'देश के सबसे बड़े लेखक' की किताबों से सालाना कमाई आई सामने, अभिनेता मानव कौल ने किया खुलासा- विनोद कुमार शुक्ल को पिछले साल कितनी रॉयल्टी मिली

By रंगनाथ सिंह | Published: March 7, 2022 07:26 AM2022-03-07T07:26:09+5:302022-03-13T15:37:51+5:30

विनोद कुमार शुक्ल को पिछले साल साहित्य अकादमी का 'महत्तर सदस्य' घोषित किया गया। यह देश का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान है।

Vinod Kumar Shukla royalty issue raised by manav kaul on instagram | 'देश के सबसे बड़े लेखक' की किताबों से सालाना कमाई आई सामने, अभिनेता मानव कौल ने किया खुलासा- विनोद कुमार शुक्ल को पिछले साल कितनी रॉयल्टी मिली

लेखक विनोद कुमार शुक्ल की तस्वीर सोशलमीडिया से साभार।

Highlights85 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल साहित्य अकादमी के 'महत्तर सदस्य' हैं। यह देश का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान है।विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास दीवार में 'एक खिड़की रहती थी' और 'नौकर की कमीज' मॉडर्न क्लासिक माने जाते हैं।

नई दिल्ली: हिन्दी लोकवृत्त में कल का दिन वरिष्ठ लेखक विनोद कुमार शुक्ल के नाम रहा। 85 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल को पिछले साल हिन्दी के दो अग्रणी प्रकाशकों राजकमल प्रकाशन और वाणी प्रकाशन ने किताबों की रॉयल्टी के रूप में कुल 14 हजार रुपये दिये। यह जानकारी अभिनेता और लेखक मानव कौल ने अपने इंस्टाग्राम अकाउण्ट पर शेयर की। मानव ने अपनी पोस्ट में विनोद कुमार शुक्ल को 'इस देश का सबसे बड़ा लेखक' कहा है।  

मानव कौल ने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा, "इस देश के सबसे बड़े लेखक...पिछले एक साल में वाणी प्रकाशन से छपी तीन किताबों का इन्हें छह हजार मात्र मिला है। और राजकमल प्रकाशन से पूरे साल का आठ हजार रुपये मात्र मिला है। मतलब देश का सबसे बड़ा लेखक साल के 14 हजार रुपये मात्र ही कमा रहा है। पत्र व्यवहार में इन्हें महीनों तक जवाब नहीं मिलता। वाणी को लिखित में दिया है कि ना छपे किताब पर इसपर कोई कार्यवाही नहीं।" 

manav kaul and vinod kumar shukl
manav kaul and vinod kumar shukl
मानव कौल की पोस्ट के चर्चा में आने के बाद पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने विनोद कुमार शुक्ल से बातचीत करके मामले के बारे में अन्य जानकारियाँ प्राप्त कीं। आशुतोष ने अपने फेसबुक पर लिखा, 

"मेरी अभी विनोद कुमार शुक्ल जी के घर लम्बी बात हुई. उन्होंने रॉयल्टी स्टेटमेंट और प्रकाशक के साथ हुए पत्र मुझे भेजे हैं. उनकी इच्छानुसार कुछ तथ्य सार्वजनिक रहा हूँ.  वाणी से उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं --- दीवार में एक खिड़की रहती थी, अतिरिक्त नहीं, कविता चयन. दो किताबों के ईबुक संस्करण भी हैं. मई 1996 से लेकर अगस्त 2021, यानी पच्चीस वर्षों में उन्हें वाणी से कुल एक लाख पैंतीस हजार, अर्थात सालाना करीब पाँच हजार मिले. इसमें से एक किताब को साहित्य अकादमी सम्मान मिला है, बेहिसाब हिंदी लेखकों-पाठकों के घर यह किताब मिल जायेगी.

 राजकमल से उनकी छह किताबें हैं --- हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़, नौकर की कमीज, सब कुछ होना बचा रहेगा, कविता से लम्बी कविता, प्रतिनिधि कवितायेँ, कभी के बाद अभी. (सातवीं हाल ही प्रकाशित हुई है.)
इनके अलावा ईबुक संस्करण भी हैं.  उनके अनुसार राजकमल ने उन्हें अप्रैल 2016 से मार्च 2020 तक, चार वर्षों में इतनी सारी किताबों के करीब 67 हजार दिए हैं, यानी प्रतिवर्ष सत्रह हजार. पिछले कई वर्षों से रॉयल्टी स्टेटमेंट में कविता संग्रह ‘कभी के बाद अभी’ का जिक्र नहीं है."

रॉयल्टी के अलावा विनोद कुमार शुक्ल का यह भी कहना है कि वाणी प्रकाशन उनके मौखिक और लिखित रूप से मना करने के बावजूद उनकी किताबों के नए संस्करण छाप रहा है। विनोद जी के अनुसार वाणी और राजकमल दोनों ने उनके ईबुक्स के बारे में कोई अनुबन्ध किये बिना ही उनकी किताबों की ईबुक्स प्रकाशित और वितरित कर दी। आशुतोष ने फेसबुक पर लिखा है,  "लेकिन सबसे त्रासद यह कि वे छह वर्षों से प्रकाशक को लगातार लिख रहे हैं कि 'मेरी किताब न छापें', 'मेरी अनुमति के बगैर नया संस्करण न छापें क्योंकि प्रूफ की कई गलतियाँ हैं', 'मेरा अनुबंध समाप्त कर दें' --- लेकिन कोई सुनवाई नहीं. इन अति-सम्मानित बुजुर्ग लेखक की पीड़ा को समझने के लिए सितम्बर 2019 के इस खत को पढ़ें: “मैंने आपको स्पीड-पोस्ट तथा ईमेल भेजा था कि बिना मेरी अनुमति के नया संस्करण नहीं निकालें. इस संबंध में मैंने जब तब फोन से भी अनुरोध किया था, लेकिन आपने फिर नया संस्करण निकाल दिया. इसके पूर्व भी जितने संस्करण निकले हैं, उसकी पूर्व-सूचना मुझे कभी नहीं दी गयी. मैं इससे दुखी हूँ.” उनका यह भी कहना है कि प्रकाशकों के साथ ईबुक का अनुबंध नहीं हुआ है, लेकिन फिर भी प्रकाशकों ने ईबुक छाप दी."

Vinod Kumar Shukla Royalty
Vinod Kumar Shukla Royalty
मानव कौल द्वारा उठाये जाने के बाद विनोद कुमार शुक्ल को नगण्य रॉयल्टी मिलने का मुद्दा सोशलमीडिया पर चर्चा में आ गया। यह खबर अल-सुबह लिखी जा रही है। इतनी सुबह हिन्दी को दो इतने बड़े प्रकाशकों को जगाना उचित नहीं। अतः उनके पक्ष उनके जागने के बाद सामने आते ही प्रस्तुत किया जाएगा। कल सुबह से रात तक दोनों प्रकाशकों की तरफ से इस मसले पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं जारी किया  गया था। लोकमत की तरफ से दोनों प्रकाशकों के फेसबुक पेज पर उपलब्ध उनके सम्पर्क ईमेल पर उनका पक्ष जानने के लिए ईमेल भेज दिया गया है। उनका पक्ष प्राप्त होते ही खबर में जोड़ दिया जाएगा।

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म एक जनवरी 1937 को वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव में हुआ था। उनके उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' को वर्ष 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 'नौकरी की कमीज' , 'खिलेगा तो देखेंगे' 'लगभग जयहिंद', 'सब कुछ होना बचा रहेगा', 'अतिरिक्त नहीं' और 'पेड़ पर कमरा' इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उनके उपन्यास 'नौकरी की कमीज' एवं कहानी 'बोझ' पर फिल्मकार मणि कौल फिल्म बना चुके हैं। उनकी कहानियों 'आदमी की औरत' एवं 'पेड़ पर कमरा' पर फिल्मकार अमित दत्ता फिल्म का निर्माण कर चुके हैं।

Web Title: Vinod Kumar Shukla royalty issue raised by manav kaul on instagram

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