उपेन्द्र कुशवाहा को नीतीश मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से जारी है कयासों का दौर
By एस पी सिन्हा | Published: August 17, 2022 07:01 PM2022-08-17T19:01:27+5:302022-08-17T19:06:06+5:30
बिहार के सियासी गलियारे में यह चर्चा बेहद तेजी से उड़ रही है कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज चल रहे हैं।
पटना:बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने के लिए सबसे ज्यादा मुखर रहे जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को नीतीश मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने पर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। राज्य के सियासी गलियारे में बड़ी तेजी से उड़ रही चर्चाओं में कहा जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज बताये जा रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री नहीं बनाए जाने की बात पर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार का यह फैसला समझ से परे है क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा का महागठबंधन सरकार मे मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था।जानकार सूत्रों की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कुशवाहा समाज से जुड़े कई नेताओं में भारी नाराजगी है। कुशवाहा बिरादरी के कई बड़े नेताओं ने हाल में पटना के होटल में बड़ी बैठक की थी।
बैठक के दौरान उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ सभी नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई थी। सूत्रों का कहना है कि बैठक में जदयू में शामिल कई कुशवाहा नेता भी मौजूद रहे। इस दौरान बैठक में निर्णय हुआ कि नीतीश कुमार कुशवाहा समाज से चाहे जिसे मंत्री बनाएं, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलनी चाहिए।
कहा जा रहा है कि इस बैठक के बाद ही नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री नहीं बनाने का निर्णय लिया। जिसके कारण उपेंद्र कुशवाहा नाराज होकर दिल्ली चले गए हैं। उल्लेखनीय है कि उपेंद्र कुशवाहा न सिर्फ भाजपा नेताओं के हमले का जवाब दे रहे हैं बल्कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को साथ लाने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
इसके बाद भी उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलना चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां तक कि उपेंद्र कुशवाहा मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए थे। हालांकि इस मामले में उपेंद्र कुशवाहा का बयान भी आया है। उन्होंने नाराजगी का न केवल खंडन किया है बल्कि ट्वीट कर नए मंत्रियों को सलाह भी दी है। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के पुराने रिकॉर्ड को देखें तो वह कभी भी पाला बदल सकते हैं।
चर्चाओं पर भरोसा करें तो भले ही नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर राजद के साथ सरकार बना ली है लेकिन जदयू में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। आरसीपी सिंह को लेकर पार्टी में जिस तरह घमासान हुआ और उसके बाद उनके करीबी अजय आलोक सहित दूसरे नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। उससे यह तो साफ है कि जदयू में सब-कुछ सामान्य नहीं है और कुशवाहा का जैसा रिकॉर्ड रहा है, ऐसे में वह कब क्या कदम उठा लें, इसकी किसी को कोई भनक नहीं है।
उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक करियर को देखा जाय तो वह कभी खास विचारधारा से नहीं जुड़े रहे हैं। समय के साथ वह मौके को देखते हुए पाला बदलने में माहिर माने जाते हैं। मसलन 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले उपेंद्र कुशवाहा ने 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' बनाया था। इस गठबंधन में कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के अलावा बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम शामिल थी।
उपेंद्र कुशवाहा इस फ्रंट के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी थे। हालांकि चुनावों में हार के बाद उन्होंने पाला बदल लिया। मार्च 2021 में राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी का जदयू में विलय हो गया और इस समय वह जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं। इसके पहले साल 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी का गठन किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बने।
2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की जीत के बाद कुशवाहा केंद्र में शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री बने थे। हालांकि 2017 में नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में आने के बाद उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए थे और रालोसपा को महागठबंधन का हिस्सा बना दिया था।