उत्तर प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियमः सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कानून के तहत परिवहन वाहन अपने कब्जे में लेने पर फाइनेंसर कर के लिए उत्तरदायी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 23, 2022 16:29 IST2022-02-23T13:37:04+5:302022-02-23T16:29:51+5:30
Uttar Pradesh Motor Vehicle Taxation Act: न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ वाहन की खरीद के लिए कर्ज देने वाले फाइनेंसर द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

फाइनेंसर, जिसने कर्ज का भुगतान न होने के कारण वाहन अपने कब्जे में ले लिया हो, वह उसका ‘मालिक’ है।
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि एक परिवहन वाहन का फाइनेंसर, जिसके लिए पट्टा या गिरवी रखने को लेकर समझौता किया गया हो, वाहन का कब्जा लेने की तारीख से उत्तर प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम 1997 के तहत कर के लिए उत्तरदायी है।
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिसंबर 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि परिवहन वाहन का फाइनेंसर साल 1997 के अधिनियम के तहत वाहन का कब्जा लेने के बाद कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ वाहन की खरीद के लिए कर्ज देने वाले फाइनेंसर द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कर भुगतान के एक महीने या अधिक समय तक वाहन का इस्तेमाल नहीं किया गया, तो वाहन का मालिक 1997 के अधिनियम की धारा 12 के तहत धनवापसी के लिए आवेदन कर सकता है, लेकिन धन वापसी की मांग के लिए प्रावधान में उल्लिखित सभी शर्तों का पालन करना होगा।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि फाइनेंसर ने परिवहन वाहन की खरीद के लिए कर्ज दिया था और कर्ज के भुगतान में चूक पर वाहन अपने कब्जे में ले लिया था। पीठ ने वर्ष 1997 के उप्र मोटर वाहन अधिनियम और वर्ष 1988 के अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि एक फाइनेंसर, जिसने कर्ज का भुगतान न होने के कारण वाहन अपने कब्जे में ले लिया हो, वह उसका ‘मालिक’ है।