उत्तर प्रदेशः मुजफ्फरनगर में कुटुंब अदालत का आदेश, पति को हर महीने 1,000 रुपये गुजारा भत्ता दे पत्नी
By भाषा | Updated: October 22, 2020 17:19 IST2020-10-22T17:19:41+5:302020-10-22T17:19:41+5:30
महिला को अपने पति को हर महीने 1,000 रुपये देने का आदेश दिया क्योंकि महिला सेवानिवृत्त सरकारी सेवक थी और उसे हर महीने 12,000 रुपये पेंशन मिल रही है।

महिला और उसका पति पिछले कई साल से अलग रह रहे हैं।
मुजफ्फरनगरः कुटुंब अदालत ने सरकारी पेंशन हासिल कर रही एक महिला को अपने पति को मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। महिला के पति ने इस संबंध में याचिका दायर की थी।
महिला और उसका पति पिछले कई साल से अलग रह रहे हैं। व्यक्ति ने हिंदू विवाह कानून 1955 के तहत अपनी पत्नी से गुजारा भत्ते के लिए 2013 में एक याचिका दाखिल की थी। कुटुंब अदालत के न्यायाधीश ने बुधवार को शिकायतकर्ता की याचिका मंजूर कर ली और महिला को अपने पति को हर महीने 1,000 रुपये देने का आदेश दिया क्योंकि महिला सेवानिवृत्त सरकारी सेवक थी और उसे हर महीने 12,000 रुपये पेंशन मिल रही है।
भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के समान आधार सुनिश्चित किए जाने संबंधी याचिका न्यायालय में दायर
उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान आधारों वाली ऐसी व्यवस्था बनाए जाने का अनुरोध किया गया है जो ‘‘लैंगिंक एवं धार्मिक रूप से तटस्थ’’ हो और संविधान एवं अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप हो।
याचिका में केंद्रीय गृह एवं कानून मंत्रालयों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के आधारों में मौजूदा विसंगतियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएं और इन्हें धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी नागरिकों के लिए समान बनाएं।
वकील अश्विनी कुमार दुबे द्वारा दायर कराई गई इस याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के ऐसे समान आधार मुहैया कराने में नाकाम रही है, जो लैंगिक एवं धार्मिक रूप से तटस्थ हों। इसमें कहा गया है कि भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता आजीविका का एकमात्र स्रोत होता है, इसलिए धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता एवं गरिमा के अधिकार पर सीधा हमला है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘हिंदू, बौद्ध, सिख एवं जैन समुदाय के लोगों पर हिंदू विवाह कानून 1955 और हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण कानून 1956 लागू होता है। मुसलमानों के मामले वैध विवाह और विवाहपूर्व समझौते की स्थिति के अनुसार निपटाए जाते हैं और उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है। ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोग पारसी विवाह एवं तलाक कानून 1936 के अधीन आते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी कानून लैंगिक रूप से तटस्थ नहीं है।’’
याचिका में भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के ‘‘भेदभावपूर्ण आधारों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन’’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है। इसमें विधि आयोग को निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है कि वह घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों की समीक्षा करे और ‘‘भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के समान आधारों’’ पर तीन महीने में रिपोर्ट तैयार करे।