जमानत मिलने के बाद भी बहुतों के लिए जेल से रिहाई की राह नहीं आसान, एक महीने से भी अधिक लग जाता है समय
By विशाल कुमार | Published: November 4, 2021 12:36 PM2021-11-04T12:36:27+5:302021-11-04T12:40:21+5:30
इस साल जुलाई में जमानत मिलने के बाद भी आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 कैदियों की रिहाई होने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था.
नई दिल्ली: क्रूज शिप पर ड्रग्स मामले में गिरफ्तार शाहरुख खान के बेटे को जमानत मिलने के बाद कागजी कार्रवाई में देरी होने के कारण जेल से रिहाई होने में एक दिन की देरी हो गई थी लेकिन ऐसे अनगिनत मामले हैं जहां कानूनी अड़चनों के कारण लोगों की रिहाई में एक महीने से भी ज्यादा की देरी हो जाती है.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 31 मई को डकैती के मामले में गिरफ्तार 19 वर्षीय फैजान को दिल्ली की एक अदालत ने 24 सितंबर को जमानत दी थी लेकिन कई कानूनी अड़चनों के कारण 16 अक्टूबर को रिहाई हो पाई.
मजदूर के बेटे और एक छोटी निजी कंपनी में काम करने वाले फैजान पर अदालत ने 50 हजार रुपये का जमानत बॉन्ड जमा करने के लिए कहा था.
इसी तरह, दिल्ली दंगा मामलों में आगजनी के आरोपी जावेद को पिछले साल 10 जून को जमानत दी गई थी लेकिन पिछले साल मार्च से मंडोली जेल में बंद जावेद को रिहा होने में 20 दिन से भी अधिक लग गए.
जावेद पर अदालत ने 25 हजार रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट जमा करने के लिए कहा था.
कई वकीलों ने कहा कि जमानत देने के दौरान अधिकतर अदालतों द्वारा स्थानीय जमानतदार की व्यवस्था करने की शर्त एक बड़ी समस्या बन जाती है.
एक आरोपी को जमानत दिए जाने के बाद एक जमानत बांड लगाया जाता है, जिसके तहत एक स्थानीय जमानतदार, एक रिश्तेदार या विचाराधीन का दोस्त संपत्ति के दस्तावेजों, वाहन के कागजात या फिक्स्ड डिपॉजिट के माध्यम से राशि की व्यवस्था करता है.
इस दौरान यदि आरोपी जमानत की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो जमा की गई राशि काट ली जाती है या जब्त कर ली जाती है.
सुप्रीम कोर्ट भी जता चुका है चिंता
जुलाई में ही जमानत मिलने के बाद भी आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 कैदियों की रिहाई होने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था.
शीर्ष अदालत ने सितंबर में फास्टर (इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन) नामक एक प्रणाली को लागू करने के लिए मंजूरी दी थी, जो जेल अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक चैनल के माध्यम से ई-कॉपी या अदालत के आदेशों के प्रसारण की अनुमति देगा.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को एक ऑनलाइन कार्यक्रम में जेल में जमानत के आदेशों को पेश करने में देरी को एक बहुत ही गंभीर कमी बताया, जिसे युद्ध स्तर पर संबोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह कैदी की मानवीय स्वतंत्रता का हनन करता है.