनाडु के समक्ष एक वकील के रूप में अपना नामांकन किया।

इसके बाद उन्हें मेट्रो जल संगठन के कानूनी सलाहकार, सिविल सूट में सरकारी वकील और भारत सरकार के लिए स्थायी सलाहकार चुना गया। उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की और एनसीसी और एनएसएस का हिस्सा बने। उन्होंने 200 9 के बाद से मद्रास उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में सेवा की है। उनका नाम जस्टिस (सेवानिवृत्त) ए के गांगुली की सिफारिश से लिया गया था, जो तब मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।

फरवरी 2016 में, उनके स्थानांतरण का आदेश कलकत्ता उच्च न्यायालय को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। हालांकि, उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के नौ-बेंच के फैसले का हवाला दिया और सीजेआई के आदेश पर रोक लगा दी।

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