Vijay Diwas: जब बंग्लादेशी लोगों के सम्मान के लिए 1500 भारतीयों ने शहीद होकर 93000 पाकिस्तानियों को बनाया युद्धबंदी
By अनुराग आनंद | Published: December 14, 2019 08:29 AM2019-12-14T08:29:59+5:302019-12-14T13:05:17+5:30
पाकिस्तान की जेल में बंद मुजीब व दूसरे नेताओं पर पाकिस्तान के सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया गया था। इन मुकदमों के तहत शेख मुजीब व उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। यह सूचना इंदिरा के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था। जैसे ही तब के रॉ प्रमुख राम नाथ काव ने इंदिरा को इस बारे में जानकारी दी। इंदिरा ने मन ही मन शेख मुजीब को आजाद कराकर बंगाली मुसलमानों के आवाज को बुलंद किए रहने के लिए तय किया। कहा जाता है कि शेख मुजीब को फांसी के बाद दफन करने के लिए जेल में पाकिस्तान ने कब्र भी बना लिया था।
नए नागरिकता कानून पर जारी विरोध के बीच विजय दिवस की कहानी को जानना हम सबके लिए जरूरी हो जाता है। खासकर तब जब संसद के दोनों सदन में नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के बाद देशभर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहा हो।
नए नागरिकता कानून से मुस्लिम वर्ग के नाम को हटाए जाने को लेकर देश भर में जारी विरोध के बीच विजय दिवस को याद करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि 3 दिसंबर 1971 में लाखों बंगाली मुसलमान व हिंदुओं को बचाने के लिए, उनके बहन-बेटियों की इज्जत व उनके सम्मान को बचाने के लिए भारत सरकार ने कड़े फैसले लिए थे। इस फैसले के तहत भारत -पाकिस्तान के बीच मात्र 13 दिनों की युद्ध लड़ी गई और 16 दिसंबर 19971 को भारत ने पाकिस्तान के 93000 फौज को युद्धबंदी बना लिया।
भारत के 1500 वीर जवानों ने बंग्लादेसी लोगों के स्वाभीमान के लिए अपने सीने में गोलियां खाईं। वह शहीद हुए लेकिन उन्होंने करीब 93000 पाकिस्तानी सेना को आत्म-समर्पण करने व झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
बात 3 दिसंबर 1971 की है। जब भारत व पश्चिमी पाकिस्तान के बीच पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर युद्ध शुरू हुआ था। यह युद्ध 16 दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच 13 दिन चला। इस युद्ध के दौरान भारत के 1500 सिपाही शहीद हो गए। इंदिरा गांधी ने जब सेनाध्यक्ष को बुलाकर पाकिस्तानी सेना को जवाब देने को कहा था, तो भारतीय सेना ने इसकी तैयारी के लिए कुछ समय मांगा था।
दुनिया भर में भारतीय फौज की वाहवाही होने लगी। पाकिस्तान अमेरिका व दूसरे देशों के आगे इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा था। हालांकि, कई देशों ने इस मामले में पाकिस्तान का साथ भी दिया। लेकिन, हिंदुस्तान की सत्ता इंदिरा गांधी के हाथों में थी। इंदिरा के मजबूत इरादे के सामने किसी का एक नहीं चला।
इस युद्ध की समाप्ति के आठ महीने के बाद दोनों देशों ने शिमला समझौते पर दस्तखत किए जिसमें भारत ने युद्ध के दौरान हिरासत में लिए गए सभी 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने का फैसला किया। इसके बदले भारत ने पाक के सामने अपनी कई मांग रखी। इन्ही मांगों के तहत बंग्लादेशी नेताओं की सुरक्षीत वापसी व बंग्लादेश नामक एक नए देश का उदय हुआ था।
युद्धबंदियों को रिहा करने के इस फैसले ने विवाद को जन्म दिया और भारत में कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कश्मीर की समस्या का समाधान भारतीय शर्तों पर करने के एक सुनहरे अवसर को यूं ही हाथ से जाने दिया।
युद्धबंदियों को रिहा करने के लिए श्रीमती गांधी को किस चीज ने प्रेरित किया? पर्दे के पीछे क्या चला था? क्या कोई ऐसी न टाली जा सकनेवाली स्थितियां थीं, जिनके बारे में लोगों को पता नहीं था?
दरअसल, पाक के जेल में बंद मुजीब व दूसरे नेताओं पर पाकिस्तान के सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया गया था। इन मुकदमा के तहत शेख मुजीब व उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। यह सूचना इंदिरा के लिए किसी वज्रघात से कम नहीं था। जैसे ही तब के रॉ प्रमुख राम नाथ काव ने इंदिरा को इस बारे में जानकारी दी।
इंदिरा ने मन ही मन शेख मुजीब को आजाद कराकर बंगाली मुसलमानों के आवाज को बुलंद किए रहने के लिए तय किया। शेख मुजीब के लिए जेल में पाकिस्तान ने कब्र भी बना लिया था।
यदि पाकिस्तानी सेना मुजीबुर्रहमान को मौत की सजा दे देती, तो यह श्रीमती गांधी के लिए किसी दुःस्वप्न सरीखा होता और दूसरी तरफ यह बांग्लादेश को अनाथ हाल में छोड़ देता।
यही वजह है कि इंसानियत व लाखों लोगों के भावनाओं को देखते हुए उनके सम्मान व अधिकार के लिए भारत के इंदिरा सरकार ने कश्मीर जैसे मसले पर ध्यान देने के बजाय 93000 पाकिस्तानियों को छोड़ने के बदले में शेख मुजीब व उनके साथियों को आजाद कराकर लाखों लोगों के लिए एक आजाद मुल्क बंग्लादेश बना दिया।
उस समय भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि 1971 में सेना पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दे। हालांकि, तब भारतीय सेना क अध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मॉनेकशॉ ने कहा कि भारतीय सेना अभी हमले के लिए तैयार नहीं है। कहते हैं कि इंदिरा गांधी इससे नाराज भी हुईं लेकिन मानेकशॉ ने उनके पूछा कि आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं। इंदिरा ने कहा, 'हां।' इस पर मानेकशॉ ने कहा, 'मुझे 6 महीने का समय दें। मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी।'