मुंबई,29 सितंबर: उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा के अनिवार्य होने की धारणा को खारिज करने की मांग की। नायडू ने कहा कि ना ही उन्होंने और ना ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘‘कान्वेंट’’ से पढ़ाई की है। वहीं, राष्ट्रवाद पर बात करते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत माता की तस्वीर पर माल्यार्पण करना ही देशभक्ति नहीं है। इसके अलावा दूसरों को भूलना और बुरा व्यवहार करना भी देशभक्ति नहीं है।उन्होंने कहा कि आप राष्ट्रवादी तभी है जब आप सबका सम्मान और प्यार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि आप धर्म, क्षेत्र, भाषा के आधार पर लोगों से भेदभाव करते हैं तो आप राष्ट्रवादी नहीं हैं।
हमेशा क्षेत्रीय भाषाओं को बचाने की आवश्यकता पर जोर देने वाले नायडू ने कहा कि मातृभाषा आंखों की तरह होती हैं और अन्य भाषाएं चश्मे की तरह। महान गायिका एम एस सुब्बुलक्ष्मी की 102 वीं जयंती पर आयोजित समारोह में युवा गायकों को सम्मानित करते हुए उन्होंने यह बात कही। कर्नाटक की गायिका का जन्म 16 सितंबर 1916 को हुआ था। उन्होंने कहा कि विदेशी नेता (अंग्रेजी ना बोलने वाले देशों के) भारत आ कर अंग्रेजी में बात नहीं करते बल्कि वे इंटरप्रेटर का इस्तेमाल करते हैं।
अंग्रेजी नहीं है बिमारी
भाषा पर बोलेत हुए नायडू बोलें कि अंग्रेजी एक बीमारी नहीं है बल्कि अंग्रेजी दिमाग एक बीमारी है जो हमें ब्रिटिश शासन की विरासत में मिला है। हमें इससे बाहर आना चाहिए और हमारी संस्कृति पर गर्व महसूस करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अपनी भाषा का प्रचार करना समय की मांग है क्योंकि संस्कृति और भाषा एकसाथ चलती हैं। इससे आप आम लोगों को और बेहतर तरह से समझ पाते हैं। मातृभाषा आपकी आंखे हैं और अन्य भाषाएं चश्मे। अगर आपके पास आंखे नहीं होंगी तो आप कोई भी चश्मा पहन लें, आप अपनी आंख की रोशनी बेहतर नहीं कर पाएंगे।’’ उन्होंने कहा कि अंग्रेजी-माध्यम की शिक्षा की अनिवार्यता पर बात की जाती है पर क्या यह किसी के व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है।
उन्होंने कहा, ‘‘आप से यह किसने कहा? क्या पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने कान्वेंट स्कूल में पढ़ाई की थी? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कान्वेंट स्कूल गए थे। मैं भी कान्वेंट स्कूल नहीं गया लेकिन भारत का उप राष्ट्रपति हूं।’’ नायडू ने कहा, ‘‘अंग्रेजी सीखना उपयोगी है लेकिन अपनी मातृभाषा ना भूलें। यह मेरी सभी भारतीयों को सलाह है।’’
(भाषा से इनपुट)