आखिर क्यों पड़ी 'मुस्लिम महिला संरक्षण विधेयक 2017' की जरूरत?
By कोमल बड़ोदेकर | Published: December 28, 2017 05:31 PM2017-12-28T17:31:44+5:302017-12-28T17:53:48+5:30
दुनिया भर के करीब 22 मुस्लिम देश ' एक बार में तीन तलाक' की प्रथा खत्म कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन तलाक को आपराधिक करार देने वाला विधेयक गुरुवार (28 दिसंबर) को लोकसभा में पेश किया। सत्ता पक्ष के नेताओं ने इस विधेयक को महिला अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम बताया। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक पर चर्चा के दौरान सदन में कहा कि "जब बहुत से मुस्लिम देश इस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं तो भारत क्यों नहीं?" वहीं राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन (एआईएमआईएम), भारतीय यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), बीजू जनता दल के सदस्यों सहित कई अन्य पार्टियों ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 को पेश किए जाने का कड़ा ऐतराज जताया।
कानून मंत्री बोले यह ऐतिहासिक दिन
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे ऐतिहासिक दिन बताते हुए कहा कि यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए है। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक , 2017 तीन तलाक या मौखिक तलाक को आपराधिक घोषित करने वाले इस विधेयक को सत्ता पक्ष के सभी सदस्यों ने समर्थन किया है। बीजेपी ने इस विधेयक पर मतदान के लिए व्हिप जारी किया है। यानी पार्टी के सभी सांसदों को इस विधेयक पर मतदान करना ही होगा।
कांग्रेस को नहीं मिली बोलने की इजाजत
जिस दौरान विधेयक पेश किया जा रहा था उस समय कांग्रेस ने अपनी बात रखनी चाही लेकिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने तर्क देते हुए कहा कि पहले से इस मुद्दे पर बोलने के लिए कांग्रेस ने नोटिस नहीं दिया जिसके चलते उनहें इजाजत नहीं दी गई।
विधेयक की खास बात
'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2017', इसमें तलाक की इस प्रथा का इस्तेमाल करने वाले के खिलाफ अधिकतम तीन साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है, साथ ही यह मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण और बच्चे की निगरानी का अधिकार देता है।
क्यों पड़ी इस विधेयक जरूरत
दुनिया भर के करीब 22 मुस्लिम देश 'तीन तलाक' जैसी रूढ़ीवादी प्रथा को खत्म कर चुके हैं। इनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल है। मिस्र पहला ऐसा देश है जहां यह प्रथा (1929) खत्म की गई थी। वहीं श्रीलंका में बना शादी और तलाक (मुस्लिम) कानून, 1951 जो 2006 में संशोधित हुआ था जो तुरंत तलाक वाले किसी नियम को मान्यता नहीं देता। श्रीलंका के इस कानून को कई देश आदर्श मानते हैं। बीते कई सालों से कई मुस्लिम महिलाएं और सामाजिक संस्थाए 'तीन तलाक' और 'हलाला' के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं। इसके बाद सरकार ने तर्क देते हुए मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के ना पर हो रहे अत्याचार से बचाने के लिए इस विधेयक को पेश किया है।
'तीन तलाक' मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार
मुस्लिमों में तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ यानी शरिया के जरिए होता है। इसे बहुत ही रूढ़िवादी कानून समझा जाता है। देश में जहां भारतीय संविधान के मुताबिक कानून चलता है वहीं धार्मिक स्वतंत्र के नाम पर ऐसे कानूनों के जरिए मुस्लिम महिलाए अत्याचार झेल रही हैं। वहीं जानकारों की माने तो 'कुरान' में तीन तलाक का कहीं जिक्र नहीं है बावजूद इसके भारत में अब भी यह कुरीती चल रही है। यदि तीन तलाक के बाद शौहर अपनी बेगम के साथ रहना चाहे तो उस तलाक शुदा महिला को 'हलाला' से गुजरना होता है।
तलाकशुदा महिला के 'हलाला' सबसे बड़ी मुसीबत
हलाला एक ऐसी परंपरा जिसके बारे में किसी भी मुस्लिम महिला की रूह कांप जाती है। शरिया के मुताबिक यदि तलाक के बाद शौहर अपनी बेगम के साथ दोबारा रहना चाहता है तो पहले उस महिला को किसी दूसरे मर्द से शादी करनी होगी और उसके बाद उसे तलाक देना होगा, लेकिन हलाला के नाम पर कई ऐसे मामले आए हैं जिनमें महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है।
मुस्लिम महिलाओं की आजादी का नया युग
सुप्रीम कोर्ट ‘तीन तलाक’ को निरस्त करने का पहले ही आदेश दे चुका था। आज (20 दिसंबर) को लोक सभा में पास हुए इस विधेयक के बाद माना जा रहा है कि देश में मुस्लिम महिलाओं की आजादी का नया युग शुरू होगा। इस कानून से मुस्लिम महिलाओं पर दमन, अत्याचार खत्म करने में मदद मिलेगी।