UP सरकार को भीड़ हिंसा रोकने के लिए दी गई विशेष कानून बनाने की सलाह, CM योगी को सौंपी रिपोर्ट

By भाषा | Updated: July 11, 2019 16:23 IST2019-07-11T16:22:31+5:302019-07-11T16:23:13+5:30

आयोग की सचिव सपना त्रिपाठी ने गुरुवार को कहा कि ''ऐसी घटनाओं के मददेनजर आयोग ने स्वत:संज्ञान लेते हुये भीड़तंत्र की हिंसा को रोकने के लिये राज्य सरकार को विशेष कानून बनाने की सिफारिश की है।''

UP law panel readies draft bill to curb mob lynching, reports submitted to CM yogi adityanath | UP सरकार को भीड़ हिंसा रोकने के लिए दी गई विशेष कानून बनाने की सलाह, CM योगी को सौंपी रिपोर्ट

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Highlights पिछले दिनों भीड हिंसा की घटनाओं (गाय पर हुई हिंसा) के मद्देनजर राज्य विधि आयोग ने सलाह दी है कि ऐसी घटनाओ को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाए आयोग ने एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है।आयोग का मानना है कि भीड़ तंत्र की हिंसा को रोकने के लिये वर्तमान कानून प्रभावी नही है इसलिये अलग से सख्त कानून बनाया जाए।

 पिछले दिनों भीड हिंसा की घटनाओं (गाय पर हुई हिंसा) के मद्देनजर राज्य विधि आयोग ने सलाह दी है कि ऐसी घटनाओ को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाए। आयोग ने एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है। राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) ए एन मित्तल ने भीड हिंसा पर अपनी रिपोर्ट और प्रस्तावित विधेयक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुधवार को सौंपा।

आयोग की सचिव सपना त्रिपाठी ने गुरुवार को कहा कि ''ऐसी घटनाओं के मद्देनजर आयोग ने स्वत:संज्ञान लेते हुये भीड़तंत्र की हिंसा को रोकने के लिये राज्य सरकार को विशेष कानून बनाने की सिफारिश की है।'' मुख्यमंत्री को सौंपी गई 128 पन्नों वाली इस रिपोर्ट में राज्य में भीड़ तंत्र द्वारा की जाने वाले हिंसा की घटनाओं का हवाला देते हुये जोर दिया है कि उच्चतम न्यायालय के 2018 के निर्णय को ध्यान में रखते हुये विशेष कानून बनाया जायें।

आयोग का मानना है कि भीड़ तंत्र की हिंसा को रोकने के लिये वर्तमान कानून प्रभावी नही है इसलिये अलग से सख्त कानून बनाया जाए। आयोग ने सुझाव दिया है कि इस कानून का नाम उत्तर प्रदेश कॉबेटिंग ऑफ मॉब लिचिंग एक्ट रखा जाए तथा अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जायें और दोषी पाये जाने पर सजा का प्राविधान भी किया जाये।

भीड़ हिंसा के जिम्मेदार लोगों को सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का भी सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि हिंसा के शिकार व्यक्ति के परिवार और गंभीर रूप से घायलों को भी पर्याप्त मुआवजा मिले। इसके अलावा संपत्ति को नुकसान के लिए भी मुआवजा मिले। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के पुर्नवास और संपूर्ण सुरक्षा का भी इंतजाम किया जाए।

उत्तर प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 से 2019 तक ऐसी 50 घटनायें हुई जिसमें 50 लोग हिंसा का शिकार बने, इनमें से 11 लोगों की हत्या हुई जबकि 25 लोगों पर गंभीर हमले हुये हैं। इसमें गाय से जुड़े हिंसा के मामले भी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इस विषय पर अभी तक मणिपुर राज्य ने पृथक कानून बनाया है जबकि मीडिया की खबरों के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार भी इस पर शीघ्र कानून अलग से लाने वाली है।

रिपोर्ट में राज्य में भीड़ हिंसा के अनेक मामलों का हवाला दिया गया है । जिसमें 2015 में दादरी में अखलाक की हत्या, बुलंदशहर में तीन दिसंबर 2018 को खेत में जानवरों के शव पाये जाने के बाद पुलिस और हिन्दू संगठनों के बीच हुई हिंसा के बाद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या जैसे मामले शामिल हैं।

आयोग के अध्यक्ष का मानना है कि भीड़ तंत्र के निशाने पर अब पुलिस भी है। न्यायमूर्ति मित्तल ने रिपोर्ट में कहा है कि ''भीड़ तंत्र की उन्मादी हिंसा के मामले फर्रूखाबाद, उन्नाव, कानपुर, हापुड़ और मुजफ्फरनगर में भी सामने आए हैं। उन्मादी हिंसा के मामलों में पुलिस भी निशाने पर रहती है और मित्र पुलिस को भी जनता अपना शत्रु मानने लगती है।

Web Title: UP law panel readies draft bill to curb mob lynching, reports submitted to CM yogi adityanath

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