नंदीग्राम आंदोलन के ‘शिल्पी’ रहे शुभेंदु अधिकारी के तेवरों से सांसत में तृणमूल कांग्रेस

By भाषा | Published: November 29, 2020 01:19 PM2020-11-29T13:19:09+5:302020-11-29T13:19:09+5:30

Trinamool Congress in breath due to the attitude of Shubhendu Adhikari who was the 'Shilpi' of Nandigram movement | नंदीग्राम आंदोलन के ‘शिल्पी’ रहे शुभेंदु अधिकारी के तेवरों से सांसत में तृणमूल कांग्रेस

नंदीग्राम आंदोलन के ‘शिल्पी’ रहे शुभेंदु अधिकारी के तेवरों से सांसत में तृणमूल कांग्रेस

नयी दिल्ली, 29 नवंबर पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में अपनी ‘उपेक्षा’ से खफा चल रहे शुभेंदु अधिकारी ने शुक्रवार को मंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने कड़े तेवरों का पार्टी को अहसास करा दिया। ममता बनर्जी सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले अधिकारी कई हफ्तों से मंत्रिमंडल की बैठक से नदारद रहकर अपनी नाराजगी दर्ज करा रहे थे और उन्होंने हुगली रिवर ब्रिज आयोग का अध्यक्ष पद भी छोड़ दिया।

नंदीग्राम सीट से विधायक 49 वर्षीय अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही अपनी ‘जेड प्लस’ सुरक्षा वापस कर दी है साथ ही सरकारी आवास भी छोड़ दिया है। पार्टी नेतृत्व के प्रति अपने रुख को कठोर करते जा रहे अधिकारी ने हालांकि सुलह की गुंजाइश बरकरार रखी है, क्योंकि उन्होंने तृणमूल की सदस्यता से अभी इस्तीफा नहीं दिया है।

कांथी पी.के कॉलेज से स्नातक शुभेंदु अधिकारी ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रखा और 1989 में छात्र परिषद के प्रतिनिधि चुने गए। इसके बाद वह 36 साल की उम्र में पहली बार वर्ष 2006 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक निर्वाचित हुए। इसी साल वह कांथी नगर पालिका के चेयरमैन भी बने।

सक्रिय राजनीति के दौरान शुभेंदु वर्ष 2009 और 2014 में तुमलुक लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 2016 उन्होंने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की जिसके बाद उन्हें ममता सरकार में मंत्री बनाया गया था।

शुभेंदु के सियासी कद को ऊंचाई प्रदान करने में पूर्वी मिदनापुर के वर्ष 2007 के नंदीग्राम आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभाई। ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम आंदोलन के शुभेंदु ‘शिल्पी’ रहे। इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उन्होंने ‘भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी’ के बैनर तले आंदोलन खड़ा किया। आंदोलनकारियों की पुलिस और माकपा कैडरों के साथ खूनी झड़प हुई। पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया, जिससे तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा।

नंदीग्राम और हुगली जिले के सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन ने तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में पकड़ को और मजबूत करते हुए उसे 34 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा को हटाने में सफलता दिलाई।

ममता बनर्जी सरकार में परिवहन, जल संसाधन और विकास विभाग तथा सिंचाई एवं जलमार्ग विभाग मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी वर्ष 1982 में कांग्रेस के टिकट पर कांथी दक्षिण सीट से विधायक निर्वाचित हुए, लेकिन बाद में वह तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में शुमार रहे। मनमोहन सिंह सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रह चुके शिशिर अधिकारी फिलहाल तुमलुक लोकसभा सीट से सांसद हैं और पूर्वी मिदनापुर के तृणमूल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी हैं। शुभेंदु के भाई दिव्येंदु अधिकारी कांथी लोकसभा सीट से सांसद हैं, जबकि सौमेंदु कांथी नगर पालिका के अध्यक्ष हैं।

पूर्वी मिदनापुर, जिसके अंतर्गत 16 विधानसभा सीटें हैं, के साथ-साथ पड़ोस के पश्चिमी मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया आदि जिलों की करीब पांच दर्जन विधानसभा सीटों पर इस परिवार का प्रभाव है। बताया जाता है कि नंदीग्राम आंदोलन में शुभेंदु के रणनीतिक कौशल को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन्हें जंगलमहल जिसके अंतर्गत मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया आदि जिले आते हैं, में तृणमूल के विस्तार का काम सौंपा था। वाम मोर्चा का गढ़ कहे जाने वाले इन जिलों में शुभेंदु ने पार्टी की पकड़ को मजबूत बनाया।

इसके अलावा उन्होंने मुर्शिदाबाद और मालदा में भी तृणमूल को बढ़त दिलाने के काम को अंजाम दिया। संगठन पर बेहतर पकड़ के बूते ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने 2011 के बाद 2016 में भी शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि इन अच्छे परिणामों को तृणमूल वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बरकरार नहीं रख सकी। भाजपा ने तृणमूल को कड़ी टक्कर देते हुए राज्य की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की जबकि 12 सीट गंवाते हुए तृणमूल कांग्रेस 22 सीट ही जीत सकी। इस चुनाव में तृणमूल ने शुभेंदु अधिकारी का गढ़ मानी जाने वाली लोकसभा की 13 सीटों में से 9 को गंवा दिया।

शुभेंदु अधिकारी कई बार विवादों में भी घिरे। नंदीग्राम आंदोलन के दौरान हुए खूनी संघर्ष को लेकर उनपर कमेटी के लोगों को हथियार उपलब्ध कराने के आरोप लगे, हालांकि उन्होंने इन्हें खारिज किया। सारदा घोटाले में भी अधिकारी का नाम आया।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने वर्ष 2014 में सारदा समूह के वित्तीय घोटाले में कथित भूमिका को लेकर अधिकारी से पूछताछ की। दरअसल कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया था कि सारदा के प्रमुख सुदीप्तो सेन कश्मीर भागने से पहले अधिकारी से मिले थे। हालांकि अधिकारी ने इन आरोपों से इनकार किया।

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