मराठा आंदोलन को दिशा भटकने से बचाना होगा

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 30, 2023 09:28 AM2023-10-30T09:28:01+5:302023-10-30T09:34:19+5:30

मराठा आरक्षण के लिए तेज हुआ आंदोलन चालीस दिन के अंतराल के बाद दूसरे दौर में और भी आक्रामकता दिखाई देने लगी है।

The movement must be saved from losing direction | मराठा आंदोलन को दिशा भटकने से बचाना होगा

फाइल फोटो

Highlightsलंबे समय से चल रहे मराठा आंदोलन की मांग पूरी न होने से बढ़ रही है हताशा मराठा आंदोलन से जुड़ा हर नेता हिंसा या फिर किसी अतिवादी कदम को दूर रहना चाहता हैसरकार के पास मराठा आंदोलन के लिए आश्वासन से अधिक कुछ नहीं है

बीते अगस्त माह से मराठा आरक्षण के लिए तेज हुआ आंदोलन चालीस दिन के अंतराल के बाद दूसरे दौर में फिर फैलने लगा है। अब उसका विस्तार गांव-कस्बों तक होने लगा है, जिससे कहीं आक्रामकता दिखाई देने लगी है तो कहीं हिंसा का रंग भी चढ़ रहा है।

लंबे समय से चल रहे आंदोलन की मांग पूरी न होने से बढ़ती हताशा कई आत्महत्याओं का कारण बन रही है। एक आंकड़े के अनुसार राज्य में बीते 10 दिनों में 12 लोग अपनी जान दे चुके हैं। साफ है कि असंतोष लगातार बढ़ रहा है।

मराठा आंदोलन से जुड़ा हर नेता चाहता है कि कहीं हिंसा या फिर किसी अतिवादी कदम को अंजाम नहीं दिया जाए, लेकिन सरकार के पास आश्वासन से अधिक कुछ नहीं है। वर्तमान में मराठा आरक्षण आंदोलन में दो स्थितियां बन चुकी हैं, जिसमें एक है समूचे मराठा समाज को पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण दिया जाए, तो दूसरी जालना जिले के अंतरवाली सराटी गांव के मनोज जरांगे की मांग के अनुसार मराठवाड़ा के कुनबी समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाए। जिस तरह विदर्भ और खानदेश में उसे पहले से ही सम्मिलित किया गया है।

सरकार ने जरांगे की मांग के लिए समिति का गठन भी किया है, जो लोगों से चर्चा कर और दस्तावेजों को एकत्र कर सरकार को रिपोर्ट देगी, किंतु वह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके चलते सरकार को समिति की कार्य अवधि को बढ़ाना पड़ा है।

साफ है कि आरक्षण का मामला देरी से लगातार जटिलता की ओर बढ़ रहा है, जिससे अवसाद और कुंठा का जन्म हो रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार और आंदोलनकारियों के नेताओं, दोनों की जिम्मेदारी है कि वे समाज को भटकने से रोकें। हिंसा का कदम बदनामी से अधिक समाज के समक्ष नई परेशानियों को जन्म देगा।

एक लंबे आंदोलन के बाद मराठा समाज की समझ में यह बात अच्छी तरह से आ चुकी है कि यह किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से लड़ा नहीं जा सकता है। सरकारें तब तक स्थाई समाधान नहीं दे सकती हैं, जब तक वे आगे की कानूनी लड़ाई की पहले से तैयारी नहीं कर लेती हैं।

ऐसी स्थिति में सरकार को अपनी बात स्पष्ट रूप से सामने रखनी चाहिए। लंबे समय तक आश्वासन देकर समय आगे नहीं बढ़ा सकते, बल्कि समस्याओं को ही बढ़ाया जा सकता है। इसलिए अब समाधान की दिशा में वही चर्चाएं होनी चाहिए, जिनसे कोई मजबूत हल संभव हो। अन्यथा हिंसा और हताशा का वातावरण राज्य में गंभीर स्थितियां पैदा करेगा।

चूंकि नया आंदोलन खुले आसमान के नीचे हो रहा है, इसलिए इसका बंद कमरे में भी हल संभव नहीं है। इसलिए फैसला खुला और आम सहमति के आधार पर होना चाहिए वर्ना यह लड़ाई तो चलती रहेगी और परिस्थितियां बनती-बिगड़ती रहेंगी।

Web Title: The movement must be saved from losing direction

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