गुजरात में किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट? खामोश हैं वोटर, समर्थक हैं मुखर

By महेश खरे | Published: May 16, 2019 08:46 AM2019-05-16T08:46:18+5:302019-05-16T08:46:18+5:30

पिछले चुनावों में भाजपा ने बहुमत हासिल कर राज्य को भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई है, इस कारण ही भाजपा को ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि वोटर इस बार अपनी नब्ज पर हाथ नहीं रखने दे रहा.

What will be the electoral fate in Gujarat? voters Silent, supporter vocal | गुजरात में किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट? खामोश हैं वोटर, समर्थक हैं मुखर

गुजरात में किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट? खामोश हैं वोटर, समर्थक हैं मुखर

Highlightsनावी उदासीनता का सबसे बड़ा कारण रोजमर्रा की समस्याओं में मतदाता का जरूरत से ज्यादा उलझा रहना है.काम की तलाश में घर छूटने की पीड़ा को सहने को विवश हैं गांव के युवा.

गुजरात का चुनावी माहौल इस बार पिछले चुनावों से कई मायनों में भिन्न रहा. आम वोटर ने गजब की चुप्पी साध रखी है, इससे चुनावी हवा का रुख भांपना मुश्किल हो गया है. इसके विपरीत मुख्य प्रतिद्वंद्वी सियासी दलों भाजपा और कांग्रेस के समर्थक अवश्य मुखर हैं. गुजरात के कई क्षेत्रों का चुनावी दौरा कर चुके पत्रकारों ने बताया कि इस बार चुनावी ऊंट किस करवट बैठ रहा है, मतदाता की खामोशी के कारण समझ पाना कठिन हो रहा है.

चूंकि पिछले चुनावों में भाजपा ने बहुमत हासिल कर राज्य को भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई है, इस कारण ही भाजपा को ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि वोटर इस बार अपनी नब्ज पर हाथ नहीं रखने दे रहा. चुनावी उदासीनता का सबसे बड़ा कारण रोजमर्रा की समस्याओं में मतदाता का जरूरत से ज्यादा उलझा रहना है. ग्रामीण और दूरदराज के शहरी क्षेत्रों की अगर बात करें तो यहां की आबादी भीषण जलसंकट से जूझ रही है.

गुजरात के 230 डैम में मात्र 20% पानी बचा है. 3-4 किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ रहा है. ऐसे माहौल में चुनावी चर्चा की जगह प्यासी जनता पानी मांग रही है. सरकार ने 96 तहसीलों को बहुत पहले ही दुष्काल पीडि़त घोषित कर रखा है. फसल बर्बादी से परेशान किसान अपने परिवार को भेट भरे या चुनावी चर्चा करे, यह बड़ा प्रश्न है.

शहरी क्षेत्रों में हो रहा जोड़-घटाओ राज्य के शहरी क्षेत्रों में अवश्य चुनावी चर्चा का माहौल है, लेकिन वह भी पार्टी कार्यकर्ताओं या समर्थकों तक ही सीमित है. लेकिन यहां भी बेरोजगारी युवाओं के लिए बड़ी समस्या बनकर खड़ी है. चूंकि शहरी क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा है इसलिए कहा जा सकता है कि शहरों में भगवा लहरा रहा है. लेकिन गांव में 60 से 70 फीसदी आबादी समस्याओं में उलझी है, काम की तलाश में घर छूटने की पीड़ा को सहने को विवश हैं गांव के युवा. उनकी खामोशी क्या रंग लाएगी कहा नहीं जा सकता. चुनाव परिणाम का सबको इंतजार है.

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