वीरगति पार्ट-3: जनरल जैकब, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना को इतिहास की सबसे बड़ी शर्मिंदगी दी

By भारती द्विवेदी | Published: July 12, 2018 07:42 AM2018-07-12T07:42:38+5:302018-07-12T07:42:38+5:30

अगर उनकी रणनीति पर अमल ना किया गया होता तो कुछ दिनों में ही संयुक्त राष्ट्र में युद्ध विराम प्रस्ताव पास होता और बांग्लादेश बनने के बजाए सीजफायर रेखा खींच गई होती। 

veergati: general Jacob who caused the most embarrassing defeat to Pakistan | वीरगति पार्ट-3: जनरल जैकब, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना को इतिहास की सबसे बड़ी शर्मिंदगी दी

वीरगति पार्ट-3: जनरल जैकब, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना को इतिहास की सबसे बड़ी शर्मिंदगी दी

16 दिसंबर 1971। जब दक्षिण एशिया के नक्शे पर एक नए देश उभरा था। लेकिन उस नए देश के बनने के पहले भारत-पाकिस्तान के बीच 14 दिन की लड़ाई लड़ी गई । उस लड़ाई के बाद पूर्वी पाकिस्तान एक आजाद देश यानी बांग्लादेश के तौर पर दुनिया के नक्शे पर आया। लेकिन इसे कामयाब बनाने के पीछे एक शख्स का दिमाग था। अगर उनकी रणनीति पर अमल ना किया गया होता तो कुछ दिनों में ही संयुक्त राष्ट्र में युद्ध विराम प्रस्ताव पास होता और बांग्लादेश बनने के बजाए सीजफायर रेखा खींच गई होती। 

जैक फ़ैज राफेल जैकब। जिन्होंने पाकिस्तानी सेना को दुनिया के सामने सबसे बड़ी शर्मिंदगी दी थी। जिन्होंने 93 हजार पाकिस्तानी सेना को मीडिया और दुनिया के सामने आत्मसमर्पण को मजबूर किया। 

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93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करने वाले हीरो की कहानी

बांग्लादेश को अस्तित्व में लाने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही लड़ाई के तीन हीरो थे फील्ड मार्शल मानेक शॉ, जनरल जगजीत अरोड़ा और जेएफआर जैकब। जैकब ने ही फील्ड मार्शल मानेक शॉ को ढाका पर कब्जा करने की सलाह दी थी। राजनीतिक नेतृत्व और मानेक शॉ अप्रैल में ही पूर्वी पाकिस्तान को अपने कब्जे में लेना चाहते थे। लेकिन जैकब ने उन्हें 15 नवंबर तक रूकने की सलाह दी, ताकि मॉनसून खत्म हो और युद्ध के लिए जमीन पूरी तरह सूखी मिले। 3 दिसंबर को आजाद बांग्लादेश के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ चुका था। जितना आसान लग रहा था 1971 की लड़ाई उतनी भी आसान नहीं थी। पहले भारत के निशाने पर चटगांव था। जब भारत ने ढाका को अपना निशाना बनाया, उस वक्त पाकिस्तान अपने लगभग 27 हजार सैनिकों के साथ वहां डेरा डालकर बैठा था। 

भारत के पास तीन हजार सैनिक थे वो भी ढाका से बाहर। लेकिन एक चीज जो भारत के पास थी, पाकिस्तान के पास नहीं....वो था आत्मविश्वास। 26,400 हजार सैनिक होने के बाद भी उनका मनोबल गिरा चुका था, जबकि भारत पूरे जोश के साथ डटा हुआ था। 16 दिसंबर की सुबह फील्ड मार्शल मानेक शॉ ने जनरल जैकब को ढाका पहुंच पाकिस्तानियों से आत्मसमर्पण करवाने का आदेश दिया गया। जब जैकब पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पहुँचे तो वहां उन्होंने देखा कि मेजर जनरल गंधर्व नागरा, नियाजी के गले में बांहें डाले हुए एक सोफे पर बैठकर पंजाबी में उन्हें चुटकुले सुना रहे हैं। जैकब ने नियाजी को आत्मसमर्पण की शर्तें पढ़ कर सुनाई। नियाजी की आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने कहा, "कौन कह रहा है कि मैं हथियार डाल रहा हूँ।"

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जैकब नियाजी को कोने में ले गए और उनसे कहा- मैं आपको फैसला लेने के लिए 30 मिनट का समय देता हूँ। अगर आप समर्पण नहीं करते तो मैं ढाका पर बमबारी दोबारा शुरू करने का आदेश दे दूँगा। साथ ही अगर आपने हथियार नहीं डाले तो मैं आपके परिवारों की सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकता। लेकिन अगर आप समर्पण कर देते हैं, तो उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनकी होगी। और वो तीस मिनट जब जनरल जैकब ने 71 की लड़ाई का पूरा पासा पलटकर रख दिया।

ये कह कर वो कैमरे से निकल गए और सोचने लगे कि ये उन्होंने क्या कर दिया? अंदर ही अंदर उनकी हालत खराब हो रही थी। नियाजी के पास उस वक्त ढाका में 26,400 सैनिक थे जबकि भारत के पास सिर्फ 3000 सैनिक और वह भी ढाका से तीस किलोमीटर दूर। 30 मिनट बाद जब वो कमरे में घुसे तो वहां चुप्पी छाई हुई थी। साथ ही आत्मसमर्पण का कागज टेबल पर रखा था। जैकब ने तीन बार पूछ की क्या वो समर्पण कर रहे हैं? तीन बार उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। जिसके बाद जैकब ने आत्मसमर्पण के कागज को उठाते हुए कहा- 'आई टेक इट एज एक्सेप्टेड।'


कौन थे जेएफार जैकब

लेफ्टिनेंट जनरल जैकब का जन्म बंगाल प्रेसिडेंसी के कलकत्ता में 1924 में हुआ था। बगदादी यहूदी धर्म को मानने वाले उनके माता-पिता इराक से 18वीं शताब्दी में आए थे। जैकब के पिता इलियास इमैनुअल एक बड़े कारोबारी थे। जब उनके पिता की तबियत खराब हो गई तो उनको दार्जिलिंग के कुर्सियोंग बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को मारे जाने की खबरों ने वो बेहद दुखी थे, जिसके बाद अपने पिता के मर्जी के खिलाफ वो ब्रिटिश इंडियन आर्मी का हिस्सा बनें। 37 साल के करियर के बाद साल 1979 में वो आर्मी से रिटायर हुए। जैकब गोवा और पंजाब के राज्यपाल भी रह चुके थे। 13 जनवरी 2016 को 93 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

देखिए जनरल जैकब के सूझबूझ की कहानी:

नोट: लोकमतन्यूज़ अपने पाठकों के लिए एक खास सीरीज़ कर रहा है 'वीरगति'। इस सीरीज के तहत हम अपने पाठकों को रूबरू करायेंगे भारत के ऐसे वीर योद्धाओं से जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।

Web Title: veergati: general Jacob who caused the most embarrassing defeat to Pakistan

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