वीरगति पार्ट-1: मेजर सोमनाथ शर्मा, जिसने 700 पाकिस्तानियों को बड़गाम युद्ध में धूल चटा दी

By भारती द्विवेदी | Published: June 28, 2018 03:30 PM2018-06-28T15:30:38+5:302018-06-28T15:30:38+5:30

मेजर शर्मा की लाश 3 दिन बाद बरामद हुई वो भी इतनी खराब हालत में कि उसकी पहचान करना भी मुश्किल था।उनकी जेब में पड़े गीता के कुछ पन्नों और रिवॉल्वर के लेदर कवर से पहचान हो पाई कि वो बॉडी मेजर शर्मा की थी।

major somnath sharma who stopped 700 Pakistanis in Badgam to save Srinagar | वीरगति पार्ट-1: मेजर सोमनाथ शर्मा, जिसने 700 पाकिस्तानियों को बड़गाम युद्ध में धूल चटा दी

वीरगति पार्ट-1: मेजर सोमनाथ शर्मा, जिसने 700 पाकिस्तानियों को बड़गाम युद्ध में धूल चटा दी

नई दिल्ली, 28 जून:'दुश्मन हमसे केवल 50 गज की दूरी पर है। हमारी गिनती बहुत कम रह गई है। हम भंयकर गोली-बारी का सामना कर रहे हैं। फिर भी...मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डटा रहूंगा।'

ये आखिरी शब्द थे, मेजर सोमनाथ शर्मा के। ये लाइन उन्होंने अपने जवानों की हौसलाअफजाई के लिए कही थी। ताकि एक छोटी सी टुकड़ी पाकिस्तान के 700 सैनिकों के नापाक इरादे को बर्बाद कर सके। मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी-कमांडर थे। तीन नंवबर 1947 को उन्हें जम्मू-कश्मीर के बड़गाम में तैनात किया गया था। बड़गाम में अपनी ड्यूटी उन्होंने जबरदस्ती ली थी। हॉकी खेलने के दौरान उनके हाथ में फ्रैक्चर आया था, जिसकी वजह उनकी हाथों में प्लास्टर चढ़ा गया था। और यही वजह थी कि उन्हें आराम करने की सलाह दी गई थी।

क्या हुआ था बड़गाम की लड़ाई में

तीन नवंबर 1947 की बड़गाम की लड़ाई। पाकिस्तान फोर्स के 700 जवान श्रीनगर एयरपोर्ट पर कब्जा जमाने के लिए आगे बढ़ रहे थे। वो एयरपोर्ट जो उस वक्त घाटी को पूरे भारत से जोड़ता था। उस समय हवाई अड्डे को खोना मतलब कश्मीर को खोना था। और ये बात मेजर सोमनाथ शर्मा बखूबी जानते थे। उन्हें पता था कि कश्मीर की किस्मत फिलहाल उनके हाथ में है। वो जैसा चाहेंगे इतिहास वैसा बनेगा। 3 नवंबर की सुबह मेजर शर्मा अपनी टुकड़ी के साथ बड़गाम पहुंचे। मेजर शर्मा के अंदर तीन कंपनियां पेट्रोलिंग के लिए बड़गाम पहुंची थी। वहां पहुंचकर जब उन्हें सबकुछ सही लगा तो उन्होंने डेल्टा कंपनी को रोक बाकी की दो कंपनियों को वापस भेज दिया।

लेकिन दो टुकड़ी को वापस भेजने के कुछ ही देर बाद बड़गाम के घरों से फायरिंग होने लगी। घरों से फायरिंग होने के कारण मेजर शर्मा ने काउंटर फायरिंग का आदेश नहीं दिया। उन्हें ये डर था कि किसी निर्दोष की मौत ना हो जाए। मेजर शर्मा अभी इस उधेड़बुन के साथ थे कि क्या किया जाए, तब तक उनकी टुकड़ी पर गुलमर्ग के रास्ते तीन तरफा हमला हुआ। मेजर शर्मा को पता था कि अब जो करना है, उन्हें ही करना है। उन्होंने हमले की खबर अपने सीनियर अफसर को दे दी थी लेकिन जवाब था कि जब तक हवाई जहाज नहीं पहुंचता, तुम्हें ही उन्हें रोकना है।

मेजर शर्मा अपनी पूरी शिद्दत के साथ दिन भर पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते रहे। गोलियां कम पड़ती रही, मैदान लाशों से भरता गया लेकिन हौसला कम नहीं हुआ। प्लास्टर चढ़े हाथ से मेजर शर्मा कभी भारतीय सैनिकों की मदद करते तो कभी खुद दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा संभालते। शाम होते-होते ज्यादातर सैनिक मारे जा चुके थे। फिर भी मेजर शर्मा के कदम नहीं डगमगाए। उधर देर शाम तक उनकी मदद के लिए कुमाऊं रेजिमेंट का पहला बटालियन वहां पहुंचा, लेकिन तब तक मेजर सोमनाथ शर्मा अपना फर्ज निभाते-निभाते शहीद हो चुके थे। मेजर शर्मा की लाश तीन दिन बाद बरामद हुई वो भी इतनी खराब हालत में कि उसकी पहचान करना भी मुश्किल था। उनकी जेब में पड़े गीता के कुछ पन्नों और रिवॉल्वर के लेदर कवर से पहचान हो पाई कि वो बॉडी मेजर शर्मा की थी।

परमवीर चक्र पाने वाले पहले भारतीय

बड़गाम के लड़ाई में वीरता दिखा दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा अपनी शहादत के साथ ही हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। अपनी मौत के दो साल बाद बहादुरी का सबसे बड़ा अवॉर्ड परमवीर चक्र पाने वाले पहले भारतीय बने। इसे अवॉर्ड से उन्हें 21 जून 1950 को नवाजा गया था। इत्तेफाक से परमवीर चक्र का डिजाइन उनके भाई की सास सावित्री खानोलकर ने किया था।

जन्म, परिवार और पढ़ाई

नामुकिन को मुमिकन कर दिखाने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल के कांगड़ा में हुआ था। उनका पूरा परिवार हमेशा से ही देश के लिए समर्पित रहा था। उनके पिता अमर नाथ शर्मा इंडियन आर्मी में मेजर जनरल थे। बाद में वो इंडियन आर्म्ड मेडिकल सर्विस के पहले डायरेक्टर जनरल बने। वहीं उनके चाचा कैप्टन केडी वासुदेव दूसरे विश्व युद्ध के समय जापान के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए थे।मेजर शर्मा घर में शुरू से देशभक्ति और देश के लिए कुछ कर गुजरने की तालीम ले बड़े हुए थे। जिसकी वजह से उन्होंने तय कर रखा था कि वो भी आर्मी ज्वाइन करेंगे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई नैनीताल से की थी। कॉलेज के लिए उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज देहरादून को चुना था। उसके बाद वो रॉयल मिलिट्री कॉलेज सैंडरस्ट से पढ़े, जो कि लंदन के पास है। 22 फरवरी 1942 को मेजर शर्मा ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 19वें हैदाराबाद रेजिमेंट के आठवें बटालियन में शामिल हुए थे।

मेजर शर्मा की वीरगाथा की कहानी :

नोट: लोकमतन्यूज़ अपने पाठकों के लिए एक खास सीरीज़ कर रहा है 'वीरगति'। इस सीरीज के तहत हम अपने पाठकों को रूबरू करायेंगे भारत के ऐसे वीर योद्धाओं से जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।

Web Title: major somnath sharma who stopped 700 Pakistanis in Badgam to save Srinagar

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे