लोक सभा 2019: अमित शाह ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुली बगावत कर चुके नेता को क्यों सौंपी यूपी की कमान?

By विकास कुमार | Published: December 31, 2018 05:29 PM2018-12-31T17:29:02+5:302019-01-01T12:41:56+5:30

गोवर्धन झड़फिया को उत्तर प्रदेश का कमान सौंपा गया है, जिन्हें एक समय में धुर मोदी विरोधी माना जाता था। झड़फिया पाटीदार समुदाय से हैं और गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में हुए पाटीदार आंदोलन में भी परदे के पीछे उनकी सहभागिता रही थी।

Two power of center is emerging within BJP and that is Narendra Modi and Amit Shah | लोक सभा 2019: अमित शाह ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुली बगावत कर चुके नेता को क्यों सौंपी यूपी की कमान?

लोक सभा 2019: अमित शाह ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुली बगावत कर चुके नेता को क्यों सौंपी यूपी की कमान?

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में अभी दो नामों का ही सिक्का चलता है, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह। पार्टी से लेकर संगठन तक और कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक, बीजेपी फिलहाल इन दो लोगों का ही जाप करती हुई दिखती है। किसी भी जीत के बाद 'मोदी मैजिक' और 'चाणक्य की रणनीति' का हवाला दिया जाता है। अपने मेहनत और अनुशासन के दम पर मोदी और शाह की जोड़ी ने भाजपा को परम सत्ता के उस शीर्ष पर पहुंचा दिया, जिसका सपना कभी पंडित दीनदयाल और श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने देखा था।  

मोदी और शाह (सेंटर ऑफ पावर )

भारतीय राजनीति की सबसे सफल जोड़ी शाह और मोदी ने साथ मिलकर कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा और उसे पूरा करते-करते रह गए। क्योंकि तीन राज्यों में भाजपा की हार के बाद मोदी का यह नारा जुमला में बदलता हुआ प्रतीत हो रहा है। इस हार के बाद नरेन्द्र मोदी का विश्वास अमित शाह से उठता हुआ दिख रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी खुद कमान संभालते हुए दिख रहे हैं। हाल ही में पार्टी ने 18 राज्यों में लोकसभा चुनाव के प्रभारियों की लिस्ट जारी की है, जिसमें एक नाम ऐसा है जो सबको आश्चर्य में डाल रहा है। 

मोदी विरोधी को यूपी की कमान 

गोवर्धन झड़फिया को उत्तर प्रदेश का कमान सौंपा गया है, जिन्हें एक समय में धुर मोदी विरोधी माना जाता था। झड़फिया पाटीदार समुदाय से हैं और गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में हुए पाटीदार आंदोलन में भी परदे के पीछे उनकी सहभागिता रही थी। 2002 में हुए गुजरात दंगे के दौरान वे मुख्यमंत्री मोदी की कैबिनेट में गृहमंत्री थे। दंगों के ठीक बाद हुए चुनाव में नरेन्द्र मोदी की नाराजगी के कारण इन्हें मंत्रालय नहीं मिला। झड़फिया को प्रवीण तोगड़िया का करीबी माना जाता है। झड़फिया भाजपा में आने से पहले 15 साल तक विश्व हिन्दू परिषद में भी रह चुके हैं।

गोवर्धन झड़फिया और प्रवीण तोगड़िया की यारी 

पिछले कुछ समय से जिस तरह से तोगड़िया ने पीएम मोदी पर निशाना साधा है, उससे ये समझना मुश्किल हो गया है कि आखिर झड़फिया के चुनाव के पीछे अमित शाह का क्या तर्क रहा होगा। क्या अमित शाह ने मोदी से पूछकर उन्हें ये जिम्मा सौंपा है? अमित शाह संगठन का जिम्मा संभालते हैं और भाजपा के भीतर संगठन के लोगों का हमेशा से एक अलग रुतवा रहा है। अमित शाह अब नरेन्द्र मोदी से इतर भी फैसले लेने लगे हैं, इसका जवाब हमें मोदी के धुर विरोधी रहे व्यक्ति को इतने अहम राज्य की जिम्मेवारी मिलने से स्वतः मिल जा रहा है। ऐसे गोवर्धन झड़फिया की एक पहचान किसान नेता के रूप में भी रहा है। जिस वक्त भाजपा ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया था उस समय प्रदेश में किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी थे।

लोकसभा चुनाव से पहले मोदी का खुद कमान संभालना और शाह द्वारा झड़फिया की नियुक्ति कुछ सही नहीं होने की ओर इशारा कर रही है। अमित शाह नरेन्द्र मोदी के समानांतर प्रयास करते हुए दिख रहे हैं। पहली बार दोनों के संवाद में सामंजस्य की कमी दिख रही है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि शाह इस बीच मोदी को नजरअंदाज करते हुए कई फैसले किए हैं। मोदी कभी भी उत्तर प्रदेश की कमान योगी को नहीं देना चाहते थे, लेकिन अमित शाह ने योगी को प्रदेश का मुख्यमंत्री पद तक पहुँचाया। 

अमित शाह का उभार 

नरेन्द्र मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने, उन्हें एक ऐसे सेनापति की तलाश थी जो उनके राजनीतिक साम्राज्य के दायरे को पूरे देश में फैलाये और उनकी सत्ता को शाश्वत बना सके। शातिर सोच और मेहनत करने की अकूट क्षमता वाले व्यक्ति की तलाश अमित शाह तक जाकर खत्म हो गई। गुजरात में शाह का करिश्मा देख चुके मोदी अब उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर एक्स्प्लोर करना चाहते थे। हुआ भी ऐसा ही, एक के बाद एक राज्य जीत कर शाह ने मोदी को भगवा तोहफा देना शुरू किया। और एक समय ऐसा आया कि 19 राज्यों में जीत के साथ भाजपा देश के 70 फीसदी आबादी पर राज कर रही थी। 

एक समय था जब यूपीए के शासन काल में भाजपा कांग्रेस पर दो सेंटर ऑफ पावर होने का आरोप लगाती थी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी। नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के गठन के बाद भाजपा के आरोप में सच्चाई भी लगती थी। लेकिन इस बार खुद भाजपा में दो राजनीतिक शक्ति के केंद्र बनते हुए दिख रहे हैं। भाजपा चाहे तो इससे इंकार कर सकती है लेकिन हालिया फैसलों और इशारों से तो यही प्रतीत हो रहा है। 

अब देखना ये होगा कि संघ इस परिस्थिति से कैसे निपटता है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से नितिन गडकरी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा कुलांचे मार रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा में पीएम मोदी के खिलाफ उनके विरोधी गुट सक्रिय हो रहे हैं। 

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