पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन दो पक्षों के बीच विवाद नहीं, आम जनता को प्रभावित करता है: न्यायालय

By भाषा | Published: September 1, 2021 08:45 PM2021-09-01T20:45:09+5:302021-09-01T20:45:09+5:30

Violation of environmental laws affects the general public, not a dispute between two parties: Court | पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन दो पक्षों के बीच विवाद नहीं, आम जनता को प्रभावित करता है: न्यायालय

पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन दो पक्षों के बीच विवाद नहीं, आम जनता को प्रभावित करता है: न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण और वन कानूनों का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है बल्कि यह आम जनता को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी इस मुद्दे की जांच करते हुए की कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (एनजीटी), 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘निष्पक्ष होने के लिए अधिकरण पर्यावरणीय मुद्दों से परे किसी भी और क्षेत्र में नहीं जाता है।’’ पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि अधिकरण पर्यावरण से संबंधित विशेष उद्देश्य और मुकदमे के लिए बनाया गया एक मंच है। पीठ ने कहा, ‘‘वन कानून का उल्लंघन, पर्यावरण कानून का उल्लंघन आमतौर पर दो पक्षों के बीच के विवाद नहीं होते हैं। हो सकता है, इसका असर एक व्यक्ति पर पड़ रहा हो लेकिन आम जनता पर भी इसका असर पड़ रहा है।’’ शीर्ष अदालत ने मामले में मुकुल रोहतगी, दुष्यंत दवे, ए एन एस नाडकर्णी, कृष्णन वेणुगोपाल और वी गिरि सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं। रोहतगी ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या अधिकरण के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि उसके पास वैधानिक नियम से परे जाने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि एनजीटी अधिनियम कहता है कि अधिकरण के पास पर्यावरण से संबंधित मुद्दों से निपटने का अधिकार क्षेत्र है। पीठ ने कहा, ‘‘तो, एक अधिकरण, जिसे उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए गठित किया गया था, यदि वे उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी तरीके का सहारा लेते हैं, तो आप कैसे कह सकते हैं कि अधिकार वास्तव में प्रयोग करने के लिए उपलब्ध नहीं है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘कौन समय निकालेगा, पर्यावरण के मामलों में यही रवैया है। मैं क्यों आगे बढ़ूं। मुझे अपना समय अदालत में क्यों बिताना चाहिए? फिर इस मुद्दे को कौन उठाएगा? एनजीटी उस मुद्दे को उठा सकती है। इसमें गलत क्या है।’’ शीर्ष अदालत ने पहले इस बात पर गौर किया था कि मामले से निपटने के दौरान एनजीटी अधिनियम के प्रावधानों के पीछे के उद्देश्य और मंशा को ध्यान में रखा जाना चाहिए। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से संबंधित मुद्दा उठाया गया था।

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Web Title: Violation of environmental laws affects the general public, not a dispute between two parties: Court

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