अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कल्याण योजनाएं ‘‘कानूनी रूप से वैध’’, असमानता को कम पर केंद्रित : केंद्र ने न्यायालय से कहा

By भाषा | Published: July 14, 2021 04:12 PM2021-07-14T16:12:26+5:302021-07-14T16:12:26+5:30

Welfare schemes for minority communities "legally valid", focused on reducing inequality: Center to HC | अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कल्याण योजनाएं ‘‘कानूनी रूप से वैध’’, असमानता को कम पर केंद्रित : केंद्र ने न्यायालय से कहा

अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कल्याण योजनाएं ‘‘कानूनी रूप से वैध’’, असमानता को कम पर केंद्रित : केंद्र ने न्यायालय से कहा

नयी दिल्ली, 14 जुलाई केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिए चलाई जा रहीं कल्याणकारी योजनाएं ‘‘कानूनी रूप से वैध’’ हैं और ये असमानता को घटाने पर केंद्रित हैं तथा इनसे हिन्दुओं या अन्य समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता।

केन्द्र ने एक याचिका के जवाब में शीर्ष अदालत में दायर एक शपथ पत्र में यह दलील दी है।इस याचिका में कहा गया है कि कल्याणकारी योजनाओं का आधार धर्म नहीं हो सकता। यह याचका नीरज शंकर सक्सेना और पांच अन्य लोगों ने दायर की है।

केंद्र ने अपने शपथपत्र में कहा है कि मंत्रालय द्वारा लागू की जा रही योजनाएं अल्पसंख्यक समुदायों में असमानता को कम करने, शिक्षा के स्तर में सुधार, रोजगार में भागीदारी, दक्षता एवं उद्यम विकास, निकाय सुविधाओं या अवसंरचना में खामियों को दूर करने पर केंद्रित हैं।

शपथपत्र में कहा गया, ‘‘ये योजनाएं संविधान में प्रदत्त समानता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं हैं। ये योजनाएं कानूनी रूप से वैध हैं क्योंकि ये ऐसे प्रावधान करती हैं जिससे कि समावेशी परिवेश प्राप्त किया जा सके और अशक्तता को दूर किया जा सके। इसलिए इन योजनाओं के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदायों के सुविधाहीन/वंचित बच्चों/अभ्यर्थियों की सहायता करने को गलत नहीं कहा जा सकता।’’

केंद्र ने कहा कि कल्याणकारी योजनाएं केवल अल्पसंख्यक समुदायों के कमजोर तबकों/वंचित बच्चों/अभ्यर्थियों/महिलाओं/ के लिए हैं, न कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित सभी व्यक्तियों के लिए।

नीरज शंकर सक्सेना और पांच अन्य लोगों की याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को जो लाभ मिल रहे हैं, उनसे याचिकाकार्ताओं को उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर संवैधानिक रूप से वंचित रखा जा रहा है।

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता और हिन्दू समुदाय के अन्य सदस्यों को इसलिए पीड़ित होना पड़ रहा है क्योंकि वे बहुसंख्यक समुदाय में पैदा हुए हैं। इसमें कहा गया है कि भारतीय संविधान के पंथनिरपेक्ष सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए राज्य अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक-किसी भी समुदाय को धर्म के आधार पर कोई लाभ प्रदान नहीं कर सकता या किसी तरह के लाभ को बढ़ावा नहीं दे सकता।

याचिकाकर्ताओं की दलील है कि इस तरह का ‘‘अनुचित लाभ’’ प्रदान कर केंद्र मुस्लिम समुदाय को कानून और संविधान से ऊपर मान रहा है क्योंकि इस तरह का कोई लाभ हिन्दू समुदाय के संस्थानों को नहीं मिलता।

याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 को निरस्त करने का भी आग्रह किया गया है और कहा गया है कि पिछड़े वर्गों की स्थिति का पता लगाने के लिए पहले से ही पिछड़ा वर्ग आयोग है।

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Web Title: Welfare schemes for minority communities "legally valid", focused on reducing inequality: Center to HC

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