क्या है OPS बनाम NPS की लड़ाई, क्यों हो रही है पुरानी पेंशन स्कीम के बहाली की मांग
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 9, 2023 04:11 PM2023-01-09T16:11:57+5:302023-01-09T16:22:39+5:30
बीते कुछ समय से राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने के लिए आंदोलन चल रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब की सरकारों ने इसे लागू भी कर दिया है। आखिर क्यों हो रहा है नेशनल पेंशन सिस्टम का विरोध और पुरानी पेशन स्कीम की मांग। यहां इसी बात को समझने का प्रयास किया गया है।
दिल्ली: पेंशन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा अपने पूर्व कर्मचारियों को दिये जाने वाली वह धनराशी होती है, जो उन्हें सेवाओं के बाद अच्छे जीवनयापन के लिए दी जाती है। इस पेंशन के दो स्वरूप हैं, एक तो मौजूदा समय में चल रही नेशनल पेंशन सिस्टम के तहत आती है वहीं दूसरी को पुरानी पेंशन स्कीम कहते हैं।
पुरानी पेंशन स्कीम
पुरानी पेशन के हकदार वो कर्मचारी हैं, जिन्होंने 1 अप्रैल 2004 से पहले केंद्र या राज्य सरकार की सेवाओं के अधीन सेवाओं में नियोजन किया हो। वहीं उसके बाद केंद्र या राज्य की सेवाओं में शामिल होने वाले कर्मचारियों को नई पेंशन सिस्टम के तहत सेवाकाल खत्म होने के बाद पेंशन दी जाती है।
पुरानी पेंशन स्कीम और नई पेंशन सिस्टम में कर्मचारी की सेवाकाल खत्म होने के बाद एकमुश्त और माहवार पेंशन देने का प्रवधान है, बावजूद इसके दोनों पेंशन सिस्टम में भारी अंतर है।
पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के बाद सेवाकाल की अंतिम सैलरी का 50 फीसदी बतौर पेंशन हर महीने देने का प्रावधान है और वह पेंशन सीधे सरकारी खजाने यानी ट्रेजरी से दी जाती है, यानी पुरानी पेंशन स्कीम की पूरी जिम्मेदारी सीधे तौर पर केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। जबकि नेशनल पेंशन सिस्टम में ऐसा नहीं है। नेशनल पेंशन सिस्टम का संचालन पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है।
नेशनल पेंशन सिस्टम
साल 2004 के बाद लागू हुई नई पेंशन प्रणाली शेयर बाजार के आधार पर चलती है। इसमें फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण की योजना के तहत 10 साल की लॉक-इन अवधि के लिए शेयर आधारित मुनाफे की तय दर से पेंशन के भुगतान का प्रावधान है। इस कारण नई पेंशन में उतार-चढ़ाव भी हो सकते हैं क्योंकि यह बाज़ार जोखिमों से जुड़ा है और रिटर्न आधारित है। इसके साथ ही नई पेंशन सिस्टम में कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद किसी भी तरह का महंगाई भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है।
इसमें दी जाने वाली पेंशन के लिए कर्मचारी को बेसिक वेतन और डीए का 10 फीसदी हिस्सा पेंशन फंड में निवेश करना होगा। रिटायरमेंट के बाद पेंशन के लिए कर्मचारी को अपने ही जमा फंड से 40 फीसदी पैसा नेशनल पेंशन सिस्टम के जरिये निवेश करना पड़ता है जबकि 60 फीसदी हिस्सा वो एकमुश्त निकाल सकते हैं और निकाली गई धनराशि पूरी तरह से टैक्स फ्री होगी।
अगर आम भाषा में कहें तो नई पेंशन सिस्टम शेयर बाजार से निर्धारित होती है, जिसके पेंशन तय नहीं होगी यानी इसमें मिलने वाली पेंशन की धनराशि में अनिश्चितता बनी रहेगी। इसके साथ ही नई पेंशन सिस्टम में पेंशनधारक की मृत्यु के बाद उसके परिजनों को किसी तरह के पेंशन का प्रवधान नहीं है।
केंद्रीय कर्मचारियों के लिए 1 जनवरी 2004 से नई पेंशन सिस्टम अनिवार्य है, वहीं राज्यों की बात करें तो पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य सभी राज्यों ने केंद्र के निर्देश का अनुपालन करते हुए अपने कर्मचारियों के लिए नेशनल पेंशन सिस्टम लागू कर दिया है।
पुरानी पेंशन के लिए आंदोलन क्यों?
बीते कुछ समय से कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने के लिए आंदोलन चल रहे हैं या कुछ राज्यों मसलन छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब की सरकारों ने इसे लागू कर दिया है, वहीं हिमाचल प्रदेश भी जल्द ही इस कतार में शामिल होने वाला है। दरअसल पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर यह तर्क दिया जाता है कि इसके तहत साल 2004 से पहले के कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद सरकार निश्चित पेंशन देती थी, जो कि कर्मचारी के रिटायरमेंट के समय मिलने वाले वेतन पर आधारित होती थी।
इस स्कीम में रिटायर हुए कर्मचारी की मौत के बाद उनके परिजनों को भी पेंशन दी जाती थी। पुरानी पेंशन सिस्टम के तहत पेंशन देने के लिए कर्मचारियों के वेतन से किसी भी तरह की कटौती नहीं होती थी। पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायर होने वाले कर्मचारी को 6 महीने के बाद महंगाई भत्ता भी दिये जाने का प्रावधान है और पेंशन के लिए कर्मचारी को रिटायरमेंट के समय जनरल प्राविडेंट फंड में किसी तरह की धनराशि का निवेश नहीं करना होता है।
लेकिन पुरानी पेंशन स्कीम में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए सरकार के पास अलग से कोई फंड नहीं है। भारत सरकार हर साल बजट में ही पेंशन का प्रावधान करती है, जिसके कारण उसके द्वारा वसूले गये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स कलेक्शन की तुलना में पेंशन का बोझ साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है, जिसका सीधा और प्रतिकूल असर देश के विकास पर पड़ रहा है।