उत्तराखंड: पुष्कर सिंह धामी सरकार ने पास किया समान नागरिक संहिता, जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 8, 2024 10:32 AM2024-02-08T10:32:37+5:302024-02-08T10:37:08+5:30
उत्तराखंड विधानसभा ने बुधवार को पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा पेश किये गये समान नागरिक संहिता को बहुमत के साथ पारित कर दिया।

उत्तराखंड: पुष्कर सिंह धामी सरकार ने पास किया समान नागरिक संहिता, जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं
देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा ने बुधवार को पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा पेश किये गये समान नागरिक संहिता को बहुमत के साथ पारित कर दिया। जबकि विपक्ष मांग कर रहा था कि सदन में पेश किये गये विधेयक को पहले विधानसभा की चयन समिति के समक्ष पेश किया जाए।
समान नागरिक संहिता के विधानसभा में पास होने के बाद सीएम धामी ने उसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए कहा कि उत्तराखंड विधानसभा स्वतंत्र भारत में समान नागरिक संहिता को पारित करने वाली पहली विधायिका बन गई है, जो अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर सभी समुदायों के लिए रिश्तों में विवाह, तलाक, विरासत और जीवन पर समान नियम लागू करती है।
उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता की विशेषताएं
उत्तराखंड कैबिनेट द्वारा समान नागरिक संहिता विधेयक को मंजूरी देने के बाद और विधानसभा से विधेयक पास होने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है।
विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी भूषण द्वारा यूसीसी विधेयक पर ध्वनि मत के लिए बुलाए जाने से पहले अपने अंतिम संबोधन में मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि यह कानून सदियों से महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को समाप्त करेगा।
शाह बानो और सायरा बानो मामले का जिक्र करते हुए सीएम धामी ने कहा कि असामाजिक तत्व राजनीतिक फायदे के लिए विभिन्न समुदायों को बांटकर रखना चाहते हैं लेकिन यूसीसी द्वारा उत्तराखंड में सभी नागिरकों को समान अधिकार दिए जाने से यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी।
संविधान की धाराओं का गलत उपयोग होता था
सदन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भारतीय संविधान के जनक भीम राव अंबेडकर का हवाला देते हुए दावा किया कि संविधान में उल्लिखित कुछ धाराओं का समय-समय पर कुछ असामाजिक तत्वों, राष्ट्र-विरोधी लोगों द्वारा दुरुपयोग किया गया था।
उन्होंने सऊदी अरब, नेपाल, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे अन्य देशों को सूचीबद्ध करते हुए कहा, "भारतीय संविधान के दीवानी संहिता में कुछ गलतियां की गईं हैं, जिन्हें अब सुधारने की आवश्यकता है।"
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के लिए समय बदल रहा है और इस बदलते समय में हमें कानूनों की व्याख्या भी नये सिरे से करने का आवश्यकता है।
विपक्षा का क्यों कर रहा है विरोध
उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू किये जा रहे समान नागरिक संहिता को लेकर सूबे के कांग्रेस विधायकों ने जोर देकर कहा कि वे यूसीसी विधेयक का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन वो इसके प्रावधानों की विस्तार से जांच करने के पक्ष में है ताकि विधेयक के कानून बनने से पहले उसमें अगर कोई खामी हो तो उसे दूर किया जा सके। किच्छा से कांग्रेस विधायक तिलक राज बेहार ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44, जो विधेयक का आधार है। वो यूसीसी को पूरे देश के संदर्भ में संदर्भित करता है, न कि केवल एक राज्य के संदर्भ में।
उन्होंने कहा, “हम विधेयक के पारित होने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसे पारित करने से पहले सदन की एक चयन समिति को भेजा जाना चाहिए। अखिर सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि विधेयक का दुरुपयोग नहीं होगा और महिलाएं प्रताड़ित नहीं की जाएंगी। अब यूसीसी लागू होने से महिला के ससुराल वाले उसे संपत्ति के लिए अपने माता-पिता के साथ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर कर सकते हैं। ससुराल वाले अब भी महिला को प्रताड़ित कर सकते हैं, ऐसे में आप उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करेंगे।''
आदिवासियों को बाहर रखा गया
विधेयक में विरोधाभास की ओर इशारा करते हुए जसपुर के कांग्रेस विधायक आदेश सिंह चौहान ने कहा कि विधेयक आदिवासी आबादी को इसके दायरे से बाहर रखता है, जबकि यह दावा किया जाता है कि यह पूरे राज्य में लागू होगा। अगर यह उत्तराखंड की जनजातियों को इसके दायरे से बाहर छोड़ देता है तो इसे पूरे राज्य में एक समान लागू करने के बारे में कैसे सोचा जा सकता है।
राज्य का यूसीसी सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित एक समिति द्वारा प्रस्तुत एक मसौदे पर आधारित है। यह विधेयक उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के चुनावी वादों में से एक था।
ओवैसी ने यूसीसी को हिंदू कोड से ज्यादा नहीं माना
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक एक हिंदू कोड के अलावा और कुछ नहीं है, जिसे सभी के लिए लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले इसमें हिंदू अविभाजित परिवार को नहीं छुआ गया है। आखिर क्यों? यदि आप उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक समान कानून चाहते हैं तो हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया है? क्या कोई कानून एक समान हो सकता है यदि वह आपके राज्य के अधिकांश हिस्सों पर लागू नहीं होता है?”
इसके साथ उन्होंने यह दावा करते हुए कि यूसीसी में और भी संवैधानिक और कानूनी मुद्दे हैं, मसलन आदिवासियों को इसके अधिकार से बाहर क्यों रखा गया है।
औवेसी ने यह भी दावा किया कि भाजपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा है कि यूसीसी को केवल संसद द्वारा ही अधिनियमित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक शरिया अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम जैसे केंद्रीय कानूनों का खंडन करता है।