पटना: चुनावी रणनीतिकार से जन सुराज अभियान के सूत्रधार बने प्रशांत किशोर ने बिहार के शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्कूलों में केवल खिचड़ी और कॉलेजों में केवल डिग्री बांटी जा रही है। बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं तो कहां से अधिकारी बनेंगे? उन्होंने कहा कि बिहार में बत्तीस वर्षों से चली आ रही लालू- कांग्रेस और नीतीश- भाजपा की सरकारों ने जानबूझकर शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दी ताकि लोग अनपढ़ बने रहे और जात-पात तथा धर्म- मजहब के चक्कर में फंसकर इन लोगों को वोट देते रहे।
पीके ने कहा कि जब तक उच्च स्तरीय और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं उपलब्ध कराई जाएगी तब तक बिहार का चतुर्दिक विकास नहीं हो सकेगा। शिक्षा ही विकास की जननी है गरीबी से निकालने का मुख्य जरिया है। उन्होंने कहा कि बिहार देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, बेरोजगारी और पलायन वाला राज्य बना दिया गया है। हमें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है और हम जात पात के चक्कर में नेताओं के बेटे का भविष्य बनाने में बेचैन है। अपना बेटा पढ़ नहीं रहा, भूखे पेट सोता है,शरीर पर कपड़े नहीं है, पैरों में चप्पल नहीं है। इसकी फिक्र आपको नहीं है।
पीके ने आंकड़ों के हवाले से बताया कि बिहार में 60 प्रतिशत लोग भूमिहीन है जो दूसरे की जमीन जोत कर अपना भरण-पोषण करते हैं। बिहार तथाकथित समाजवादी सरकारें रही किन्तु इन भूमिहीनों को अपनी जमीन नहीं हो सकी। खेती की व्यवस्था यहां इतनी चौपट है कि यह आपके केवल पेट पालने का साधन है मुनाफे का नहीं। पंजाब और हरियाणा ने खेती से अपनी आमदनी बढ़ा ली लेकिन बिहार पीछे ही रह गया। इसका मूल कारण 100 में 60 लोग भूमिहीन हो। शेष लोगों में जिनके पास जमीन है उनमें 35 प्रतिशत लोगों को मात्र दो एकड़ जमीन है। 5 प्रतिशत लोग अधिकाधिक भूमि के स्वामी हैं। कथित समाजवादी सरकारों ने भूमि सुधार कानून नहीं लागू किया जिससे यह स्थिति बनी हुई है।
प्रशांत किशोर ने कहा कि यहां पलायन की सबसे बड़ी समस्या है। यहां की अबतक की सरकारों ने न तो कल कारखानों की स्थापना की और ना ही रोजगार के अवसर पैदा किए। स्वरोजगार को भी प्रोत्साहित नहीं किया तथा लोगों को उचित शिक्षा दी। काम नहीं होने के कारण लोगों को दूसरे औद्योगिक शहरों में पलायन करना मजबूरी बनीं। घर -गांव और परिजनों से दूर रहकर पेट पालने की मजबूरी ने पलायन को प्रोत्साहित किया।