उत्तर प्रदेश ने कहा: कोविड-19 महामारी के बीच इस वर्ष कांवड़ यात्रा नहीं, न्यायालय ने मामला बंद किया

By भाषा | Updated: July 19, 2021 19:42 IST2021-07-19T19:42:19+5:302021-07-19T19:42:19+5:30

Uttar Pradesh said: No Kanwar Yatra this year amid the Kovid-19 epidemic, the court closed the case | उत्तर प्रदेश ने कहा: कोविड-19 महामारी के बीच इस वर्ष कांवड़ यात्रा नहीं, न्यायालय ने मामला बंद किया

उत्तर प्रदेश ने कहा: कोविड-19 महामारी के बीच इस वर्ष कांवड़ यात्रा नहीं, न्यायालय ने मामला बंद किया

नयी दिल्ली, 19 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा से जुड़़ा मामला बंद कर दिया और प्राधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि जनता के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाली किसी भी अप्रिय घटना पर सख्ती से गौर किया जाए और तुरंत कार्रवाई की जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस दलील पर संज्ञान लिया कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर विभिन्न जिलों के कांवड़ संघ स्वेच्छा से कोई यात्रा नहीं निकालेंगे और उन्होंने जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस साल इसे स्थगित कर दिया है।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायूर्ति बी आर गवई की एक पीठ ने कहा, ‘‘इस पर गौर करते हुए कि उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा पिछले वर्ष के स्वरूप का पालन किया जाना है, जिसमें यह स्पष्ट है कि विभिन्न जिलों के 'कांवड़ संघों' ने अपनी सहमति लिखित रूप में दी है कि जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को देखते हुए इस साल भी कांवड़ यात्रा स्थगित कर दी जाएगी, अब इस मामले को बंद करना आवश्यक है।’’

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम केवल सभी स्तरों पर अधिकारियों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 144 का ध्यान रखने की याद दिलाते हैं और यह सुनिश्चित करें कि जनता के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाली अप्रिय घटनाओं पर सख्ती से गौर किया जाएगा और तुरंत कार्रवाई की जाएगी। हम अधिकारियों को हमारे 16 जुलाई, 2021 के आदेश में पैरा की याद दिलाते हैं, जिसे एक बार फिर से निर्धारित किया गया है..।’’

पीठ ने अपने 16 जुलाई के आदेश के पैराग्राफ को उल्लेखित किया जिसमें उसने कहा था कि भारत के नागरिकों का स्वास्थ्य और जीवन का अधिकार सर्वोपरि है और धार्मिक सहित सभी अन्य भावनाएं, इस मौलिक अधिकार में गौण महत्व की हैं।’’

शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते महामारी के बीच कांवड़ यात्रा की अनुमति देने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर पहले मीडिया में आयी खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था।

उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने 19 जुलाई के अतिरिक्त हलफनामे का हवाला दिया।

हलफनामे में कहा गया है कि अदालत के 16 जुलाई के आदेश के तहत राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 17 जुलाई को फिर से उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक बुलाई थी।

इसमें कहा गया है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह ने प्राधिकरण को सूचित किया कि राज्य की अपील के जवाब में, सभी कांवड़ संघों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और पुलिस आयुक्तों, संभागीय आयुक्तों, जिलाधिकारियों / एसएसपी / एसपी ने स्पष्ट रूप से अपनी रिपोर्ट दी है कि कांवड़ संघों ने लिखित में अपनी सहमति दी है कि जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को देखते हुए इस वर्ष भी उनके द्वारा कांवड़ यात्रा स्थगित की जाएगी।

हलफनामे के अनुसार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने विभिन्न जिलों से प्राप्त रिपोर्टों का संज्ञान लिया और सिफारिशें कीं, जिसमें यह भी शामिल है कि ‘‘एसडीएमए कांवड़ संघों की पेशकश से सहमत है और उनके प्रस्ताव का स्वागत करता है कि वे चालू वर्ष में स्वेच्छा से कोई कांवड़ यात्रा नहीं निकालेंगे और उन्होंने खुद कांवड़ यात्रा स्थगित कर दी है। इससे साफ है कि पिछले साल यानि 2020 की तरह इस साल भी कांवड़ यात्रा की कोई संभावना नहीं है। इसमें कहा गया है कि पिछले साल इसी समय, कोविड-19 का ग्राफ बढ़ रहा था, जबकि इस साल, संक्रमण की दर केवल 0.042 प्रतिशत के साथ सबसे कम है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है, ‘‘पिछले साल भी, कांवड़ यात्रा को स्थगित करने के कांवड संघों के निर्णय को ध्यान में रखते हुए, कांवड़ यात्रा को प्रतिबंधित करने के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया गया था और कोई प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। इसलिए, एसडीएमए ने सलाह दी कि पिछले साल की तरह, इस साल भी कांवड़ यात्रा को स्वेच्छा से स्थगित करने के कांवड़ संघ के निर्णय को ध्यान में रखते हुए, कांवड़ यात्रा को प्रतिबंधित करने वाले किसी भी आदेश को जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’

इसमें कहा गया है कि एसडीएमए ने सिफारिश की है कि यदि स्थानीय स्तर पर कोई भक्त जलाभिषेक के लिए स्थानीय मंदिर जाता है, तो उनके लिए धार्मिक समारोहों के संबंध में मौजूदा कोविड​​​​-19 प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन करना आवश्यक होगा।

हलफनामे के अनुसार , ‘‘एसडीएमए ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि यदि कांवड़ यात्रा को प्रतिबंधित करने या रोक लगाने के आदेश जारी किए जाते हैं, तो अन्य धर्मों या समुदायों के अन्य धार्मिक समारोहों को प्रतिबंधित करने की मांग उठाई जा सकती है, जिससे सामाजिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।’’

इसने कहा कि सभी धार्मिक संगठन अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं और धर्म गुरुओं ने भी कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने की अपील की है।

इसमें सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘‘पड़ोसी राज्य, जहां कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध लगाया गया है या नहीं लगाया गया है, यह सुनिश्चित करेंगे कि उन राज्यों के कांवड़ भक्त उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश नहीं करें और भारत सरकार से इस आशय के निर्देश जारी करने का अनुरोध किया जाना चाहिए।’’

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई के दौरान वैद्यनाथन ने कहा कि दिल्ली और उत्तराखंड की सरकारें पहले ही कह चुकी हैं कि वे इस साल कांवड़ यात्रा की अनुमति नहीं देंगी।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता के राधाकृष्णन को भी सुना, जिन्होंने हस्तक्षेप किया और न्यायालय से यह देखने का अनुरोध किया कि केंद्र और राज्य सतर्क रहें और आत्मसंतुष्ट नहीं हों ताकि संक्रामक रोग को पूरी तरह से रोका जा सके।

पीठ ने कहा, ‘‘हम राधाकृष्णन की चिंता की सराहना करते हैं और इसे पूर्ववर्ती पैरा में संबोधित किया है।’’

केंद्र ने पहले शीर्ष अदालत से कहा था कि राज्य सरकारों को महामारी के मद्देनजर किसी भी तरह की ‘‘कांवड़ यात्रा’’ की अनुमति नहीं देनी चाहिए और निर्धारित स्थानों पर टैंकरों के माध्यम से गंगा जल उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण के महीने की शुरुआत के साथ शुरू होने वाली एक पखवाड़े की यात्रा अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है और इस दौरान उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सहित पड़ोसी राज्यों से हरिद्वार में कांवरियों का एक बड़ा जमावड़ा देखने को मिलता है।

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