कश्मीर में विद्रोह के स्वर, सारे प्रदेश में स्मार्ट मीटरों पर चुप्पी व करगिल में स्वायत परिषद के चुनाव

By सुरेश एस डुग्गर | Published: August 17, 2023 05:00 PM2023-08-17T17:00:19+5:302023-08-17T17:02:12+5:30

प्रदेश के सोशल मीडिया प्रभारी अभिजीत जसरोटिया को हटा दिया गया और वीर सराफ जो दक्षिण कश्मीर में पार्टी के प्रभारी थे और मुदासिर वानी जो उत्तरी कश्मीर के प्रभारी थे दोनों को अपने जम्मू मुख्यालय में वापस बुला लिया।

Voice of rebellion in Kashmir silence on smart meters in the entire state and autonomous council elections in Kargil | कश्मीर में विद्रोह के स्वर, सारे प्रदेश में स्मार्ट मीटरों पर चुप्पी व करगिल में स्वायत परिषद के चुनाव

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी कई परेशानियों के दौर से गुजरने को मजबूर है। अगर कश्मीर में पार्टी नेताओं के खिलाफ तेज होते विरोधी स्वर उसकी कश्मीर में जमीन खिसका रहे हैं तो पूरे प्रदेश में बिजली के स्मार्ट मीटरों के खिलाफ चल रहे आंदोलन पर उसकी चुप्पी और समर्थन न देने की रणनीति उसके लिए भारी साबित होने वाली है।

ऐसा ही कुछ हाल बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के करगिल में होने जा रहे स्वायत परिषद के चुनावों में भाजपा का है। बिजली के स्मार्ट मीटरों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन अब पूरे जम्मू कश्मीर में फैल गया है। सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए इन्हें जबरदस्ती लगाना आरंभ किया है और विरोध करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज करने के अतिरिक्त बिजली कनेक्शन काटने की नीति अपना रखी है।

ऐसे में पूरे प्रदेश में लोग सड़कों पर हैं। प्रत्येक राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक संस्थाएं इन विरोध करने वालों के साथ सड़कों पर हैं सिवाय भाजपा के।

यूं तो भाजपा कार्यकर्ता भी इन स्मार्ट मीटरों से त्रस्त हैं पर पार्टी की नीतिओं के चलते वे लोगों के कटाक्ष का शिकार हो रहे हैं। इन भाजपा कार्यकर्ताओं का तो यह भी मानना है कि कहीं प्रदेश में चुनावों के दौरान यह स्मार्ट मीटर ताबूत में आखिर कील न साबित हो जाए।

वैसे भी पहले ही जम्मू कश्मीर के नए सीट बंटवारे के बाद केंद्र सरकार पर कश्मीर के नेताओं ने आरोप लगा कर अपना विरोध जताना आरंभ किया था और कहा था कि सरकार जान बूझकर कश्मीर की हिस्सेदारी कम करना चाहती है। ऐसे ही कुछ आरोप फिर से लगे हैं लेकिन इस बार कश्मीर में भाजपा नेताओं ने यह आरोप लगाए हैं।

इस मामले पर कश्मीरी भाजपा नेताओं ने इस्तीफे की धमकी देते हुए कहा कि पार्टी को प्रदेश संगठन में जम्मू के लोगों का दखल कम करना चाहिए। इसके बाद एक ऐक्शन भी हुआ। पार्टी ने अपने संगठन में तीन बदलाव किये।

प्रदेश के सोशल मीडिया प्रभारी अभिजीत जसरोटिया को हटा दिया गया और वीर सराफ जो दक्षिण कश्मीर में पार्टी के प्रभारी थे और मुदासिर वानी जो उत्तरी कश्मीर के प्रभारी थे दोनों को अपने जम्मू मुख्यालय में वापस बुला लिया। अब तक भाजपा प्रदेश में केवल एक बार सत्ता में रही है, वो भी पीडीपी के साथ गठबंधन में।

ऐसे समय में जबकि इस बार वह अकेले चुनाव में जाने की सोच रही थी और कश्मीरी भाजपा नेताओं द्वारा विरोध स्वर मुखर कर दिए जाने से भाजपा को प्रदेश में कितना नुक्सान उठाना होगा यह तो अब समय ही बता पाएगा।

ऐसी ही दशा भाजपा की लद्दाख में होने जा रही है जहां केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) में छठी अनुसूची को लागू करने की मांग के बीच 10 सितंबर को जब क्षेत्र की लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) के लिए मतदान होगा तो मुस्लिम बहुल करगिल जिले में भाजपा को अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ेगा।

लद्दाख के केवल दो जिलों - करगिल और लेह के लिए दो एलएएचडीसी परिषदें हैं। उत्तरार्द्ध के लिए चुनाव 2020 में हुए थे जिसमें भाजपा ने कुल 26 में से 15 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस ने नौ सीटें जीती थीं। चुनाव महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह पहली बार होगा कि करगिल परिषद में चुनाव होंगे।

वर्ष 2018 में, लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने से एक साल पहले, नेकां ने करगिल परिषद में 10 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। पीडीपी ने दो सीटें जीतीं और भाजपा सिर्फ एक सीट हासिल कर पाई।

चार सीटें निर्दलियों के खाते में गईं। पांच और सीटों पर नामांकन होता है। बाद में पीडीपी पार्षद पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए थे।

दिलचस्प बात यह है कि जहां नेकां और कांग्रेस सहित मुख्य खिलाड़ी पहले ही उन सीटों के लिए हाथ मिला चुके हैं, जहां भाजपा के जीतने की संभावना है, भगवा पार्टी ठंडे रेगिस्तान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकासात्मक दृष्टिकोण के बल पर किस्मत आजमा रही है।

Web Title: Voice of rebellion in Kashmir silence on smart meters in the entire state and autonomous council elections in Kargil

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