यूपी निकाय चुनाव: भाजपा छोड़ सभी विपक्षी दल जुटे मुस्लिम वोटों की गोलबंदी में
By राजेंद्र कुमार | Updated: April 18, 2023 18:00 IST2023-04-18T17:52:04+5:302023-04-18T18:00:39+5:30
अतीक हत्याकांड के बाद यूपी के बदले सियासी हालात में हर विपक्षी दल मुस्लिम समाज का हितैषी बन गया है और निकाय चुनाव में मुस्लिम समाज का वोट पाने की कवायद में जुट गया है।

फाइल फोटो
लखनऊ:उत्तर प्रदेश में दो चरणों में होने वाले नगर निकाय चुनावों को लेकर अब तस्वीर साफ होने लगी है। बीते सोमवार को नगर निकाय चुनाव में पहले चरण के नामांकन पत्र दाखिल करने का काम खत्म हो गया। पहले चरण में यूपी के 37 जिलों के 390 निकायों में होने जा रहे चुनाव में 7,678 सीटों के लिए 51,842 (वाराणसी और गोरखपुर को छोड़कर) उम्मीदवारों ने पर्चे दाखिल किए हैं।
विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों द्वारा दाखिल किए गए नामांकन पत्रों के जरिये अब यह साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का सबसे अधिक ज़ोर मुस्लिम वोटों को अपनी झोली में लाने का हैं।
यही वजह है कि यूपी के निकाय चुनाव में सपा में मेयर की सीट पाने के लिए जहां सवर्ण कार्ड खेल करते हुए मुस्लिम समाज का वोट पाने के लिए अपना दांव चला है। सपा ने मेयर की 17 सीटों में सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और फिरोजाबाद में मेयर पद के लिए मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। वही बसपा सुप्रीमो मायावती ने मेयर पद के लिए घोषित 10 प्रत्याशियों में छह मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है।
कांग्रेस भी मुस्लिम बाहुल्य वाले चार महानगरों में इसी वर्ग के प्रत्याशी उतारे हैं। आप ने भी मुस्लिम समाज के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतार कर सपा और बसपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की अपनी मंशा साफ कर दी है। भाजपा में अभी तक किसी मुस्लिम प्रत्याशी को मेयर पर के लिए टिकट नहीं दिया है। इसके बाद भी भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि मुस्लिम समाज मोदी-योगी सरकार के काम उनका समर्थन करेगा।
यूपी के 17 नगर निगमों में मेयर के पद पर अपनी झण्डा फहराने के लिए फिलहाल भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और आप के नेता इस बार एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। इन सभी दलों के नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनावों के पहले होने वाली यह निकाय चुनाव उनके लिए सेमीफाइनल हैं। इसलिए हर दल ने अपनी-अपनी रणनीति बनाकर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। इसी क्रम में अखिलेश यादव ने सोची समझी रणनीति के तहत मुस्लिम प्रत्याशी देने से परहेज किया है और 17 नगर निगमों में उन्होंने सिर्फ 4 मुस्लिम तथा 8 सवर्ण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है।
सपा की रणनीति है कि शहरों में जहां सवर्णों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है, उनका वोट लेने के लिए उसी वर्ग के प्रत्याशियों को उतारा जाए। पार्टी मानती है कि बीते विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने उसे एकतरफा समर्थन दिया और वह निकाय चुनाव में भी उसका साथ देगा। वही बसपा ने सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए छह सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं परंतु मायावती के यह मुस्लिम प्रत्याशी सपा के वोट बैंक में सेंध लगा पाएगी यह उम्मीद किसी को नहीं है।
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार रही है। कहा जा रहा है कि अतीक अहमद कांड के बाद उठे विवाद के बीच सपा खुद को मुस्लिमों का समर्थन पाने के लिए मजबूत दावेदार के तौर पर पेश कर रही है। इस वक्त बदले हालात में हर विपक्षी दल मुस्लिम समाज का हितैषी बन गया है और निकाय चुनाव में इस समाज का वोट पाने के कवायद में जुट गया है।